गैर-लोकतांत्रिक है सुरक्षा परिषद का ‘वीटो’ अधिकार

पवन कुमार अरविंद

सत्ता के संचालन की लोकतांत्रिक प्रणाली; इस सृष्टि की सर्वोच्च शासन व्यवस्था मानी गई है। क्योंकि अब तक शासन के संचालन की जितनी भी पद्धतियां ज्ञात हैं उनमें लोकतांत्रिक प्रणाली सर्वाधिक मानवीय होने के कारण सर्वोत्कृष्ट है। यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें इकाई राज्य के सभी जन की सहभागिता अपेक्षित है। इस तंत्र में न तो कोई आम है और न ही कोई खास, बल्कि लोकतांत्रिक सत्ता की निगाह में सभी समान हैं। लोकतांत्रिक देश यानी सभी जन की सहभागिता से निर्मित तंत्र।

भारत इस सर्वोत्कृष्ट शासन प्रणाली का जन्मदाता है। कुछ लोग ब्रिटेन को भी मानते हैं; पर यह सत्य नहीं है, भले ही भारत को आजादी मिलने तक देश के सभी रियासतों में राजतंत्र रहा हो और इस राजतांत्रिक पद्धति से सत्ता संचालन का सिलसिला अयोध्या के राजा दशरथ के शासनकाल के बहुत पहले से चलता रहा हो, फिर भी जनता के प्रति सत्ता की जवाबदेही के परिप्रेक्ष्य में भारत ही लोकतांत्रिक प्रणाली का जन्मदाता कहा जाएगा।

दशरथ पुत्र मर्यादापुरुषोत्तम राम का शासन राजतांत्रिक होते हुए भी लोकतांत्रिक था। क्योंकि उनके राज्य की सत्ता जनता के प्रति पूर्ण-रूपेण जवाबदेह थी। उनकी पत्नी सीता पर अयोध्या के मात्र एक व्यक्ति ने आलोचना की थी, राजा राम ने इसको गंभीरता से लिया और राजधर्म का पालन करते हुए सीता को जंगल में भेज दिया। यहां सवाल यह नहीं है कि राम ने सीता के प्रति अपने पति धर्म का पालन किया या नहीं, बल्कि सवाल यह है कि आलोचना करने वाले की संख्या मात्र एक थी, फिर भी कार्रवाई कठोर हुई। उनके जैसा संवेदनशील राजतंत्र अब तक देखने या सुनने को नहीं मिला है। वह एक ऐसा तंत्र था जो लोकतंत्र से भी बढ़कर था। हांलाकि, राज्य के राजा का चयन सत्ता उत्तराधिकार की अग्रजाधिकार विधि के तहत होता था। यानी राजा का ज्येष्ठ पुत्र सत्ता का उत्तराधिकारी। उस समय मतदान प्रक्रिया की कहीं कोई चर्चा भी नहीं थी।

अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने कहा था कि यदि किसी इकाई राज्य की सत्ता, उस इकाई राज्य की जनता द्वारा चुनी गई हो, जनता के हित में कार्य करती हो और जनता के लिए समर्पित हो; तो ऐसी सरकार को लोकतांत्रिक कह सकते हैं। लिंकन के कहने का अर्थ यह भी है कि सरकार के निर्माण या चयन में लोकतांत्रिक इकाई के सभी लोगों की समान सहभागिता होनी चाहिए।

कहने को तो अमेरिका लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार है लेकिन वह भी वैश्विक संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) के महत्पूर्ण घटक सुरक्षा परिषद में लोकतंत्र की पूर्ण स्थापना के लिए कुछ भी नहीं कर रहा है। यूएनओ को वैश्विक सत्ता कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हालांकि भारत सहित दुनिया के मात्र 192 देशों को ही यूएनओ की सदस्यता प्राप्त है, फिर भी इसकी सत्ता को वैश्विक सत्ता कहना ज्यादा समीचीन होगा।

वर्तमान में सुरक्षा परिषद के सदस्यों की संख्या 15 है। इनमें से पांच- अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन; स्थाई सदस्य हैं, जबकि 10 देशों की सदस्यता अस्थाई है। इन अस्थाई सदस्यों में भारत भी शामिल है। अस्थाई सदस्यों का कार्यकाल दो वर्ष का होता है। स्थाई सदस्यों को वीटो का अधिकार प्राप्त है। यह वीटो अधिकार ही सुरक्षा परिषद में लोकतंत्र की स्थापना की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। क्या आप कुछ सदस्यों को कुछ विशेष अधिकार देकर लोकतांत्रिक सत्ता स्थापित कर सकते हैं, यह कदापि संभव नहीं है।

आखिर सुरक्षा परिषद में लोकतंत्र की पूर्ण-रूपेण स्थापना के लिए अमेरिका कोई पहल क्यों नहीं करता? क्या वह सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों को मिले वीटो के अधिकार को बनाए रखना चाहता है और शेष अस्थाई सदस्य देशों को अस्थाई के नाम पर इस अधिकार से दूर रखना चाहता है? क्या यही अमेरिका की लोकतंत्रिक सोच है। हालांकि यह पहल चीन से करना बेमानी है क्योंकि उसकी सोच गैर-लोकतांत्रिक है। अमेरिका को यह महत्वपूर्ण पहल इसलिए भी करना चाहिए क्योंकि वह सोवियत संघ के विघटन के बाद एक-ध्रुवीय विश्व का इकलौता नेता है।

भारत भी सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के लिए अभियान चलाए हुए है। इससे उसको क्या हासिल होगा। कुछ विशेष सहूलियत मिल सकती है। महासभा के सदस्य देशों या विश्व के अन्य देशों के लिए वैश्विक नीति-निर्माण की दिशा में मत देने का अधिकार मिल सकता है, लेकिन इससे क्या वह संयुक्त राष्ट्र महासभा के 192 सदस्यों में से पांच देशों- अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और ब्रिटेन, को छोड़कर शेष 187 देशों का स्वाभाविक नेता बना रह सकता है। सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के बजाए भारत को परिषद के मानक को पूरा करने वाले सभी सदस्य देशों के लिए समान अधिकार की सदस्यता के निमित्त अभियान चलाना चाहिए। भारत का यह प्रयास यूएनओ की सुरक्षा परिषद सहित विश्व के सभी देशों में लोकतंत्र की जड़ें गहरी करने की दिशा में अहम सिद्ध होगी। (इस आलेख में मर्यादापुरूषोत्तम राम की सत्ता का वर्णन केवल लोकतांत्रिक इकाई की जनता के प्रति संवेदनशीलता को प्रकट करने के लिए दिया गया है।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here