बुढापा

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बहुतो ने भुला दिया मुझे
गिला नहीं उनसे कोई मुझे
पर अपने ही भुला देते जब मुझे
सोचने को मजबूर कर देते है मुझे

जीवन का अंतिम पड़ाव है ये
काटे से कटता अब नहीं है ये
जीवन में मुश्किलें आई तो बहुत 
आसानी से काट ली थी तब वे

जिनको चलना सिखाया था मैंने
वे चलना सिखा रहे है अब मुझे
जिनको प्रकाश दिखया था मैंने
वे अब अँधेरा दिखा रहे है मुझे

चलना फिरना है अब मुश्किल
छड़ी का सहारा लेना पड़ता मुझे
घुटनों में दर्द रहता  है मुझे
उनको बदलवाना है अब मुझे

आता है पैसा केवल बुढ़ापे में काम
उसको सभाल कर रखना था मुझे
पछतावा करने से चलता नहीं काम
बिन पैसे दवाई मिलती नहीं मुझे

आर के रस्तोगी  

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