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साज नहीं, अब तो यहां सजता है जिस्म का बजार - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विनोद उपाध्‍याय कभी दिन ढलते ही तबलों की थाप और घुंघरुओं की खनक से गूंजने वाला इलाके आज शांत पड़े हैं। अब यहां के कोठों पर तहज़ीब और कला के क़द्रदान नहीं, बल्कि शरीर पर नजऱ रखने वाले ही अधिक आते हैं। आज़ादी मिलने के पहले और उसके बाद के…