मैं भी थी अमीर कभी, कहलाती थी सोने की चिड़िया,
लूटा मुझको अंग्रेजों ने, ले गए यहां से भर-भर गाड़ियां।
बड़े मशक्कत के बाद, मिली थी मुझको आजादी,
वीरों के कुर्बानी के, गीत मैं तो गाती।
उस कुर्बानी को भूलें, यहां के कर्ता धरता,
शुरू किया फिर दौर वही, मेरी बर्बादी का।
लूटकर विदेशियों ने मुझको, अपने देश को आगे बढ़ाया,
सत्ता में रहने वालों ने, अपने घर को चमकाया।
आंख में मेरी आते आंसू, उन वीरों को सोचकर,
कैसे बदल गए लोग यहां के, गर्व था मुझको उनपर।
जान की परवाह न करके, मुझको तो संभाला,
हाथ में सत्ता रखने वाले, कर रहे हैं देखो घोटाला।
इसी घोटाले के कारण, नहीं हो पाई विकसित,
पैसठ वर्ष आजादी के, गाड़ी चल रही घिस-घिस।
सोच में बैठी हूं मैं, आएगा कब वो दिन,
सूखे से मुक्ति मिलेगी, बारिश होगी रिम-झिम।
आजादी को सफल बनाने में, जोड़ो फिर से कड़ियां,
मैं भी थी अमीर कभी, कहलाती थी सोने की चिड़िया।