गे्रटर नोएडा भूमि मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा किसानों को राहत मिलने के बाद अब यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण से प्रभावित किसानों ने भूमि अधिग्रहण को लेकर आंदोलन का शंखनाद कर दिया है। नतीजतन नोएडा विस्तार की तरह यमुना एक्सप्रेसवे पर बसाई जा रही एशिया की सबसे बड़ी शहरी बस्ती पर खतरे के बादल मंडराने लगें है। इस नजररिए से अट्टा गुजरान गांव में 45 गांवों के किसानों ने एक महापंचायत की जिसमें बहुमत से जमीन अधिग्रहण के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का ऐलान किया । इस प्राधिकरण ने 2008 में किसानों की जमीन यमुना एक्सप्रेसवे बनाने के लिए अधिग्रहण की थी। जमीन के दाम किसानों को तो 850 रूपए प्रति वर्ग मीटर की दर से दिए गए लेकिन यहीं जमीन जे़पी़ समूह से साठगांठ करके उद्योग लगाने व बस्ती बनाने के लिए बड़े उद्योगपतियों और कालोंनाईजरों को दे दी गई, जो बाद में 11000 हजार रूपए प्रति वर्ग मीटर की दर से बेची गई। जब किसानों ने जमीन का उपयोग बदले जाने की स्थिति को लेकर प्राधिकरण में आपत्तियां दर्ज कीं तो, उन्हें सुनना भी उचित नहीं समझा गया। अब किसान पंचायत ने फैसला लिया है कि नोएडा से आगरा जाने वाले महामार्ग के अलावा उद्योग और नगर बसाने के लिए वह एक इंच भी जमीन नहीं देंगे।
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के चार जिलों अलीग़, मथुरा, हाथरस और आगरा के 850 गांवों की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को एक्सप्रेस हाईवे परियोजना के लिए अधिग्रहण संबंधी कार्रवाई का किसानों ने क्रमबद्ध विरोध दर्ज करना शुरू कर दिया है। दरअसल यमुना एक्सप्रेस हाईवे के नाम पर औद्योगिक विकास प्राधिकरण के द्वारा राज्य सरकार ने किसानों की कृषि भूमि को हथियाने की अधिसूचना 2008 में जारी की थी। इ इस योजना के तहत हाथरस जिले के 300 गांव, अलीग़ के 105, मथुरा के 183 और आगरा के 171 गांव प्रभावित हुए हैं। यदि यह योजना पूरी तरह अमल में आ जाती है तो कई गांव तो पूरी तरह नेस्तनाबूत हो जाएंगे। क्योंकि इसके पूर्व इन्हीं चार जिलों की उपजाऊ भूमि राज्य सरकार आवासीय और महामार्ग योजनाओं के लिए पहले ही हथिया चुकी है। अब 850 गांवों की कृषि भूमि यमुना एक्सप्रेस मार्ग के बहाने हड़पने की तैयारी है। गांव और किसानों को उजाड़ने वाली इतनी बड़ी भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई इससे पहले कभी किसी राज्य में नहीं हुई। चार जिलों का यह क्षेत्र आलू की उम्दा किस्म की पैदावार का अनूठा भूभाग है। जिसे आलू की थाली कहा जाता है। यदि इस मार्ग के निर्माण और उद्योग व कालोनी बनाने के मकसद में मायावती सरकार सफल हो जाती है तो गंगायमुना का यह दोआब प्रदेश कृषि के मानचित्र से ही विलुप्त हो जाएगा। इसलिए किसान अपने वजूद को बचाने की लड़ाई लड़ने के लिए पुरजोर तैयारी में लग गए है।
इस सबके बावजूद प्रदेश की मुखिया मायावती खामोश है। वे उस रिलायंस पॉवर प्रोजेक्ट से भी सबक लेने को तैयार नहीं है, जिसके लिए किसानों से जबरन भूमि छीन ली गई थी। इस भूमि के परिणामस्वरूप किसान आंदोलित हुए और उन्होंने मुलायम सरकार को सत्ता से बेदखल करके ही दम लिया था। अब तक रिलायंस की बिजली परियोजना की तो बुनियाद ही नहीं रखी जा सकी है। अलबत्ता रिलायंस ने इस कब्जाई भूमि पर आवासीय बस्ती बनाए जाने की परिकल्पना जरूर शुरू कर दी है। यह भी खुलासा हुआ है कि इस ऊर्जा परियोजना के संयंत्र लगाने के लिए केवल ाई सौ हेक्टेयर जमीन ही पर्याप्त थी, जबकि दस हजार हेक्टेयर भूमि अधिग्रहण की गई है। लिहाजा जरूरी है कि भूमि का स्वरूप बदलकर जो आवासीय बस्ती बनाकर रिलायंस समूह करोड़ों अरबों के बारे न्यारे करने के मंशूबे साधे हुए है उस पर अदालत के दखल से अंकुश लगे।
यमुना एक्सप्रेस हाइवे की तरह ही उत्तर प्रदेश सरकार की विनाशकारी प्रस्तावित परियोजना गंगाएक्सप्रेस हाइवे है। इसके तहत नोएडा और बलिया के बीच गंगा नदी के चौड़े पाट के बीचोंबीच आठ कतारों वाली सड़क बनाई जानी है। यह परियोजना अमल में आती है तो दोआब क्षेत्र की 10 लाख 47 हजार वर्ग मीटर यानी 5863 हेक्टेयर भूमि डामरीकरण युक्त काली पट्टी में तब्दील हो जाएगी। इस कारण सिंधुगंगा के इस दोआब क्षेत्र में कई तरह के पर्यावरणीय संकट खड़े हो जाएंगे। कृषि की दृष्टि से यह भूमि बेहद उपजाऊ है। क्योंकि गंगायुमना नदियां प्रति वर्ष बरसात में ताजा मिट्टी अपनी लहरों के साथ बहाकर लाती हुई इस दोआब क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से बिछाती रहती हैं, नतीजतन इस क्षेत्र की उर्वरा शक्ति हर साल बहाल हो जाती है। इसके अलावा सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता भी गंगा की कोख में भरपूर है।
दरअसल इस योजना की पॢष्ठभूमि में योजनाकारों की कुटिल औद्योगिक मंशा निहित है। इस मंशा के अनुसार पांच सौ बड़े और सात छोटे उद्योग लगाए जाना परियोजना का हिस्सा है। जिसमें भारी पूंजीनिवेश की उम्मीद है। यदि यह योजना फलीभूत हो जाती है तो उद्योगों से अपशिष्ट के रूप में निकलने वाला मलबा पवित्र गंगायमुना को तो प्रदूषित करेगा ही, चिमनियों से निकलने वाला धुंआं वायु प्रदूषण के साथ फसलों के लिए भी संकट बनेगा।
गंगायमुना में मलबा भरते रहने से भविष्य में गंगायमुना की सतह उथली हो जाएंगी, जिसके दुष्फल स्वरूप कालांतर में बरसात के मौसम में ये नदियां अपना परंपरागत रास्ता भी बदल सकती हैं। ऐसा होता है तो इन नदियों के मार्ग में आने वाले कई शहरों व कस्बों की आबादी बा़ का कहर झेलने को भी विवश होगी।
अदूरदर्शिता और तात्कालिक लाभ के चलते वैसे भी हम जीवनदायी नदियों को संकट में डाल चुकें हैं। उद्योग और नगरों के परनाले नदियों में खोल देने से नदियों को पहले ही हम प्रदूषित कर चुके हैं। अब यदि एक्सप्रेस हाइवे भी इन्हीं नदियों की धार में बना दिए जाते हैं तो नदियों का अस्तित्व खत्म होना तय है। कृषि प्रधान देश में कृषि की अनदेखी कर औद्योगिक विकास के नाम पर नदियों को चौपट करना, विनाश को खुला आमंत्रण देना है। जबकि प्राकृतिक संपदा के रूप में नदियों को बचाए रखना हमारा राष्ट्रीय दायित्व होना चाहिए।