बिहार की विकास गाथा का एक पहलू यह भी…..

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तनवीर जाफ़री

पूरे देश में इस समय धूम मची हुई है कि देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बिहार प्रगति के पथ पर तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। बिहार से होकर गुज़रने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर यात्रा करने पर आपको कुछ ऐसा आभास हो भी सकता है। निश्चित रूप से राज्य के जो राजमार्ग दस वर्ष पूर्व तक गड्ढों का पर्याय बने रहते थे आज उसी जगह पर ऊंची,चौड़ी, मज़बूत व सुरक्षित काली चमकती हुई 4 लेन सडक़ें दिखाई दे रही हैं। कमोबेश यही हाल अंतरजि़ला सडक़ों का भी है। शहरों में भी मज़बूत सीमेंटड सडक़ें व गलियां बन चुकी हैं। बिजली की आपूर्ति भी पहले से बेहतर दिखाई दे रही है। आम लोगों का रहन-सहन, खान-पान, पहनावा तथा खरीददारी करने की क्षमता इन सभी चीज़ों में बेहतरी दिखाई दे रही है। शिक्षा की ओर भी आम लोगों का रुझान पहले से अधिक बढ़ा है। विशेषकर लड़कियां अब पहले से ज़्यादा संख्या में स्कूल जाने लगी हैं।

परंतु इसी बिहार के कथित विकास का एक दूसरा पहलू यह भी है कि अभी भी बिहार में गंदगी का वह साम्राज्य फैला हुआ है जिसकी शायद कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के किसी भी जि़ले में यहां तक कि राजधानी पटना में भी आप कहीं भी चले जाएं तो चारों ओर नालों व नालियों में कूड़े-करकट का ढेर देखने को मिलेगा। इन नालों व नालियों में गंदा पानी ठहरा हुआ रहता है जिसके चलते मक्खी-मच्छरों के पालन-पोषण की यह सुरक्षित पनाहगाह बन जाता है। कहीं भी देखिए नालियों में पॉलिथिन के ढेर नालों को जाम किए रहते हैं। पान व खैनी-सुरती आदि खाने के शौकीन लोग वहां की सडक़ों, इमारतों यहां तक कि सरकारी दफ्तरों, कोर्ट-कचहरी, पोस्ट ऑफस जैसे भवनों की दीवारों को मुफ्त में रंगते रहते हैं। अफसोस की बात तो यह है कि जिन गंदे, बदबूदार व जाम पड़े हुए नालों के पास आप एक पल के लिए खड़े भी नहीं होना चाहेंगे उसी जगह पर बैठकर तमाम दुकानदार खुले हुए बर्तनों में खाने-पीने का सामान रखकर बेचते दिखाई दे जाएंगे। ऐसे खुले, प्रदूषित व बीमारियों को न्यौता देने वाली खाद्य सामग्रियों को खरीदने व उसी जगह पर खड़े होकर खाने वालों की भी कोई कमी नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि गोया वहां का आम आदमी भी गंदगी से या तो परहेज़ करने से कतराता है या फिर उसे इस विषय पर पूरी तरह जागरूक नहीं किया गया है।

पिछले दिनों मुझे अपने वतन दरभंगा जाने का अवसर मिला। मेरा एक बचपन का परिचित व्यक्ति इत्तेफाक से किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त था। उससे मिलने पर उसके परिजनों ने मुझे बताया कि उसे कई यूनिट खून चढ़ चुका है तथा अभी खून की और ज़रूरत है। मैं उसे रक्तदान करने हेतु तैयार हो गया। तथा उसके किसी रिश्तेदार के साथ जीवन में पहली बार दरभंगा के मशहूर ललित नारायण मिश्रा मेडिकल कॉलेज जा पहुंचा। गंदगी, लापरवाही,कुप्रबंधन का जो खुला नज़ारा इस मेडिकल कॉलेज में देखने को मिला उसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हॉस्पिटल के ओपीडी के मुख्य प्रवेश द्वार पर चूडिय़ां तथा नाना प्रकार के सामान टोकरी में रखकर बेचते औरते व पुरुष दिखाई दिए। मेरी समझ में ही नहीं आया कि अस्पताल में और वह भी ओपीडी के मुख्य द्वारा पर सौंदर्य प्रसाधन सामग्री के इतने बड़े पैमाने पर बिकने का आ$िखर रहस्य क्या है? बहरहाल इसके अतिरिक्त पूरे अस्पताल के चारों ओर ड्रेनेज सिस्टम बंद पड़ा हुआ था। बिल्डिंग के साथ चारों तरफ गड्डों में कीचड़, पानी,गंदगी, सुअर यहां तक कि अस्पताल के ज़हरीले कचरे के ढेर सब कुछ बिल्कुल अस्पताल के पास पड़े हुए थे। हॉस्पिटल बिल्डिंग के कई हिस्से इतने जर्जर हो चके हैं कि कहीं छतों के लेंटर टूटे पड़े थे तो कई जगह छज्जे लटके दिखाई दे रहे थे। ऊपर से कई जगह पानी की टंकियों से ओवरफ्लो होता पानी पूरी बिल्डिंग को बेवजह तरबतर कर रहा था। ऐसी जगहों पर फैली सीलन व काई को देखने से साफ पता चलता था कि तीन-चार मंजि़ला इमारत पर पानी की बेवजह बौछार होने का यह सिलसिला कोई नया नहीं है बल्कि यह रोज़मर्रा की बात है।

अस्पताल में चारों ओर कोई भी व्यक्ति कहीं भी बैठकर बेफक्र होकर पेशाब कर सकता है, शौच कर सकता है। किसी को कोई भी रोकने-टोकने या पूछने वाला नहीं है। बहरहाल जब मैं अपना रक्तदान करने हेतु ब्लड बैंक वाले भवन में गया तो वहां भी ओपीडी जैसा ही गंदगी का भंयकर नज़ारा ब्लड बैंक के मुख्य द्वार तक देखने को मिला। बदबूदार, कीचड़ भरे कूड़े-करकट के बीच लगभग आधा दर्जन सूअर अठखेलियां करते दिखाई दिए। मज़े की बात तो यह है कि उस अस्पताल के कर्मचारी तथा डॉक्टर्स आदि भी उन्हीं रास्तों से होकर गुज़रते दिखाई दिए। परंतु ऐसी गंदगी को देखकर किसी के माथे पर कोई शिकन नज़र नहीं आई। जिस समय मेरा रक्त लिया जा रहा था उस समय एक कर्मचारी अपने हाथों से ब्लड बैग को पांचों उंगलियों से हिला रहा था। मेरे पूछने पर पता लगा कि ब्लड बैग शेकिंग मशीन खराब है इसलिए वह हाथ से ऐसा कर रहा है। इस ब्लड बैंक में जगह-जगह पान के थूक, पीक व गंदगी फैली हुई दिखाई दे रही थी।

अक्सर हरियाणा व पंजाब के अखबारों में यह खबरें पढऩे को मिलती हैं कि अमुक प्राईवेट नर्सिंग होम में स्वास्थय विभाग के लोगों ने छापेमारी की। यानी स्वास्थय विभाग समय-समय पर इस बात की पूरी निगरानी करता रहता है कि निजी नर्सिंग होम सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों का सख्ती से पालन कर रहे हैं अथवा नहीं। इस सिलसिले में सबसे अधिक ध्यान सफाई तथा नर्सिंग होम को शत-प्रतिशत इंफेकशन फ्ऱी बनाए रखने के लिए दिया जाता है। अब इस बात से आप खुद अंदाज़ा लगा लीजिए कि जब बिहार के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज के अपने परिसर में गंदगी का यह आलम है फिर आ$िखर बिहार सरकार का स्वास्थय विभाग किस मुंह से निजी नर्सिंग होम की ओर नज़रें उठा सकता है। हालांकि मैंने वहां के किसी निजी नर्सिंग होम का भ्रमण नहीं किया परंतु दरभंगा मेडिकल कॉलेज में घूमने-फिरने के बाद जिस निष्कर्ष पर मैं पहुंचा हूं उससे तो गोया वहां के स्वास्थय विभाग से मेरा विश्वास ही उठ गया है। हो सकता है दरभंगा मेडिकल कॉलेज में आने वाले तमाम मरीज़ वहां से इलाज कराकर स्वस्थ होकर अपने घरों को वापस जाते हों। परंतु मैं यह बात भी पूरे दावे और विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अस्पताल में चारों ओर फैली गंदगी निश्चित रूप से न केवल वहां आने वाले मरीज़ों के शीघ्र स्वस्थ होने में बाधक होती होगी बल्कि उस अस्पताल में आने वाले तीमारदारों तथा उधर से गुज़रने वाले आम लोगों को भी ज़रूर बीमारी के मुंह में ढकेलती रहती होगी।

काफी लंबे-चौड़े विशाल क्षेत्र में पसरे इस मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर्स की स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई का अलग से भवन है। वह भवन अस्पताल के भवन की तुलना में फलहाल काफी हद तक ठीक-ठाक व साफ-सुथरा दिखाई देता है। पूरे अस्पताल भवन के सामने सारनाथ की कला को प्रदर्शित करता हुआ बहुत लंबा पार्क भी बनाया गया है। फलहाल तो इस पार्क का कुछ हिस्सा साफ-सुथरा है जबकि अस्पताल से सटे पार्क के दूसरे छोर का भाग आम आदमियों के संपर्क में आते-आते धीरे-धीरे अपनी सुंदरता ख़त्म करने लगा है। तथा गंदगी से उसका भी सामना होना शुरु हो गया है। बहरहाल दशकों से यह खबर सुना करता था कि बिहार में कभी जापानी बुखार ने दस्तक दी है तो कभी दिमागी बुखार या काला ज्वर वहां फैल गया है। कभी इंस्फ्लाईटिस तो कभी दूसरी ऐसी जानलेवा बीमारियां जोकि सैकड़ों लोगों की जीवन लीला एक साथ समाप्त कर देती हैं। बिहार जाकर वहां चारों ओर फैली गंदगी का आलम देखकर खासतौर पर उपचार का केंद्र समझे जाने वाले प्रतिष्ठित ललित नारायण मिश्रा मेडिकल कॉलेज का भ्रमण करने के बाद वहां की चिंताजनक स्थिति देखकर यह विश्वास हो गया कि आ$िखर बिहार बार-बार क्योंकर ऐसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आता रहता है?

यहां बिहार के विकास को लेकर इस बहस में पडऩे से कुछ हासिल नहीं कि वहां दिखाई दे रहे विकास का सेहरा केंद्र सरकार के सिर पर रखा जाए या फिर मुख्यमंत्री नितीश कुमार को इसका श्रेय दिया जाए। परंतु जिस प्रकार नितीश कुमार बिहार के विकास का सेहरा अपने सिर पर रखने के लिए लालायित दिखाई देते हैं तथा जिस प्रकार उन्होंने सैकड़ों करोड़ रुपये अपनी पीठ थपथपाने वाले पोस्टरों, बोर्डों, विज्ञापनों व अन्य प्रचार माध्यमों पर खर्च कर रखे हैं उन्हें देखकर ‘विकास बाबू’ को यह सलाह तो देनी ही पड़ेगी कि नितीश जी आसमान की ओर देखने से पहले अपने नाकों तले फैली उस बेतहताशा जानलेवा गंदगी को सा$फ कराने की कोशिश तो कीजिए जिसपर विकास की बुनियाद खड़ी होती है। गंदगी साफ करना, ड्रेनेज व्यवस्था को सुचारू रखना, गंदगी इकट्ठा करने वाले गड्ढों को भरकर उन्हें समतल करना, आम लोगों को गंदगी,दुर्गंध तथा कूड़ा-करकट से होने वाली जानलेवा बीमारियों के विषय में जागरूक करना यह सब राज्य सरकार का ही काम है। नितीश जी चाहे अपनी प्रशासनिक मशीनरी का प्रयोग कर इसे ठीकठाक करें या फिर राज्य में सक्रिय गैर सरकारी संगठनों की सहायता लेकर आम लोगों को गंदगी से होने वाले खतरों से आगाह कराने की कोशिश करें। परंतु यक़ीन जानिए जब तक बिहार से गंदगी का खात्मा नहीं हो जाता तब तक बिहार की विकास गाथा लिखे जाने का कोई महत्व नहीं।

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