-क़ैस जौनपुरी-
हां, हम समझ गए
क़ि कयामत आएगी
हमें आग में जलाएगी
हम डर गए
अब, बस करो ना
इतना ही कब्ज़े में रखना था
तो बनाया ही न होता
किसने कहा था, हमें बनाओ
खुराफ़ात तो आप ही को सूझी थी ना
अब भुगतो!
-क़ैस जौनपुरी-
हां, हम समझ गए
क़ि कयामत आएगी
हमें आग में जलाएगी
हम डर गए
अब, बस करो ना
इतना ही कब्ज़े में रखना था
तो बनाया ही न होता
किसने कहा था, हमें बनाओ
खुराफ़ात तो आप ही को सूझी थी ना
अब भुगतो!
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।