[नव संवत्सर, सरहुल और रामनवमी पर दोहे]
नव संवत्, नव चेतना, नूतन नवल उमंग।
साल पुराना ले गया, हर दुख अपने संग।।
चैत शुक्ल की प्रतिपदा, वासन्तिक नवरात।
संवत्सर आया नया, बदलेंगे हालात।।
जीवन में उत्कर्ष हो, जन-जन में हो हर्ष।
शुभ मंगल सबका करे, भारतीय नव वर्ष।।
ढाक-साल सब खिल गए, मन मोहे कचनार।
वन प्रांतर सुरभित हुए, वसुधा ज्यों गुलनार।।
प्रकृति-प्रेम आराधना, सरहुल का त्योहार।
हरी-भरी धरती रहे, सुख-संपन्न घर बार।।
रघुकुल में पैदा हुए, जग के पालनहार।
कौशल्या हर्षित हुई, धन्य हुआ संसार।।
कण-कण में जो हैं बसे, पावन जिनका नाम।
पीड़ा हरने आ गए, सबके दाता राम।।
मर्यादा आदर्श के, रघुवर हैं प्रतिरूप।
धीरज, धरम, त्याग व तप, राम चरित के रूप।।
-हिमकर श्याम
नव संवत्सर और राम जन्म के सुंदर दोहे।
सराहना तथा प्रोत्साहन के लिए आप सभी का हृदय से धन्यवाद एवं आभार !
~सादर
सुंदर रचना…मंगलकामनाएँ
श्रीमन् हिमकर जी,
अति सुन्दर ! कविता के लिए धन्यवाद ।