एक और सीक्वल

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lekhak

ये मेरा तीसरा सीक्वल है। सबसे पहले मैंने एक गंभीर विषय पर लेख लिखा था ‘हिन्दी किसकी है?’ उसका सीक्वल था ‘‘हिन्दी सबकी है’’।‘’कवि और कल्पना’’ व्यंग लिखने के बाद ‘’कवि और कल्पना -2’’ भी लिखा। ‘आजकल सीक्वल फिल्मों की बाढ सी आगई है इसलिये मैंने सोचा अपने व्यंग ’तुम्हारा नाम क्या है?’’, जो बहुत पसन्द किया गया गया था उसका सीक्वल लिख डालूँ, इस बार कवियों कवियत्रियों, लेखकों और लेखिकाओं के नाम पर विचार करने का विचार आया है तो प्रस्तुत है –

तुम्हारा नाम क्या है?- 2

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’ की पहली कड़ी मे मैंने यह तो सिद्ध कर दिया था कि नाम के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। शेक्सपीयर ने बिलकुल ग़लत कहा था कि नाम में क्या रखा है। नाम पहचान है, नाम जीवन भर का साथ है। बहुत से कवि और लेखक नाम को एक क़दम और आगे ले जाते हैं और अपना एक उपनाम रख लेते हैं, जो अक्सर उनके नाम से अधिक लोकप्रिय हो जाता है। अब कितनों को याद होगा कविवर ‘निराला’ जी का नाम सूर्य कांत त्रिपाठी था या ‘दिनकर’ जी रामधारी सिंह थे। उस ज़माने में महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने कोई उपनाम नहीं रखा, इसपर शोध होने की ज़रूरत है। क्यों महिलाओं को सफल कवियत्री होने के बावजूद उपनाम रखने में हिचकिचाहट हुई ? हरिवंश राय ‘बच्चन’ जी के उपनाम के तो क्या कहने ! पूरे परिवार को ऐसा पसन्द आया कि सरनेम ही बना लिया गया। अमिताभ से लेकर आराध्या तक सब बच्चन हो गये और आगे भी बच्चन सरनेम ही चलता रहेगा।

नाम के साथ आज के अनुभवी लेखक और कवि तो उपनाम लगा ही रहे हैं पर कुछ कवि अपनी पहली कविता के साथ ही साहित्य के मैदान में उपनाम के साथ उतर रहे हैं। आजकल का सबसे आकर्षक उपनाम व्यंगकार अविनाश वाचस्पति जी का है। ये ‘’मुन्ना भाई’’ के नाम से जाने जाते हैं, ये उपनाम संजय दत्त ने इनसे चुराया है या इन्होने संजय दत्त से मांगा है इसकी जानकारी मुझे नही है। इन्होने अपना एक जुड़वाँ भाई ‘’अन्नाभाई’’ भी तैयार कर लिया है, इसलियें ये कभी अविनाश वाचस्पति ‘’मुन्नाभाई’’ बन जाते है और कभी अविनाश वाचस्पति ‘’अन्ना भाई’’।

दोहरे नाम वाली प्रथा आम लोगों की तरह साहित्यकारों मे भी फल फूल रही है।दोहरे नाम वालों मे आज के अनुभवी लेखकों में लालित्य ललित जी, रचना आभा जी और गिरीश पंकज जी का नाम लिया जा सकता है। लालित्य जी, अरे नहीं ललित जी ने बताया कि उनका असली नाम ललित किशोर मंडोरा है। उनके एक शिक्षक का नाम भी कुछ मिलता जुलता था। उन्होने अपने असली नाम से ललित ले लिया और किशोर को विदा करके लालित्य ललित बन गये। ये उनका लेखकीय नाम हो गया जो ज़रा साहित्यिक भी लगने लगा। सभी जानते हैं लालित्य काव्य का प्रमुख गुण है।

रचना आभा जी का नाम रचना त्यागी है। उन्हे आभा उपनाम के तौर पर किसी साहित्यकार मित्र ने दिया था। उन्हे आभा से ज़्यादा रचना पसन्द है पर वो कहती है बिना उपनाम लगाये कवियत्री होने का अहसास पूरा नहीं होता। सही कहा कवियत्री ने यदि कवि ने उपनाम नहीं लगाया तो दूसरे उन्हे कवि मानने से इन्कार कर देंगे। ये बात तो बाद की बात है उपनाम के बिना कवि ख़ुद को ही कवि नहीं मान पाते हैं, अधूरापन लगता है। एक और कवियत्री है नीलू पटनी जिनका उपनाम ‘नील परी’ है वाह क्या कहने ! नाम ही काव्य है यहाँ तो सोचिये, कविता में कितना वज़न होगा।

श्री गिरीश पंकज जी के नाम की गुत्थी अभी नहीं सुलझी है कि कौन सा उनका नाम है और कौन उपनाम। ये भी हो सकता है कि ये उनका दोहरा नाम हो। इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनका नाम गिरीश हो और पंकज उनके पिताजी का नाम हो। उनके नाम के बारे मे जानकारी लेने के लियें उनसे संपर्क करने की कोशिश जारी है।

हिन्दी में आचार्य की उपाधि कोई विश्वविद्यालय देता है या कोई विद्वान गुरुजन किसी योज्ञ पात्र को ये उपाधि दे सकते हैं इसका मुझे ज्ञान नहीं है। कई विद्वानो के नाम के आगे जब आचार्य लिखा देखती हूँ तो पता चल जाता है कि इन की रचना को समझने में बहुत समय लगेगा। आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी जो लिखते हैं वह समझने के लिये एड़ी से चोटी तक का दम लगाने पर तथ्य का 50 प्रतिशत ही समझ में आ पाता है मेरे जैसे हिन्दी जानने वालो को। एक अपने छोटे भाई जैसे ही फेसबुक पर मित्र हैं आचार्य उमा शंकर सिंह परमार उनको तो मैं बता चुकी हूँ कि मुझे उनका स्टेटस समझने के लियें चार बार पढ़ना पडता है, तो उनकी किसी किताब को पाठक कहाँ से मिलेंगे ! उन्हे किताब पर एक चेतावनी छपवानी पडेगी ‘’केवल आचार्यों के लिये, Phd की उपाधि प्राप्त लोग पढ़ने की कोशिश कर सकते हैं पर न समझ आये तो इसके लियें लेखक या प्रकाशक ज़िम्मेदार नहीं होंगे’’।

Phd की उपाधि प्राप्त लोग ज़ाहिर है नाम के आगे डा. लगाते हैं, हक ये उनका, पर बहुत चिकित्सक जो डाक्टर हैं वो भी लेखन के क्षेत्र में उतर पड़े हैं, जब मरीज़ नहीं आया तो कविता लिखली। इन दोनो का अन्तर जब तक इनकी 2-4 रचनायें न पढलो समझ में नहीं आता।

अपने नाम के आगे कवि लिखने वाली हस्तियों में सबसे पहले मैं कवि देव भारती का नाम लूँगी। उनके बाद बहुत से नाम है किसी को आगे पीछे करने से कोई अंतर नहीं पड़ेगा कुछ नाम देखिये कवि सुरेन्दर साधक, कवि ऐलेश अवस्थी, कवि सोमदत्त व्यास, कवि कुमार मनोज, कवि नन्दू भदौरिया ‘मदहोश’ और कवि नरेश पटेल इत्यादि…… इत्यादि……..

कुछ शायर और कवि अपने नाम के साथ अपने शहर का नाम लिखकर उसे गौरव प्रदान करते हैं जैसे साहिर लुधियानवी या जिगर मोरादाबादी। कई शायरों ने लखनवी, इलाहाबादी ,देहलवी या बरेलवी लिखकर अपनी मौजूदगी दिखाई। एक बहुत छोटे से कस्बे से जिसका नाम दनकौर है, ये कहाँ है ? ये भी कोई नहीं जानता होगा , इस जगह से साहित्य के पटल पर अपनी मौजूदगी दर्ज की दीक्षित दनकौरी के नाम ने। दीक्षित इनका सरनेम है पूरा नाम मुझे मालुम नहीं ये दनकौर से हैं जो ग़ाजियाबाद और अलीगढ के बीच दिल्ली हावड़ा लाइन पर एक छोटा सा स्टेशन है, जंहाँ सिर्फ पैसेन्जर ट्रेन रुकती हैं। इस छोटे कस्बे की बड़ी हस्ती को सलाम।

कभी कभी पुरुषो के नाम ऐसे रख दिये जाते है जो आम तौर पर महिलाओ के होते हैं इसके विपरीत महिलाओं के नाम भी पुरुषों वाले रख दिये जाते हैं। मेरे एक कवि मित्र ने अपनी राम कहानी सुनाई उनका नाम चंचल है। चंचल जाहिरी तौर पर महिलाओं का नाम है। बाद में परिवार के अन्य सदस्यों की तरह उन्होने अपने नाम के आगे मोहन लगा लिया। इसके बाद भी एक बैंक में बारह साल तक श्रीमती रहे मतलब उनका खाता श्रीमती चंचल मोहन माथुर नाम से चलता रहा। यह बात उन्हे तब पता चली जब अपना खाता बंद करवाया। राजस्थान के कोटा शहर में ये बड़े समाचार पत्र में बतौर स्थानीय संपादक कार्यरत थे वहां उनके लिए फोन आते हमेशा, मेडम से बात करवाइये…………….. इस मुश्किल से एक बार मै भी गुज़री हूँ जब एक संदेश मेरे पास मिस्टर बीनू भटनागर के नाम से आया। खैर ये समस्या सिर्फ कवि या लेखकों की नहीं है, किसी को भी जिसका नाम उभयलिंगी किस्म का हो ये समस्या हो सकती है।

मेरी फेसबुक मित्रसूची में जहाँ एक ओर सर्वश्री प्राण शर्मा, प्रो. विश्वम्भर शुक्ल, कवि देव भारती और राजेन्द्र अवस्थी जैसे वरिष्ठ साहित्यकार हैं वहीं हिन्दी की कुछ अनजानी उभरती प्रतिभायें भी हैं। एक होनहार बालक बलिया उ. प्र. से है जिसका नाम कुमार राज ‘समीर’ है, समीर इसका उपनाम है। एक कवि खुद को मै वीतरागी कहते हैं, अच्छा लिखते हैं, ये मुझे मां कहते हैं, पर मां को पता नहीं कि ये कहाँ रहते हैं क्या करते हैं। Psy Hill Pradhan दुबई से हैं, इन्हे लगा कि इनके नाम को समझना मुश्किल है पर मै समझ गई कि ये साहिल प्रधान हैं। नामों की ये लुकाछुपी ये क्यों कर रहे हैं ये तो ये ही जाने।

नामों को लेकर शायद अब तक इतना शोध किसी ने न किया हो, यदि किसी विश्व विद्यालय के उच्चाधिकारियों की निगाह मेरे इस शोधपत्र पर पड़ गई तो हो सकता है मुझे घर बैठे बैठे Phd की उपाधि मिल जाय और मैं डा. बीनू भटनागर लिख सकूँ। यदि मुझे कभी लगा कि मै लेखिका या कवियत्री बन गई हूँ तो मै भी एक उपनाम रक्खूंगी और वो होगा ‘कुमुद’।ये नाम मेरे लिये मेरे माता पिता ने सोचा था, पर मै ही बचपन मे ख़ुद ‘’ मै बीनू मै बीनू’’ कहने लगी तो उन्होने मेरा नाम ही ये रख दिया। काश ! उन्होने मेरी बात न मानी होती ….. ये मेरा सपना है कि मै अपना नाम लिखूँ, डा. बीनू भटनागर ‘कुमुद’। मैने कभी एक कविता लिखी थी-

मै सपनो मे नहीं जीती,

सपने मुझमे जीते हैं।

ये सपना यथार्थ से बहुत दूर है, पर सपना तो है, जो मन के किसी कोने मे जीता है।

 

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