स्वादेशी मुहिम क्षणिक नहीं भावी भविष्य के लिये हो

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जगदीश यादव

कहते हैं कि मौका भी है और समय की मांग व दस्तूर भी। दम भी है, कदम भी है और सबसे बड़ी बात इच्छा शक्ति भी । इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान की रीत दो-गला वाली रही है और उसके कथित दोस्त चीन पहले भी हमारे पीठ में छूरा घोंप चुका है। लेकिन अब समय आ गया है कि पाक के नापाक और चीन के चाल और उसके मंसूबों का उचित जवाब देने का। एक लम्बे अंतराल के बाद स्वादेशी की मुहिम छिड़ी है तो इसे बरकार रखना हमारे भावी भविष्य के लिये मील का पत्थर साबित होगा।

चांद पर बैठकर भी रखें निज देश का स्वाभिमान।

गगन से वतन तक गुंजित करना है स्वदेशी गान।

बता दें कि चीन में बने उत्पादों का उपयोग नहीं करने को लेकर चल रही जागरूकता मुहिम की वजह से केवल जयपुर में चीन निर्मित उत्पादों की बिक्री करीब चालीस प्रतिशत घट गई है। उरी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के चलते कई संस्थाओं ने लोगों से चीन के बने उत्पादों के बहिष्कार करने की अपील की है। इसका असर चीन में निर्मित उत्पादों की बिक्री पर सीधा नजर आ रहा है। खरीददार चीन में बने उत्पाद से किनारा कर स्वदेशी उत्पाद खरीद रहे हैं। देश भर में उक्त स्वादेशी मुहिम का सकरात्मक असर देखा जा रहा है और इसे बस बरकरार रखना होगा  एक व्यवसायिक संगठन के आकलन के अनुसार दीपावली के मौके पर चीन के उत्पादों के बहिष्कार करने का असर चीन में निर्मित सजावटी लाइट और अन्य अन्य उत्पादों की बिक्री 30 से 40 प्रतिशत तक कम हुई है। एलसीडी की मांग में दस से पंद्रह प्रतिशत और मोबाइल बिक्री दो प्रतिशत तक कम हुई है।

चीनी सामानों के बहिष्कार पर देश भर में तमाम तरह की बातें भी हो रही है। जाहिर है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा होना एक स्वास्थ्य परिवेश की संरचना आधार के पुख्ता होने की मुहर है तो आलोचना व बहस का दौर भी जारी है। वैसे आलोचना व बहस किसी भी देश के विकास व गणतंत्र का अहम हिस्सा माना जा सकता है। वैसे प्रश्न भी उठाया जा रहा है  कि जो लोग इस बाजार में चीन के उत्पादों से अपनी रोटी कमा रहे हैं उनकी रोटी का विकल्प सुझाने की भी जरुरत है। ऐसा नहीं होने पर उक्त लोग कहां जाएगें जो चीन के उत्पाद बेच कर दो जून की रोटी का जुगाड़ करतें हैं। सवाल यह भी रखें जा रहें हैं कि आखिर हम किफायत के मामले में क्या चीन के उत्पाद को टक्कर दें सकेगें। क्या हमारे देश में वह आधारभूत ढांचा है जो यहां के लघु उद्योगों को संचालित करने वालों को चीन के उत्पाद को टक्कर देने में सहयोगी होगा। साफ कहें तो भारतीय व्यापारी हर वो काम करना चाहता है जिसमे गारन्टी के साथ मुनाफा हो | भारतीय व्यापारी 100 रूपये खर्च करके 120 रुपये कमाना चाहता है।वहीं 100 लगा कर 1000 या फिऱ 10000  कमाने वाला काम नहीं पाता है। शायद यही कारण है कि हम इनफ़ोसिस जैसा प्रतिष्ठान तो खड़ा कर देते हैं पर माइक्रोसॉफ्ट जैसा प्रतिष्ठान खड़ा करने की हम सोंचते भी नहीं। आपको बता दें कि इनफ़ोसिस जैसे संस्थान इंजीनियर की सेवाएं बेंचकर मुनाफा कमाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कोई मजदूर कानट्रेक्टर आप से500 लेकर और मजदूर को 300 देकर  200 का मुनाफा कमाता है।

120 करोड़ की आबादी वाला देश आज चीन की टक्कर में उत्पादों के किफायती के मामले में क्यों असहाय है यह बताने की जरुरत नहीं है। बस बात यहीं आकर दम तोड़ती है कि क्या हमारे पास चीन के जैसा या उसके स्तर का तकनीक है जो हमारे स्वादेशी अभियान के लिये रीढ़ की हड्डी साबित हो। खैर हमारी संस्कृति ही नहीं हम भारतीय हमेशा से ही सकरात्मक रहें हैं।खैर वैसे भी सामने प्रकाश पर्व दीपावली है जो कि सकरात्मकता का प्रतिक है। हमेशा सकरात्मक रहें और सोचे। अपने आपको देश का प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से देश ही नहीं दुनियां के अमन व विकास पसंद देशों को काफी आशा है कि वह जहां आतंकवाद के सफाये के लिये बेहतर दिशा में काम कर रहें हैं वहीं वह देश के विकास और स्वादेशी संस्कृति व लघु उद्योगों के उत्थान के लिये सकरात्मक पीएम साबित होंगें। उम्मीद करते हैं कि पीएम मोदी देश से आतंकवाद का सफाया कुछ इस तरह से करेंगें जैसा कि हम दीपावली सह अन्य पर्वों पर अपने घरों से कूड़ा-कचरा साफ करते हैं।

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