अब साथी चुरायेंगे

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-लीना

नाच गाकर बड़े हुए तो स्वयंवर रचाया, शादी की, गर्भवती हुए और बच्चे जने। अब उब गए ऐसी जिंदगी से तो कुछ इतर संबंध बनाने की जुगत चली है। और इसीलिए ‘मीठी छूरी’ दिल पे कटार चलाने आने वाली है।

जी हां यह कोई कहानी नहीं बल्कि ‘रियल्टी’ है और पिछले कुछेक वर्षों में हमारे मनोरंजक मीडिया चैनलों के ‘सभ्यतापूर्वक विकास’ की कहानी भी।

दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली मेरी आवाज सुनो जैसी प्रतियोगिता से सुनिधि चैहान जैसी गायिका देश को मिली फिर ऐसे शो प्रसारित करने की होड़ लग गई। इसके कई अच्छे परिणाम देखने को भी मिले। इसके बाद श्रेया घोषाल..आदि..अनेक अच्छी प्रतिभाओं की खोज हुई। न सिर्फ गाने की बल्कि नृत्य, कामेडी, प्रतिभा खोज, खतरों के खिलाड़ी जैसे ढेरों रियल्टी शो के माध्यम से देश के दूर दराज क्षेत्रों तक से विभिन्न तरह के प्रतिभाओं को पहचाना जा सका। वे सामने आए और उन्हें उचित पहचान मिली। डर को जीतने वालों को भी पहचाना जा सका।

कई शो की सफलताओं से प्रेरित, पिछले कुछेक वर्षों में रियल्टी शो की बाढ़ विभिन्न चैनलों पर आ गई। इसमें बिग बास, इमोशनल अत्याचार, खतरों के खिलाड़ी, स्वयंवर, देसी गर्ल, मुझे इस जंगल से बचाओ, पति पत्नी और वो, आदि आदि. रहे। वैसे तो कई रियल्टी शो को आलोचना का शिकार होना पड़ा है पर कुछ ऐसे रहे जिसने यह प्रश्न पुरजोर तरीके से उठाया कि आखिर क्या खोज रही हैं ये प्रतियोगिताएं और क्या परोस रहा है यह?

कभी वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोषी जी ने व्यंग्य से कहा था कि स्वयंवर दिखाया है, तो अब प्रसव भी दिखाओ! पर हुआ यही। स्वयंवर के बाद पति पत्नी और वो में प्रतिभागियों को गर्भवती होने अहसास और प्रसव महसूस भी करने पड़े। आखिर क्या सीखा? किस बात की प्रतिस्पर्धा, कैसा मुकाबला है यह सब?

और अब आ रहा है मीठी छूरी न.-1 कौन चुरा सकती है आपका ब्याय फ्रेंड प्रश्न वाले प्रोमो के साथ। यानी मुकाबला होगा दूसरे के साथी चुराने का। क्या खूब! प्रोमो में जिसकी प्रतिभागी स्वयं यह कहती सुनाई देती है कि इस शो में हिस्सा लेने के बाद सचमुच मेरी शादी नहीं होगी।

धारावाहिकों/फिल्मों में दिखाये जाने वाले विवाहेत्तर संबंध अब रियल्टी शो बन रहे हैं। हालांकि मीडिया/ धारावाहिक/फिल्में समाज का दर्पण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो समाज में घटता है- वही यहां दिखता है। लेकिन क्या ऐसा सचमुच हो रहा है? क्या हमारे समाज की यह वास्तविकता है या ऐसे संस्कार! या फिर मीडिया ऐसे संस्कार परोस कर समाज पर यह सब थोप रहा है- यह एक बड़ा सवाल है। मीठी छूरी जैसे शो में किस बात का मुकाबला होगा? ऐसे गलत संस्कारों का? जो सामाजिक रूप से ही नहीं बल्कि वैधानिक रूप से भी गलत है।

तो क्या आने वाले दिनों में हमें चोरी, लूट-पाट, डकैती, दुष्कर्म आदि के मुकाबले भी देखने को मिलेंगें? मेरी यह लाइन लिखने के पहले ही कहीं प्रोड्यूसरों को कोई ऐसा विचार न मिल गया हो! नए शो बनाने का। भगवान न करे!

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लीना
पटना, बिहार में जन्‍म। राजनीतिशास्‍त्र से स्‍नातकोत्तर एवं पत्रकारिता से पीजी डिप्‍लोमा। 2000-02 तक दैनिक हिन्‍दुस्‍तान, पटना में कार्य करते हुए रिपोर्टिंग, संपादन व पेज बनाने का अनुभव, 1997 से हिन्‍दुस्‍तान, राष्‍ट्रीय सहारा, पंजाब केसरी, आउटलुक हिंदी इत्‍यादि राष्‍ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रिपोर्ट, खबरें व फीचर प्रकाशित। आकाशवाणी: पटना व कोहिमा से वार्ता, कविता प्र‍सारित। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका ’मीडियामोरचा’ और बढ़ते कदम। संप्रति: संपादक- ई-पत्रिका 'मीडियामोरचा' और ग्रामीण परिवेश पर आधारित पटना से प्रकाशित पत्रिका 'गांव समाज' में समाचार संपादक।

2 COMMENTS

  1. समाज जिस ओर जा रहा है उसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे टीवी उद्योग का है। कुछ तो भी कचरा दिखया जाने लगा है। घरवालों के साथ बैठकर टीवी देखते समय बड़ा खतरा महसूस होता है। न जाने कब क्या आ जाया और नजरें नीची करनी पड़ें।

  2. प्रस्तुत आलेख में वर्णित इस उत्तर आधुनिकता के दौर की सामाजिक विद्रपता को नव उदार वादी आर्थिक सुधारों एवं उन्नत सुचना प्रोद्द्योगिक का अनुषंगी कहा जा सकता है ये तीनो तत्व एक दूजे के अन्योंनाश्रित भी हैं .इनकी समेकित स्याह छतरी के नीचे जो सामाजिक सांस्कृतिक पतन दृष्टिगोचर हो रहा है उस पर आपने तीखा वार किया है .जो की बहुत जरुरी है .

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