कुलपति नहीं, मैं मीडिया शिक्षक रहना चाहता हूं- प्रोफेसर सुरेश

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मनोज कुमार

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर केजी सुरेश मध्यप्रदेश की पत्रकारिता, खासकर मध्यप्रदेश की पत्रकारिता शिक्षा में भले ही अनचीन्हा नाम हो सकता है लेकिन देश और दुनिया की पत्रकारिता और पत्रकारिता शिक्षा में सुप्रतिष्ठित नाम है. प्रोफेसर केजी सुरेश खांटी किस्म के पत्रकार रहे हैं. पीटीआई जैसी प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी में मुख्य राजनीतिक संवाददाता रहते हुए उन्होंने पत्रकारिता में नए आयाम गढ़े। पत्रकारिता एवं संचार विशेषज्ञ के रूप में दिल्ली से दुनिया भर में अपनी छाप छोडऩे वाले प्रोफेसर केजी सुरेश अपने उम्र से अधिक अनुभव रखते हैं. 26 सितम्बर को वे अपनी उम्र के एक नए पड़ाव पर होंगे और सुखद यह है कि इस बार पत्रकारिता में मील का पत्थर कहे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधा और राष्ट्रकवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के नाम से स्थापित पत्रकारिता स्कूल में अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करेंगे. संचार और पत्रकारिता में दखल रखने वाले प्रोफेसर सुरेश दादा माखनलाल के सपनों को जमीन पर उतारने के लिए कृतसंकल्पित हैं. वे कहते हैं कि ‘एमसीयू से मैं एक शिक्षक के रूप में जुड़ा रहा हूं और आगे भी मैं एक शिक्षक की भूमिका में रहना पसंद करूंगा.’प्रोफेसर सुरेश एमसीयू को एक नई पहचान देना चाहते हैं. लीक से हटकर काम करने में उनकी रूचि रही है और इसलिए वे नए जमाने के साथ पत्रकारिता शिक्षा को आगे ले जाना चाहते हैं. एमसीयू के नए कैंपस में कम्युनिटी रेडियो और इंटरनेट रेडियो की स्थापना करने की दिशा में कार्यवाही आरंभ कर दी है. एमसीयू के लम्बे समय से स्थगित प्रकाशनों को आरंभ करना और उन्हें स्तरीय स्वरूप देने की पहल भी की है. वे मीडिया एजुकेशन के अपने अनुभव के साथ किताबी बनाने के बजाय व्यवहारिक बनाना चाहते हैं ताकि पत्रकारिता के विद्यार्थियों को मीडिया हाऊस में सम्मानजनक स्थान मिल सके. वे शिक्षण की गुणवत्ता को भी सुधारने की दिशा में चर्चा कर रहे हैं. वे परम्परागत ढंग से बाहर निकल कर आज के जमाने के साथ पत्रकारिता शिक्षा और शिक्षक को ले जाने के लिए संकल्पित हैं।  यहां यह उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि एमसीयू आने के पहले प्रोफेसर सुरेश के जी सुरेश स्कूल ऑफ मास मीडिया, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून में डीन के पद पर कार्य कर रहे थे. एमसीयू को एक नई सूरत देने के लिए मध्यप्रदेश शासन ने उनके नाम का चयन किया तो यह उनके लिए अवसर था. प्रोफेसर सुरेश चाहते तो जिस जगह पर थे, वहां हैंडसम सेलरी थी और आजादी भी लेकिन चुनौतियों को हाथों में लेने वाले प्रोफेसर सुरेश ने झट से हामी भर दी. बातचीत में वे बताते हैं कि एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अपना अनुभव बांटना और यहां से नए अनुभव लेकर पत्रकारिता की नयी पीढ़ी को नई जमीन देने का उनका इरादा है. जहां तक हैंडसम सेलरी की बात है तो एक प्रतिबद्ध पत्रकार के लिए यह सब बेमानी है. वे कहते हैं कि मुझे संतोष होगा कि मध्यप्रदेश शासन और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, उस पर मैं खरा उतऊं, तब मुझे संतोष होगा. स्वयं को कुलपति कहलाने के पहले वे पत्रकार कहलाना पसंद करते हैं.प्रोफेसर केजी सुरेश का पत्रकारिता एवं संचार का फलक काफी बड़ा है. देहारदून के पहले वे भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक रहे हैं. अपने कार्यकाल में उन्होंने आइआइएमसी को नया स्वरूप दिया. आईआईएमसी के महानिदेशक के रूप में श्री सुरेश ने भारतीय भाषा पत्रकारिता को विस्तार दिया। अपने कार्यकाल में क्रमश: मराठी और मलयालम पत्रकारिता को अपने अमरावती, महाराष्ट्र और कोट्टायम, केरल परिसर शुरू किया गया। उन्होंने उर्दू के सर्टिफिकेट कोर्स को डिप्लोमा कोर्स में परिवर्तन कर और उपयोगी बनाया। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के सहयोग से आयआयएमसी ने संस्कृत पत्रकारिता में तीन महीने का प्रमाणपत्र कार्यक्रम भी शुरू किया था. नए दौर की पत्रकारिता को दृष्टि में रखकर न्यू मीडिया विभाग के अलावा भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग की भी स्थापना का श्रेय भी उन्हें जाता है. इसके अलावा भारत में सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को बढ़ावा देने के लिए आयआयएमसी में सामुदायिक रेडियो केंद्र की स्थापना और पूरे भारत में मीडिया शिक्षकों के प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के लिए राष्ट्रीय मीडिया संकाय विकास केंद्र की स्थापना शामिल हैं। प्रो. सुरेश प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली की अकादमिक परिषद के सदस्य हैं. सोसाइटी ऑफ सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, कोलकाता, भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की अनुसंधान समिति, सलाहकार परिषद, दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म, दिल्ली विश्वविद्यालय, अकादमिक परिषद, हिमाचल प्रदेश के केंद्रीय विश्वविद्यालय और स्कूल ऑफ अबनिंद्रनाथ टैगोर स्कूल ऑफ क्रिएटिव आर्ट्स एंड कम्युनिकेशन स्टडीज, असम विश्वविद्यालय, सिलचर के साथ स्कूल ऑफ मॉर्डन मीडिया के साथ भी संबद्ध रहे। प्रोफेसर सुरेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की राष्ट्रीय परिषद की पुरस्कार चयन समिति के सदस्य हैं। डीडी न्यूज नईदिल्ली में वरिष्ठ सलाहकार के रूप में जुड़े रहे. इसके साथ ही एशियानेट न्यूज़ नेटवर्क में संपादकीय सलाहकार एवं डालमिया भारत एंटरप्राइजेज में गु्रप मीडिया सलाहकार भी रहे. प्रोफेसर सुरेश जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आपदा अनुसंधान के लिए विशेष केंद्र में संचार कौशल के लिए प्रभारी प्रोफेसर रहे हैं. प्रोफेसर सुरेश को राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम एशिया द्वारा राष्ट्रमंडल युवा राजदूत नामित किया गया था। मीडिया में रिसर्च के लिए प्रेम भाटिया फैलोशिप प्राप्तकर्ता प्रोफेसर सुरेश को पीआरएसआई लीडरशिप अवार्ड से सम्मानित किया गया है। नवंबर 2018 में बिजनेस वल्र्ड मैगज़ीन और एक्सचेंज 4मीडिया द्वारा स्थापित मीडिया शिक्षा पुरस्कार, एकता, ब्रदरहुड और सांप्रदायिक सद्भाव और लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड के लिए पहला ख्वाजा गरीब नवाज अवार्ड से मीडिया शिक्षा में योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस वर्ष केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का प्रतिष्ठित ‘गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान’ से सम्मानित किया गया।प्रोफेसर सुरेश भारत के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लिए भारतीय पैनोरमा 2018 और 2017 के प्रतिष्ठित फीचर फिल्म जूरी और नॉन-फिक्शन जूरी के सदस्य थे। मार्च 2015 में सियोल में वल्र्ड मीडिया कॉन्फ्रेंस में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले एकमात्र पत्रकार हैं. प्रोफेसर सुरेश अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, जापान, यूनाइटेड किंगडम, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, हंगरी, कतर, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका सहित पूरे भारत और दुनिया की यात्रा कर मीडिया शिक्षा में भारत के दृष्टिकोण से पूरी दुनिया को अवगत कराया है.

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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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