अब बेनकाब हो ही जानी चाहिए 9/11 की साजिश

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-तनवीर जाफ़री

अमेरिका पर 9/11 को हुए अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले के बाद जहां एक ओर पूरी दुनिया ने आतंकवाद का सबसे भयानक चेहरा देखा वहीं इसी दुनिया का एक बहुत बडा वर्ग जिसमें अमेरिका के तमाम लोग भी शामिल हैं, को इस हादसे के पीछे विश्व का अब तक का सबसे बड़ा एक सुनियोजित षड्यंत्र भी नार आया। गौरतलब है कि जार्ज बुश द्वितीय का कार्यकाल अमेरिका के लिए एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण कार्यकाल गिना जाएगा जिसमें न केवल ईसाईयत व इस्लाम के मध्य सभ्‍यता के संघर्ष की अवधारणा को विश्व स्तर पर बल मिला बल्कि उनके कार्यकाल में अमेरिका को सबसे अधिक बदनामी भी उठानी पड़ी। दुनिया जार्ज बुश की उस शर्मनाक बिदाई को कभी भूल नहीं पाएगी जबकि उन्हें इरांक में एक पत्रकार ने आक्रोश में आकर अपने जूते का निशाना बनाया। और बुश पर चले इस जूते की घटना की पुनरावृति इस घटना के तुरंत बाद व्हाईट हाउस केसमक्ष स्वंय अमेरिकी नागरिकों द्वारा एक प्रर्दशन कर की गई। दुनिया में तमाम लोग ऐसे हैं जो अभी तक यह मांग करते आ रहे हैं कि इराक़व अंफग़ानिस्तान पर अमेरिका द्वारा अकारण किए गए हमलों के लिए जार्ज बुश पर युद्ध अपराध का मुकदमा चलाना चाहिए।

9/11 को लेकर ताजातरीन विवाद एक बार फिर उस समय छिड़ा है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ के न्यूयार्क में आयोजित हुए ताज़ातरीन वार्षिक अधिवेशन में ईरानी राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद द्वारा विश्व की सबसे बड़ी पंचायत के समक्ष यह आरोप लगाया गया कि 9/11 के हमले में स्वयं अमेरिका का ही हाथ था। नेजाद ने 9/11 के हमले को एक बड़ी अमेरिकी साजिश बताया तथा स्पष्ट रूप से यह कहा कि यह हमला अमेरिका ने ही कराया था। जिस समय ईरानी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असे बली में बड़े ही आत्मविश्वास के साथ ज़ोरदार ढंग से अपनी यह बात कही उस समय कनाडा, आस्ट्रेलिया ,न्यूजीलैंड तथा कोस्टरेका आदि देशों ने नेजाद के वक्तव्य के विरोध स्वरूप सदन से बहिष्कार कर दिया। उधर ईरानी राष्ट्रपति के इस आरोप के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने उनके आरोपों को निराधार, वैमनस्यपूर्ण तथा अक्षम्‍य बताकर अपना फर्ज निभाया। सवाल यह है कि ईरान का निर्वाचित राष्ट्रपति जैसा कोई जिम्‍मेदार व्यक्ति तथा लोकतांत्रिक देश का मुखिया अमेरिका में आतंकवाद का निशाना बने उसी शहर न्यूयार्क में जाकर बिना किसी वास्तविकता के इस प्रकार के अनर्गल व निराधार आरोप लगा सकता है? दूसरी बात यह भी है कि भले ही यह आरोप किसी राष्ट्र के मुखिया द्वारा दुनिया के सबसे बड़े मंच से पहली बार क्यों न लगाए गए हों परंतु वास्तव में अमेरिकी बुश प्रशासन पर यह आरोप कोई पहली बार नहीं लगाए जा रहे हैं।

9/11 के हमलों के पीछे एक बड़ी साजिश का संदेह सर्वप्रथम अमेरिकी लोगों द्वारा ही व्यक्त किया गया था। फ़ारेनहाईट 9/11 नामक फिल्म के निर्माता माइकल मूर ने इस फिल्म में यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि किस प्रकार ओसामा बिन लाडेन व जार्ज बुश के मध्य गहरे पारिवारिक संबंध थे। और किस प्रकार उन्हीं संबंधों को आधार बनाकर 9/11 के हमलों की साजिश रची गई। अमेरिका व यूरोप में इसके अतिररिक्त भी कई ऐसी फिल्में बन चुकी हैं जिनमें 9/11 के हमले को पूर्णतया एक सुनियोजित षडयंत्र बताया गया है। अभी कुछ समय पूर्व क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति फैदल कास्त्रो ने अंतर्राष्ट्रीय साजिशों का भंडाफोड़ करने वाले एक लेखक से मुलांकात की। इस दौरान कास्त्रो ने कहा कि जार्ज बुश को जब अमेरिकी नागरिकों के समक्ष दहशत का हौवा खड़ा करना होता था उसी समय वह तुरंत ओसामा बिन लादेन का नाम लेने लग जाता था। और यह बताने लगता था कि लादेन अब क्या करने जा रहा है। परिणामस्वरूप दहशत की शिकार अमेरिकी जनता का ध्यान बंट जाता था। इस प्रकार लादेन की ओर से बुश की सहायता करने में कोई कमी नहीं की गई। अर्थात् लादेन ने बुश को हमेशा मदद पहुंचाई। कास्त्रो का तो यहां तक आरोप है कि लादेन बुश के अधीन काम करता था। उन्होंने अपने इन आरोपों के समर्थन में विक्कीलीक्स नामक उस वेबसाईट का भी हवाला दिया जिसमें पिछले दिनों अंफग़ान युद्ध संबंधी तमाम गुप्त दस्तावेज उजागर किए गए हैं। कास्त्रो का आरोप है कि उन दस्तावेजों से यह प्रमाणित होता है कि लादेन सी आई ए का एजेंट था तथा वह अमेरिका के लिए ही काम करता रहा है।

इन सब के अलावा अमेरिका में ही तमाम ऐसी किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें 9/11 की साजिश का भंडाफोड़ किया गया है तथा बुश प्रशासन की उस सरकारी घोषणा का विरोध किया गया है जिसके तहत 9/11 के बाद सरकारी तौर पर बुश प्रशासन द्वारा यह विज्ञप्ति जारी की गई थी कि-‘9/11 का हमला अरब के अलकायदा से संबद्ध मुसलमानों द्वारा रचा व अंजाम दिया गया था’। एक अमेरिकी संस्था ज़ोग्बी इंटरनेशनल पोल ने 2007 में एकसर्वेक्षण कराया था जिसके अनुसार दो तिहाई अमेरिकी यह चाहते थे कि 9/11 के हमले के लिए जार्ज बुश व तत्कालीन उपराष्ट्रपति डिकचैनी की जांच होनी चाहिए जबकि 30 प्रतिशत अमेरिकी इन्हें प्रतिनिधि सभा द्वारा तुरंत अपराधी घोषित करने के पक्षधर थे। उधर न्यूयार्क के ही लगभग 1250 आर्केटिक्ट एवं इंजीनियर्स के एक संगठन ने अमेरिका में 9/11 की गहन जांच कराए जाने की मुहिम छेड़ी हुई है। इन लोगों का मानना है कि जिस प्रकार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के विशाल टॉवर से विमान टकराया तथा उसके बाद जिस प्रकार उस टॉवर के ध्वस्त होने का दृश्य देखा गया वह अपने आप में एक बहुत ही सुनियोजित एवं अति नियंत्रित षड्यंत्र प्रतीत होता है। तमाम संदेह कर्ताओं का आरोप है कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की पूरी बिल्डिंग में 9/11 से पूर्व ही बड़ी मात्रा में विस्फोटक व बारूद लाकर भर दिए गए थे। यह भी आरोप है कि उस टॉवर से केवल विमान ही नहीं टकराया बल्कि विमान से टॉवर पर एक मिसाईल हमला भी करीब से जाकर किया गया था। यहां एक और बात संदेहपूर्ण यह है कि मात्र विमान टकराने से ही पूरे टॉवर का मलवा बारीक राख के ढेर में कैसे तबदील हो गया? टॉवर पर हुए हमले के लगभग 7 घंटों के बाद वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का टॉवर न07 जोकि 47 मंजिला भवन था तथा मुख्‍य टॉवर से कुछ दूरी पर था, बड़े ही हैरत अंगो ढंग से अचानक वह भी ध्वस्त हो गया तथा उसी प्रकार राख के ढेर में परिवर्तित हो गया। आंखिरकार इस घटना के पीछे का रहस्य क्या था?।

9/11 पर संदेह की उंगलियां उठने के एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों अथवा हजारों ऐसे कारण हैं जिन्हें लेकर किसी का भी इस साजिश पर संदेह क्या बल्कि विश्वास करना भी स्वाभाविक है। इसी प्रकार का एक गंभीर आरोप बुश प्रशासन पर यह भी है कि वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के मलवे के कबाड़ को विशेषकर स्टील आदि को 9/11 की जांच पूरी होने से पहले ही मलवे की जांच कराए बिना अमेरिका से बाहर भेज दिया गया। आखिर क्यों? बुश प्रशासन पर एक और अहम आरोप यह भी है कि उसने अमेरिका के नेशनल ट्रांसपोर्ट सें टी बोर्ड(एनटीएसबी) से कथित रूप से अपहृत किए गए चारों विमानों के कथित अपहरण की जांच क्यों नहीं कराई। जबकि अमेरिकी कानून के अंतर्गत यह बहुत जरूरी था। आंखिर इस जांच के न कराए जाने के पीछे बुश प्रशासन का क्या गुप्त एजेंडा हो सकता है? इसी प्रकार पेंटागन पर 9/11 को हुए हमले को लेकर भी तरह-तरह के संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं। कुछ अमेरिकी इसे मिज़ाईल हमला बता रहे हैं तो कुछ इसे फर्जी विमान दुर्घटना करार दे रहे हैं।

कहां तो 9/11 के बाद जार्ज बुश इसे दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी हमला बताकर अलकायदा के विरुद्ध कमर कस कर अफगानिस्तान होते हुए इरांक में दांखिल होने की तैयारी पर निकल चुके थे, तो कहां इसी 9/11 के सिलसिले में अमेरिका में ही चल रही जांच को अति सीमित करने के लिए भी जार्ज बुश व डिक चेनी ने असाधारण कदम उठाए। आंखिर इसकी क्या वजह थी? 9/11 की जांच में लगी एंफबीआई की टीम के एक मुख्‍य निरीक्षक की एक गुप्त फाईल भी बड़े ही रहस्यमयी ढंग से गायब हो चुकी है। इस प्रकार की और भी तमाम बातें हैं जो 9/11 के हमले को लेकर संदेह उत्पन्न करती हैं। राष्ट्रपति नेजाद का यह कहना कि 9/11 के पीछे बुश प्रशासन का मंकसद अमेरिका की गिरती हुई अर्थव्यवस्था को संभालना तथा इजराईल को बचाने व उसकी सहायता करने की ग़रा से मध्य-पूर्व एशिया पर अपनी पकड़ और माबूत करना था। नेजाद का यह कहना कोई साधारण वक्तव्य नहीं समझा जा सकता। वैसे भी पूरी दुनिया 9/11 को लेकर इसलिए भी संशय में है कि जो अमेरिका पूरी दुनिया के चप्पे-चप्पे की खबर रखता हो उसे आखिर यह कैसे नहीं पता चला कि उसके दुश्मन आतंकी दुनिया का सबसे बड़ा हमला अमेरिका में ही अंजाम देने की साजिश रच रहे हैं? यहां संदेह इस बात को लेकर है कि यह वास्तव में आतंकी हमला था या यह कथित आतंकी हमला कराया गया था या इस हमले को अंजाम तक पहुंचने देने के लिए बुश प्रशासन ने जानबूझ कर अपनी आंखें मूंद लीं थीं? एक और संदेह यह भी है कि क्या तोराबोरा की गुफाओं में छुपा लादेन जैसा आतंकवादी इतने बड़े अत्याधुनिक हमले का संचालन इतने सुनियोजित तरींके से कर सकता है? और यदि लादेन वास्तव में अपने उन इरादों में सफल हुआ तो अमेरिका जैसे सर्वशक्तिमान देश की सी आई ए, सुरक्षा एजेंसियां तथा अन्य गुप्तचर एजेंसियों की विश्वसनियता को किस पैमाने पर तौला जाना चाहिए?

अत: यदि अमेरिका को अहमदी नेजाद अथवा दुनिया के अन्य नेताओं यहां तक कि अमेरिकी आलोचकों से 9/11 के संदेह को लेकर स्वयं को बचाना है तो निश्चित रूप से ओबामा प्रशासन को इस विषय पर अब भी एक उच्च स्तरीय जांच बिठा देनी चाहिए। जिससे दुनिया को यह पता चल सके कि 9/11 के पीछे वास्तविक साजिश किसने रची, क्यों रची तथा उसके बाद हज़ारों अमेरिकी व नॉटो सैनिकों की बेवजह मौत के साथ-साथ लाखों अफगानी व इराकी लोगों की मौत का जिम्‍मेदार कौन है। और क्यों न ऐसे गैर जिम्‍मेदार शासक को युद्ध अपराधी घोषित कर उस पर अंतर्राष्ट्रीय अदालत में युद्ध अपराध का मुकद्दमा चलाया जाए?

3 COMMENTS

  1. श्री तनवीर साहिब, ९/११ की इस खोजबीन भरी जानकारी के लिए धन्यवाद.

    – जीनगर दुर्गा शंकर गहलोत, कोटा – ३२४ ००६ (राज.)

  2. तनवीरजी कर रहे, नंगे को बेनकाब। घंटी बांधे कौन अब, यह तो कहें जनाब? यह तो कहें जनाब, बली(बिल्ली भी पढ सकते हैं) से कौन भिङेगा? ईरान-अफ़गान -पाक, या हिन्द लङेगा? कह साधक अब छोङें बात लङाई की जी! समझ की कोई बात बतायें तनवीरजी!!!

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