मां भारती के नाम हम लिखें,
सो रहे हैं, लोग जो,
उनकी चेतना के नाम, गान हम लिखें…
एक पाती ऐसी हम लिखें…
तिरंगे की आन के लिए,
मां भारती की बान के लिए,
देश की शान के लिए,
जो मिट गए, उनको सलाम हम लिखें,
एक पाती ऐसी हम लिखें…
कदम-कदम पे बैठे हैं, छलिए देश में मेरे
साधु-संतों के भेष में, डाकू घुमते देश में मेरे,
धर्म के नाम पे, करते जो मार-काट हैं,
उनके खिलाफ, एक फतवा हम लिखें…
एक पाती ऐसी हम लिखें…
अधिकारी मदमस्त हैं, जनता त्रस्त हैं,
नेता मेरे देश के राजनीति में मस्त हैं,
ये सारा तंत्र हो गया है भ्रष्ट,
इस भ्रष्ट-तंत्र के खिलाफ, एक मंत्र हम लिखें…
आतंक के बढ़ते पांव हैं,
गद्दार खेलते, देश में अपने दाव हैं,
राष्ट्र के विरूद्ध हो रहे षड्यंत्र,
इन षड्यंत्र का भंडाफोड़ हम करें
एक पाती ऐसी हम लिखें…
धर्मनिरपेक्षता का उड़ा रहे मजाक है,
धर्म के नाम पे करते पक्षपात हैं,
धर्म में करते जो करते घपले हैं,
उनके भी नाम अध्यात्म का प्रकाश हम करें
एक पाती ऐसी हम लिखें…
-पंकज व्यास
बहुत ही सही नक्शा खींचा है यथार्थ का ।
मां भारती भी अपना रोना कहां रोयें ।
आभार ।
जय हिन्द !