महाशिवरात्रि के अवसर पर : भद्रेश्वरनाथ शिव मंदिर

baba-badeshwar-nath-mandir-ऐतिहासिक परिचय
डा. राधेश्याम द्विवेदी
भद्रेश्वरनाथ शिव मंदिर

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के जिला मुख्यालय से 6 किमी. दक्षिण कुवानो नदी के तट पर यह पौराणिक मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। जो बस्ती सदर तहसील में महसों सोनूपार रोड पर भदेश्वर नामक गांव पंचायत में लगता है। यह मदिर 260 45‘ 23‘‘ उत्तरी अक्षांश तथा 820 44‘29‘‘ पूर्वी देशान्तर पर स्थित है। गोरखपुर से यहां की दूरी लगभग 78 किमी. है। वर्तमान मंदिर को लगभग 200 साल पुराना बताया जाता है। इस स्थान के पुराने बसावट के प्रमाण की भी मिले हैं। यह लगभग 30 बीघे के विशाल भूभाग पर फैला हुआ है। यहां प्रायः हर सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है परन्तु महा शिवरात्रि के दिन तो दूर दूर के तथा बस्ती शहर के बड़ी संख्या मे श्रद्धालु पूजन, अर्चन तथा दर्शन के लिए आते हैं। अधिमास महीने में पूरे मास यहां विशेष पूुजन तथा अर्चन होता रहता है। अनुश्रुतियां के अनुसार इस मंदिर के शिवजी के लिंग की स्थापना लंका के राजा रावण द्वारा किये जाने की बात कही जाती है। इस शिवलिंग का वर्णन शिव महापुराण मे होना बताया जाता है। इस गांव में ज्यादातर शिव भक्त गोस्वामियों का ही वास है। इस गांव की आवादी 500 ये अधिक है।
इसी गांव से लगा हुआ देवरांवा (देवराम घाट) गांव एक एतिहासिक गांव है। यहां नरहन प्रकार के ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति के अवशेष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वर्तमान तथा पूर्व महानिदेशक डा. राकेश तिवारी तथा बी. आर मणि ने 1990 तथा 1995 में खोज निकाला है। बी. एच. यू. के विद्वानों ने भी 1991 में यहां का सर्वेक्षण कर रखा है। इसके सतह पर प्राप्त अवशेषों के आधार पर यहां लाल पात्र , काले एवं लाल पात्र , काले लोहित पात्र, डोरी छापित, गेरू छापित, लाल पंक लेपित तथा उत्तरी काले चमकीले पात्र परम्पराओं के प्रमाण प्राप्त हुए हैं। पुराने पा़त्रों के अलावा यहां हस्त निर्मित तथा चाक द्वारा निर्मित अनेक स्पष्ट आकार के पात्र पहचाने गये है। कटोरे कलश, थाली, कूटकी हाण्डी विभिन्न डिजाइन व छाप से युक्त पाये गये हैं। अन्य कलाकृतियों में मिट्टी के स्टूल के पैर, गिब्बी, थालियां, कारलेनियन के लटकन, शाीशे के कंगन, ग्लैज्ड हरा लेपित कांच का टुकड़ा प्राप्त हुआ है। पूर्व प्रमाणों में पत्थरों के चिप्स तथा मनकेो के बेकार के टुकड़े मिलने की भी पुष्टि हुई है।
वर्ष 2014 में लखनऊ विश्वविद्यालय डा. डी. के. श्रीवास्तव तथा डा ए. के. चैधरी ने भी लगभग इसी प्रकार के पात्रों व कलाकृतियों के खोजने की सूचना प्रकाशित की है। इन प्रमाणों के आधार पर देवरामा तथा भदेश्वर स्थानों की बसावट द्वितीय मिलेनियम बी.सी.ई.का प्रमाण माना गया है। इस स्थान के पास ही स्थित एक प्राचीन बौद्धकालीन स्थल सिसवनिया भी है जिसकी प्राचीन सेतवया के रूप में पुष्टि की गयी है। यहां डा. मणि ने परीक्षण के तौर पर लघु उत्खनन भी कराया था। आस पास के इन स्थलों के विभिन्न कलात्मक प्रमाणों से भदेश्वरनाथ की महत्ता और बढ़ जाती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here