अब तो विधानसभा चुनाव के बाद ही तस्वीर होगी साफ़

सिद्धार्थ शंकर गौतम

बुधवार को लखनऊ में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस महासचिव और उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके युवराज राहुल गाँधी ने मंच से वरिष्ठ कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम की सूची को समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र बताकर जनता के सामने फाड़ डाला| राहुल यहीं नहीं रुके; उन्होंने विपक्षी दलों के घोषणा पत्रों का जमकर माखौल भी उड़ाया| राहुल गाँधी के इस कदम से समाजवादी पार्टी सहित तमाम विपक्षी दलों के नेता अवाक रह गए| हालांकि बाद में मीडिया की अति-सक्रियता के कारण राहुल की पोल खुल गई मगर यहाँ सवाल यह खड़ा हो गया है कि क्या समाजवादी पार्टी का घोषणा पत्र बता वरिष्ठ कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम की सूची फाड़ राहुल ने राज्य में त्रिशंकु विधानसभा की संभावनाओं के बीच कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के भावी गठबंधन पर रोक लगा दी है? दरअसल तमाम राजनीतिक विश्लेषक यह अनुमान लगा रहे थे कि यदि राज्य में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो पर्याप्त संख्याबल के लिहाज से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर सरकार बना सकते हैं| इस भावी गठबंधन के भी दो फायदे होते| पहला तो यह कि २२ वर्षों से प्रदेश की सत्ता से दूर कांग्रेस की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित होती तो दूसरा केंद्र की संप्रग सरकार को समाजवादी पार्टी के रूप में नया खेवनहार मिल जाता तथा संप्रग सरकार की प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस से कांग्रेस पल्ला झाड़ने का साहस जुटा लेती| मगर दाद देनी होगी राहुल की इस हिम्मत की कि उन्होंने खुले मंच से यह जताने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी भले ही विपक्ष में बैठना स्वीकार कर लेगी मगर समाजवादी पार्टी से चुनाव बाद कोई गठबंधन नहीं करेगी| शायद राहुल को यह तथ्य अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के क्षेत्रीय दलों को समर्थन देने से ही राज्य में इनका नाम लेवा तक नहीं बचा है और भविष्य में भी यदि यही हाल रहा तो अपने बचे-खुचे अस्तित्व से झूझती इन पार्टियों को पुनः अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने में हो सकता है दशकों का समय लगे| खैर देर आए दुरुस्त आए मगर राहुल के इन तेवरों ने प्रदेश में चल रहे सियासी गुणा-भाग को और उलझा दिया है|

राहुल के इस कारनामे के बाद मुलायम सिंह ने हमीरपुर की जनसभा में यह कहकर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दीं कि यदि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के संकेत दिखते हैं तो उनकी पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है| हालांकि अपनी गलती का एहसास होते ही शाम को मुलायम अपनी ही कही से पलट गए मगर तब तक काफी देर हो चुकी थी| उनका यह संदेश राज्य की जनता के बीच पहुँच चुका था| मुलायम सिंह के इस रंग-बदलू व्यवहार से निश्चित ही समाजवादी पार्टी को आगामी दो चरणों के चुनाव में नुकसान होने का अंदेशा है| राज्य की जनता को यह समझ आने लगा है कि जब चुनाव बाद समाजवादी पार्टी येन-केन प्रकरेण कांग्रेस से गठबंधन को अति-आतुर दिख रही है तो फिर अपने बहुमूल्य वोट का नुकसान क्यूँ? इससे कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसी विपक्षी पार्टियों का जनाधार बढ़ना तय है| एक ओर जहां युवा तुर्क अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी पूरे प्रदेश में साईकिल की चाल को तेज़ करने में लगी हुई है तो वहीं मुलायम सिंह अपनी बे-फ़िज़ूल बयानबाजी से अखिलेश की राह में अवरोधक पैदा कर रहे हैं| यानी समाजवादी पार्टी की सुनहरी वापसी पर खुद मुलायम सिंह ने ही प्रश्न-चिन्ह लगा दिए हैं|

राहुल और मुलायम एपिसोड के तुरंत बाद ही बयानवीर दिग्विजय सिंह का बयान मीडिया की सुर्खियाँ बढ़ाने लगा कि राज्य में यदि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाएगा| एक राष्ट्रीय पार्टी के महासचिव से इस तरह के बयान की उम्मीद किसी को नहीं होगी| क्या दिग्विजय यह बताने की जहमत करेंगे कि राज्य में राष्ट्रपति शासन की मंशा उनकी स्वयं की है या पार्टी भी उनकी राय से ताल्लुक रखती है| वैसे राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उत्तरप्रदेश में वापसी को आतुर कांग्रेस किसी भी हद तक उतर सकती है| खैर यह तो वक़्त ही बताएगा मगर दिग्विजय सिंह के बयान ने यक़ीनन राज्य की जनता और उनके मताधिकार का अपमान किया है| क्या जनता इसलिए अपने मताधिकार का प्रयोग कर रही है कि उसके द्वारा चुने प्रतिनिधियों को नकार राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंषा या ऐसी किसी भी संभावना को उत्पन्न किया जाए? क्या दिग्विजय सिंह ने इस तरह की बयानबाजी से देश की संवैधानिक संरचना को चुनौती नहीं दी है? क्या चुनाव आयोग अब भी अपनी आँखें और कान बंद रखना ज़ारी रखेगा? क्या कांग्रेस पार्टी इस बार भी ताजा विवाद को दिग्विजय सिंह की निजी राय बताकर अपना पलड़ा झाड लेगी? जो भी हो मगर राहुल गाँधी के उत्तरप्रदेश फतह के सपने को उन्हीं की पार्टी के नेता नेस्तनाबूत करते जा रहे हैं| राहुल गाँधी उत्तरप्रदेश चुनाव परिणामों को जहां अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ चुके हैं वहीं इस तरह के विवाद एवं बयान निश्चित रूप से उनकी प्रतिष्ठा को कमतर करेंगे|

कुल मिलाकर लब्बो-लुवाब यह है कि राजनीतिक विश्लेषकों के तमाम दावों को धता बताते हुए राजनीति ऐसे-ऐसे रंग दिखा रही है कि कोई भी; कुछ भी बोलने से बच रहा है| हालिया बयानों और विवादों ने यक़ीनन राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दी हैं मगर अंदरखाने क्या खिचड़ी पक रही है; कोई कह नहीं सकता| अब तो विधानसभा चुनाव के बाद ही पूरी तस्वीर साफ़ हो पाएगी और इसमें प्रदेश की जनता की मनःस्थिति यक़ीनन बड़ा कारक बनेगी| यानी अब जनता को तय करना है कि नित रंग बदलती राजनीति से वह कैसे पार पा पाता है?

Previous articleकैसा हो आपके घर का दरवाजा ..???? ; How’s the door of your house????
Next articleउत्तर प्रदेश के चुनाव में अगड़ों की उपेक्षा
सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here