डॉ. वेदप्रताप वैदिक
आज गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने देश के सभी बैंकों को निर्देश भेजा है कि वे अपनी चेकबुक और पासबुक हिंदी में भी तैयार करें। इस निर्देश का मैं हृदय से स्वागत करता हूं। गृहमंत्री राजनाथसिंह को बधाई कि इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने कमर कस ली है। लेकिन यह ध्यान रहे कि बैंकों का सारा काम सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी में करने से भी काम नहीं चलेगा। वह काम-काज हर प्रांत की प्रांतीय भाषा और हिंदी में भी होना चाहिए। अंग्रेजी में साधारणतया कोई काम-काज नहीं हो तो भी चलेगा, हालांकि अंग्रेजी हस्ताक्षर और अंग्रेजी चेक स्वीकार करने में फिलहाल कोई बुराई नहीं है। बैंक इस सरकारी आदेश का पालन तो करेंगी ही लेकिन जब तक जनता स्वयं अपना हिसाब-किताब अपनी भाषा में नहीं करेगी तो बैंक क्या कर लेंगे ? भारत के करोड़ों लोगों से मैं अनुरोध करता हूं कि वे अपने हस्ताक्षर हिंदी तथा स्वभाषाओं में करें। कल ही वे अपनी बैंक में जाएं और अपने दस्तखत अंग्रेजी से बदलकर हिंदी में करवाएं। यह शुरुआत है। फिर चेक भी स्वभाषा में लिखें और पासबुक भी स्वभाषा में बनाएं। इस तरह के पोस्टर और सूचना-पट हर बैंक में लगवाए जाएं। जिस बैंक-शाखा में सबसे ज्यादा स्वभाषा में काम हों, दस्तखत हों, उसे पुरस्कृत किया जाए। मेरा लक्ष्य है कि कम से कम दस करोड़ लोगों के दस्तखत बदलवाए जाएं। मैं सब नेताओं से निवेदन करता हूं कि अपनी सभाओं में हाथ उठवाकर लोगों से यह संकल्प करवाएं।