आज से लगभग आठ साल पहले बिहार में सिर्फ़ निजाम बदला लेकिन सत्ता का स्वरूप नहीं। आज भी स्थिति वही है जो पूर्व के शासनकाल में थी, हर जिले में दबंग विधायक और सांसदों की अपनी हुकूमत चलती है। जो भी कार्य केंद्र या राज्य सरकार की योजनाओं के तहत हो रहे हैं, सारे में उन्हीं को ठेके दिए जाते हैं, जो नीतीश कुमार जी और सत्ताधारी दल के हितों को पूरा करते हैं। फिर, बिहार राज्य का समग्र विकास कैसे होगा ?
लालू यादव जी के 15 वर्षों के कुशासन और जंगलराज से मुक्ति पाने के लिए बिहार की जनता ने नीतिश कुमार जी को शासन चलाने का मौका दिया था। नीतीश कुमार का पहला कार्यकाल कुल मिला-जुलाकर ठीक-ठाक रहा था लेकिन दूसरे शासनकाल में नीतीश कुमार के शासन और स्वभाव में प्रचंड बहुमत का अहंकार समाहित हो गयाl उन्होंने अपने पार्टी में ही विरोधियों को कमजोर करने के लिए कभी लालू के कुशासन में नजदीकी भागीदार रहे नेताओं को रातों-रात पार्टी में शामिल कर लिया। इसका पार्टी के साथ-साथ आम जनता में भी काफी विरोध हुआ, लेकिन कहावत है ना कि “समरथ को नहीं दोष गोसाई”। सो, नीतीश कुमार ने सत्ता के ताकत के बूते विरोध को तत्काल दबा दिया। शायद बिहार की जनता इन सब बातों की अभ्यस्त हो गई है और उसे अब कोई आश्चर्य भी नहीं होता !
बिहार में लालू यादव – राबड़ी देवी के शासनकाल में इन्हीं नेताओं के कारण बिहार की छवि को काफी हानि पहुंची थी और सारे उद्योग धंधे बंद हो गए थे। तब बिहार में एक मात्र उद्योग ‘अपहरण’ का फल-फूल रहा था और उसे प्रशासन का सहयोग भी मिल रहा था। लेकिन समय के साथ-साथ जब इसने भस्मासुर का रूप ले लिया तो सत्ताधारी पार्टी को इसमें सुधार करने की सूझी थी लेकिन तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि लोगों में इसकी कोई छवि बाकि नहीं रह गई थी और बिहार के लोग किसी तरह से इस शासन से छुटकारा पाना चाह रहे थे। इसका लाभ नीतीश कुमार को मिला, लेकिन इन्होंने भी पुरानी व्यवस्था को सिर्फ़ नया जामा पहना कर यथावत बनाए रखने में ही अपनी भलाई समझी और सिर्फ अपनी जरूरतों के लिए जनता को बेवकूफ बनाकर उसे दिन में तारे दिखाने के सपने दिखाए। लेकिन पुरानी कहावत है कि “बिल्ली की अम्मा कब तक खैर मनाती”। आप गलत, भ्रष्ट लोगों के साथ लेकर लोगों को कब तक उल्लू बनाते रहेंगे। जनता सब जानती है, उसे ज्यादा दिनों तक कोई भी पार्टी या नेता बेवकूफ नहीं बना सकता है।
निःसंदेह नीतीश कुमार की दूसरी पारी की बेहद निराशानजक रही है। इसमें अपराधियों को खुला संरक्षण प्राप्त है। आज सत्ताधारी दल की टीम में बिहार के तमाम वैसे बाहुबलियों और अपराधिक इतिहास वाले तथाकथित राजनेताओं का जमावड़ा है जो पूर्व के शासनकाल में भी खुद के संरक्षण के लिए सत्ता के साथ थे। फ़ेरहिस्त इतनी लम्बी है कि आलेख अनावश्यक रूप से लम्बा और उबाऊ हो जाएगा। ऐसे में नीतीश कुमार किस तरह से लोगों को स्वच्छ राजनीति का भरोसा दिला पाएंगे, यह सवाल आज हर किसी के जेहन में कौंध रहा है। अपराधियों की पत्नी, भाई या परिवार या रिश्तेदारों को पार्टी में शामिल करना या उन्हें टिकट देना और फिर अपराध दूर करने की नौटंकी करना दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं ? ये तो वही बात हुई ना ” नयी बोतल में पुरानी शराब” ? सब खेल पैकेजिंग का है!