नज़रअंदाज़ न करें ओबामा की सीख़

obamaहाल ही में तुर्की में हुए जी 20 सम्मेलन के समापन पर संवाददाता सम्मेलन के दौरान यू.एस राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आतंकवादी संगठन आई.एस.आई.एस  की तरफ मुस्लिम युवाओं के बढ़ते रुझान को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा की ‘मुस्लिम समुदाय की ओर से कट्टरता का जितना विरोध होना चाहिए वह नहीं हो रहा है’ . उन्होंने बोला की ‘मुस्लिम समाज को यह तय करना चाहिए की उनके बच्चे मजहबी कट्टरता की चपेट में न आये की वह धर्म के नाम पर लोगों की हत्या करने लगे’.

ओबामा ने अपनी बात में आगे कहा की ‘मुस्लिम समुदाय कहते है की हिंसा ठीक नहीं है लेकिन उनकी तरफ से चरमपंथियों के विचारों को खुल कर चुनौती नहीं दी गयी है’.हालाँकि ओबामा ने अपनी बात में यह भी कहा की ‘आई.एस.आई.एस कही से भी इस्लाम को प्रदर्शित नहीं करता है और विश्व भर के मुस्लिम इस आतंवादी संगठन के विचारों से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते है.’

ओबामा ने पहली बार इतनी बेबाकी से मुस्लिम समुदाय से यह बात कही है और उनकी यह चिंता जायज भी है.यह कहीं न कहीं मुस्लिम समुदाय की भरी चूक रही है की वो अपने युवाओं को आई.एस.आई.एस जैसे चरमपंथी संगठनों में जाने से रोक नहीं पाये है.मगर ओबामा की बात को समझने के बजाये भारत सहित विश्व के अन्य कुछ मुस्लिम संगठनों ने ओबामा की ही बात का विरोध शुरू कर दिया है.

आई.एस.आई.एस के उदय के वक़्त से ही मुस्लिम समुदाय का विरोध का तरीका काफी ढुलमुल रहा है .वह आई.एस.आई.एस का विरोध तो करते है मगर उसके पनपने के पीछे पश्चमी देशों को जिम्मेदार ठहराकर कर अपना हाथ पीछे खींच लेते है .यह सत्य है की इराक और सीरिया में आज जो स्थिति है उसके लिए अमेरिका का इन देशों में हस्तक्षेप और उसकी ख़राब नीति एक हद तक जिम्मेदार है.मगर सिर्फ अमेरिका को दोष देना कहाँ तक सही है.हमें इस सच्चाई को नहीं नकारना चाहिए की आई.एस.आई.एस की सेना में लड़के उनके द्वारा बताये गए इस्लाम से प्रभावित होकर उसमे शामिल हो रहे है.धार्मिक कट्टरता की नीव पर बने इस संगठन ने अपने द्वारा किये गए कृत्यों को धर्म के आधार पर हमेशा सही ठहराया है.वह युवाओं को अपने संगठन में शामिल होने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते है .अपने द्वारा की गई हत्याओं को क़ुरान में लिखी बातों का हवाला देकर जायज़ ठहराते है .मगर मुस्लिम संगठन इनके द्वारा कही बातों को तथ्यों को सामने रख गलत साबित नहीं कर पा रहे . वहीँ भारत के कुछ मुस्लिम नेताओं के आई.एस.आई.एस द्वारा किये गए पेरिस हमले को ‘क्रिया की प्रतिक्रिया’ कह कर सही ठहराना मुस्लिमों के साथ-साथ गैर-मुस्लिमों के मंन में भी इस्लाम को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करते है.

आज चरमपंथी संगठन अपने हर गलत मकसद को इस्लाम की दृष्टि से सही ठहरा कर इस्लाम को विश्व भर में एक कट्टर और खूंखार धर्म के रूप में प्रचारित कर रहे है.मगर इस्लाम के धर्मगुरु इन संगठनों की बातों और कृत्यों को उतने प्रभावी ढंग से गलत ठहराने में इनकी बराबरी नहीं कर पा रहे है.

इसलिए ओबामा की बात से सबक लेकर विश्व भर के मुस्लिम समुदायों को चाहिए की वह आई.एस.आई.एस जैसे संगठनों के खिलाफ एक जुट होकर इनका विरोध करें.युवाओं को जागरूक करें उन्हें समझाएं की किस तरह से ऐसे संगठन इस्लाम का गलत प्रचार कर रहे है.धर्म की आड़ में ये लोग बस अपनी दहशतगर्दी और हुकूमत को जिन्दा रखना चाहते है .कुरान में लिखा है की ‘और जिसने किसी नफ़्स को बचाया उसने मानो तमाम इन्सानों को ज़िन्दगी बख़्शी।’ इस्लाम के नाम पर आतंक फ़ैलाने वालों और इनको सही समझनेवालों को मुस्लिम समुदाय के लोग अगर बस क़ुरान की ही लिखी बातों का हवाला देकर गलत साबित करने लग जाएँ तो ऐसे कट्टरपंथी संगठनों का असली चेहरा सामने आते देर नहीं लगेगी.पश्चमी देशों और ओबामा की ख़िलाफ़त करने से बेहतर है की मुस्लिम समुदाय आई.एस.आई.एस का विरोध करे और अपने बच्चों को भटकने से बचाये.

 

अवन्तिका चन्द्रा

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