विचारधारा नहीं,उज्जवल राजनैतिक भविष्य का दौर

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तनवीर जाफ़री
संगठनात्मक स्तर पर होने वाले वाद-विवाद अथवा मतभेदों को लेकर राजनैतिक दल छोडऩे तथा किसी दूसरे राजनैतिक दल में चले जाने या फिर अपनी ज़मीनी राजनैतिक क्षमता को मद्देजनज़र रखते हुए स्वयं नया राजनैतिक गठित कर लेना जैसी घटनाएं भारतीय राजनीति में गत् सात दशकों से होती ही आ रही हैं। क्या कांग्रेस पार्टी तो क्या वामपंथी दल व दक्षिणपंथी संगठन या फिर समाजवादी संगठन सभी कभी न कभी विभाजित भी हुए हैं और एक-दूसरे राजनैतिक दलों के नेताओं का दूसरे राजनैतिक दलों में शरण लेने का सिलसिला भी काफी पुराना है। परंतु पूर्व में होने वाले राजनैतिक दल-बदल या संगठन स्तर पर होने वाले अदरूनी मतभेदों को लेकर पार्टी छोडऩे वाले नेताओं को वैचारिक स्तर पर इतना ‘ज़मीरफरोश’ होते पहले कभी नहीं देखा गया जितना इन दिनों देखा जा रहा है। प्राय: सभी नेता सत्ता के लालची व भूखे होते हैं यह कौन नहीं जानता? परंतु सत्ता के लिए ऐसे नेताओं द्वारा अपनी विचारधारा को त्याग देना, वैचारिक सोच से अधिक महत्व अपने उज्जवल राजनैतिक भविष्य को देना, यही आज के दौर की राजनीति की एक हकीकत बन चुकी है।
उत्तर प्रदेश में वर्तमान में एक वरिष्ठ मंत्री से जब मैंने यह पूछा कि कल तक आप कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थेे, आपको व आपके पूरे परिवार को बड़े से बड़ा पद पार्टी आलाकमान द्वारा हमेशा दिया जाता रहा है,पार्टी ने आप पर हमेशा विश्वास भी जताया है परंतु इन सबके बावजूद क्या वजह थी कि आपको कांग्रेस छोडक़र भारतीय जनता पार्टी का दामन थामना पड़ा? इस प्रश्र के उत्तर में जवाब यह मिला कि यदि मैं ऐसा न करता तो मेरा ‘राजनैतिक भविष्य’ समाप्त हो जाता और मेरी राजनैतिक मौत हो जाती। इस प्रकार की दल-बदल की छोटी-मोटी घटनाओं के पीछे आमतौर पर जो कारण होते हैं उनमें सर्वप्रथम तो अपने पार्टी टिकट की चिंता रहती है उसके बाद अपने परिवार व निकटस्थ लोगों को टिकट दिलाने की िफक्र रहती है। यदि यह श्रेणी पार कर ली तो मंत्री बनने की जुगत भिड़ाना और यदि इससे भी आगे बढ़ गए तो मनपसंद का मंत्रालय हासिल करना,राज्य मंत्री,स्वतंत्र प्रभार मंत्री या केबिनेट मंत्री के पदों के लिए जूझना, पार्टी में संगठनात्मक स्तर पर महत्वपूर्ण पद झटकना जैसी बातों को लेकर राजनेताओं को कभी-कभार पार्टी आलाकमान के विरुद्ध अपनी आवाज़ उठानी पड़ती है। इस संगठनात्मक विरोध स्वर में यदि आलाकमान ने अपनी सूझ-बूझ व रणनीति से नियंत्रण हासिल कर लिया फिर तो ऐसे मतभेद रफा-दफा हो जाते हैं अन्यथा ‘नेताश्री’ उस संगठन की विचारधारा को उसी कार्यालय में खूंटी पर लटका कर अपने उज्जवल राजनैतिक भविष्य के लिए दूसरी राजनैतिक विचारधारा का मुखौटा अपने चेहरे पर डाल लेते हैं।
उदाहरण के तौर पर कांगे्रस पार्टी से मोरार जी देसाई,जगजीवन राम,हेमवती नंदन बहुगुणा,पीए संागमा,शरद पवार,ब्रह्मनंद रेड्डी,जीके मूपनार,अर्जुन सिंह,नारायण दत्त तिवारी,मोहसिना िकदवई,ममता बैनर्जी,पी चिदंबरम, मुफ्ती मोहम्मद सईद,शंकर दयाल शर्मा जैसे और भी कई वरिष्ठ  नेताओं ने समय-समय पर कांग्रेस पार्टी में चलने वाले अपने अलग-अलग विवादों के कारण पार्टी तो ज़रूर छोड़ी परंतु इन नेताओं ने कभी विचारधारा के स्तर पर समझौता करने की कोई कोशिश नहीं की। न ही किसी विपरीत विचारधारा रखने वाली पार्टी में शामिल हुए। वजाए इसके इनमें से कई नेताओं ने अपने अलग राजनैतिक संगठन ज़रूर खड़े कर लिए और प्राय: यह सभी संगठन भी कांग्रेस पार्टी की गांधीवादी विचारधारा का ही अनुसरण करते थे और करते हैं। कांग्रेस (आर), कांग्रेस (टी)कांग्रेस फार डेमोक्रेसी,राष्ट्रवादी कांग्रेस,तृणमूल कांग्रेस तथा तमिल मनीला कांग्रेस आदि कुछ ऐसे ही संगठनों के नाम हैं जिनके नेताओं ने कांग्रेस पार्टी का समय-समय पर त्याग तो किया परंतु इन्होंने कांग्रेस की विचारधारा को कभी नहीं छोड़ा। परिणामत: ऐसे संगठनों के कई नेता समय आने पर,मतभेद दूर हो जाने के चलते कांग्रेस में वापस भी आते रहे हैं।
परंतु वर्तमान सुविधा भोगी राजनीति के दौर में संभवत: नेतागण भी यह भलीभांति समझने लगे हैं कि अब उनकी राजनैतिक हैसियत,क्षमता या जनमानस पर उनका प्रभाव इतना नहीं है कि वे अपने बलबूते पर कोई संगठन खड़ा कर सकें। ऐसे कुछ प्रयोग भी गत् एक दशक के भीतर ही कई नए-नवेले राजनैतिक संगठन बनाकर विभिन्न क्षेत्रीय नेताओं द्वारा किए भी गए। परंतु वे पूरी तरह फेल साबित हुए। उदाहरण के तौर पर हरियाणा में कभी हरियाणा विकास पार्टी के नाम से चौधरी बंसीलाल ने अपना राजनैतिक दल गठित किया जो उनके देहांत के बाद खुद भी दम तोडऩे लगा। चौधरी भजन लाल ने हरियाणा जनहित कांग्रेस के नाम से क्षेत्रीय दल बनाया तो कभी कांग्रेस के ही एक और नेता रहे विनोद शर्मा ने अपनी हरियाणा जनचेतना पार्टी गठित कर पिछले विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर चुनाव भी लड़ डाला। परंतु जहां जनहित कांग्रेस व हरियाणा विकास पार्टी के राजनैतिक वारिस इस समय पुन: कांग्रेस पार्टी में शामिल हो चुके हैं वहीं हरियाणा जनचेतना पार्टी व इसके मुखिया अपने उज्जवल राजनैतिक भविष्य के लिए नई ज़मीन तैयार करने में लगे हुए हैं। गौरतलब है कि जनहित कांग्रेस तथा हरियाणा विकास पार्टी ने तो लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में कहीं न कहीं अपनी जीत के परचम भी लहराए थे। बंसीलाल ने तो भाजपा के सहयोग से राज्य में अपनी नवगठित पार्टी की सरकार भी बना ली थी। परंतु हरियाणा जनचेतना पार्टी तो पूरे राज्य में एक सीट भी जीत पाने में असमर्थ रही यहां तक कि उसके मुखिया विनोद शर्मा भी अपनी विधानसभा सीट न जीत सके।
बहरहाल, इसी प्रकार के जोखिम से बचने के लिए तथा अपनी ज़मीनी हकीकत व राजनैतिक औकात को भांपते हुए आज के नेताओं ने यही शार्टकट तरीका इस्तेमाल किया है कि अपने राजनैतिक जीवन में विचारधारा जैसी किसी चीज़ को गंभीरता से लेना ही नहीं है। और केवल अपने उज्जवल राजनैतिक भविष्य तथा सत्ता लपकने की जुगत में लगे रहने वाली राजनीति को ही प्राथमिकता देनी है। ऐसे दल-बदलू तथा विचारधारा को तिलांजलि देने वाले नेताओं की ही बदौलत आज भारतीय जनता पार्टी की मोदी व योगी सरकारें सत्ता में हंै। ऐसे ही वैचारिक ज़मीरफरोशों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए एक धर्मनिरपेक्ष देश पर हिंदुत्ववादी सोच रखने वाली भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में लाने में सहायता की है। आज के सी पंत,हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे वरिष्ठ गांधीवादी नेताओं के ऐसे परिजन जिन्हें कांग्रेस पार्टी ने हमेशा मान-सम्मान व पद सबकुछ दिया परंतु वे भी आज भारतीय जनता पार्टी के पाले में बैठ चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि जैसी कि कहावत मशहूर है कि नया-नया मुसलमान कुछ ज़्यादा ही अल्लाह-अल्लाह बोलता रहता है उसी कहावत को चरितार्थ करते हुए यह कल के कांग्रेसी और आज के भाजपाई अपनी जो पौशाक पहनते हैं कभी-कभी उसका रंग मोदी या योगी के भगवे रंग से भी ज़्यादा चटख दिखाई देता है। आज पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता तथा धर्मनिरपेक्ष भारतीय संविधान पर मंडरा रहे खतरे पर जब भी बहस छिड़ती है तो कल तक धर्मनिरपेक्षता के यही तथाकथित रखवाले आज दूसरे पाले में खड़े होकर हिंदुत्ववादी राजनीति के पैरोकार दिखाई देते हैं। ज़ाहिर है इसकी एकमात्र वजह यही है कि यह विचारधारा की नहीं बल्कि अपने उज्जवल राजनैतिक भविष्य पर आधारित राजनीति करते हैं। ऐसे वैचारिक दल-बदल करने वाले नेता देश के लिए एक बड़ा खतरा हैं।

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