भ्रष्टाचार चहुँ ओर, मीडिया मचाएँ शोर!

-डॉ. पुरुषोत्तम लाल मीणा

गत महिने में देश में हर ओर तथा हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार का डंका बज रहा है। शोर मचाने वाले और भ्रष्टचार में फंसने वाले सब जानते हैं कि हमाम में सभी नंगे हैं, लेकिन सबकी अपनी-अपनी मजबूरियाँ हैं। भारतीय चिकित्सा परिषद में किस प्रकार रिश्वत के लेन-देन चल रहा है और किस प्रकार से मैडीकल कॉलोजों को मान्यता प्रदान की जा रही है। इस बात का खुलासा एमसीआई अध्यक्ष केतन देसाई को करो‹डों की रिश्वत लेते पक‹डे जाने से हो चुका है। ललित मोदी नाम के एक बिग‹डेल व्यक्ति को बिना किसी जाँच प‹डताल के आईपीएल के सर्वेसर्वा बना दिया गया, जबकि सरकार एक चप‹डासी को भी नौकरी देती है तो उसका पुलिस रिकार्ड खंगाला जाता है।

क्रिकेट के साम्राज्य में ललित मोदी को इतना बडा ओहदा किसने प्रदान कर दिया कि वह केवल मैच ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण आईपीएल टूर्नामेण्ट को ही फिक्स करता रहा। ललित मोदी की ताजपोशी करने वाले भी कम दोषी नहीं हैं। कुछ समय पूर्व मध्य प्रदेश में आईएएस दम्पत्ति का राज उजागर हुआ कि उन्होंने करोडों की सम्पत्ति रिश्वत के जरिये कमाई है। सेना में अनेक बार लोग पक‹डे जा चुके हैं। स्वयं सीबीआई, सीआईडी और एसीबी में भी रिश्वत लेने वालों को अनेक बार पक‹डा जा चुका है। जो लोग पक‹ड रहे हैं, कल को उनमें से भी कोई पक‹डा जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

राजस्थान में सरकारी हवेलियों को तत्कालीन वसुन्धरा राजे सरकार ने ललित मोदी और उनके चाहने वालों को ओने-पौने दामों में बेच दिया गया। जयुपर में ५० किलो मीटर तक अब सरकारी जमीन ढूँढने से भी नहीं मिलती है। पिछली भाजपा की राजे सरकार के समय भू-माफिया की तरह से भूमि की खीरद-फरोख्त चल रही थी। अब वर्तमान सरकार ने नये जयपुर का शिगूफा छो‹डा है और ९० बी पर पाबन्दी लगा दी है, लेकिन सैक‹डों मकानों का निर्माण रात दिन चल रहा है। हर मकान निर्माता ५० हजार से १ लाख तक जयपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भेंट चढा रहा है।

यह तो नहीं माना जा सकता कि राजस्थान के आवासीय मन्त्री इतने भोले हैं कि उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं हो। कुल मिलाकर हर क्षेत्र में हर जगह पर भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है, जिसमें हर कोई बेखौफ नहाने में लगा हुआ है। लोग पक‹डे जाते हैं और छूट जाते हैं। बहुत कम को सांकेतिक सजा मिलती है। जिस देश में न्यायपालिका और डॉक्टर बिकाऊ हों वहाँ पर कुछ भी खरीदा जा सकता है, खरीदने वाला चाहिये। मीडिया में जो लोग शोर मचा रहे हैं, उनके दामन कितने पाक हैं, यदि लोगों के सामने आ जाये तो सारे ब‹डे-ब‹डे घोटाले बौने हो जायेंगे।

आप किसी भी ऐजेंसी से जाँच करवा लें भ्रष्टाचारी एवं भ्रष्टाचारियों पर रोक लगाना या उन्हें सजा मिलना नामुमकिन हो गया है। एक दो लोगों को सजा देने से भी कुछ नहीं होगा, क्योंकि रिश्वत लेने के अपराध में सजा भी तो सांकेतिक ही है। जब तक भ्रष्टाचार के अपराध में न्यूनतम आजीवन कैद एवं अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान नहीं होगा, तब तक लोग भ्रष्टाचार करने से परहेज करने वाले नहीं हैं। रंगे हाथ रिश्वत लेते पक‹डे जाने पर भी तत्काल या कुछ ही दिनों में जमानत मिल जाती है। ऐसे में कोई क्यों किसी से डरने वाला है! जमानत पर छूटने के बाद काली कमाई के जरिये जाँच करने वालों और गवाहों को आसानी से खरीदा जा सकता है या अपराध माफिया के जरिये धमकवाया जाकर मामले को कमजोर कर दिया जाता है।

इसलिये बहुत जरूरी है कि रिश्वत लेते या भ्रष्टाचार के आरोप में पक‹डे जाने पर आरोपी को जमानत पर छो‹डने का प्रावधान ही समाप्त कर दिया जाना चाहिये। न्यायालयों में जो भ्रष्टाचार है, उसकी ब‹डी वजह है कि न्यायाधीशों को संविधान में इतना ब‹डा सुरक्षा कवच दे दिया है कि संसद द्वारा अविश्वास प्रस्ताव के अलावा जजों को किसी भी तरह से अपने पदों से हटाया ही नहीं जा सकता है। ऐसे में उन्हें मनमानी करने की खुली आजादी है, लेकिन जज होने से पूर्व वे समाज के व्यक्ति भी तो हैं और हर व्यक्ति में विद्यमान गुणावगुण जजों में भी मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। इसके बावजूद भी सीबीआई या अन्य किसी भी जाँच ऐजेंसी द्वारा आज तक हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी जज को रिश्वत लेते रंगे हाथ पक‹डे जाने का साहस नहीं जुटाया, जबकि यह सर्वमान्य है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी भ्रष्टाचार है! सुप्रीम कोर्ट एक पूर्व प्रधान न्यायाधीश तक इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं कि न्यायपालिका में २० प्रतिशत लोग भ्रष्ट हैं। फिर भी हम न्यायिक अवमानना के डर से इन भ्रष्ट न्यायमूर्तियों के समक्ष गुलामों की भांति नतमस्तक होकर चुप बैठै हैं!

इन हालातों में केवल आम जनता ही कुछ कर सकती है, क्योंकि इन्हीं हालातों का परिणाम है कि इस देश में नक्सलवाद दिन-दूना रात चौगना बढ रहा है।

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

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