एक ट्वीट ने मृणाल पांडे की कलई खोल दी

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जब बड़े ओहदे पर रह चुकी नामचीन हस्‍ती मात्र अपनी खुन्‍नस निकालने को मर्यादा के सबसे निचले स्‍तर पर उतर आए और गली कूचों में इस्‍तेमाल की जाने वाली गरियाऊ भाषा को अपना हथियार बना ले तो क्‍या कहा जाए ऐसे व्‍यक्‍ति को।
दैनिक हिन्‍दुस्‍तान की प्रधान संपादक रह चुकीं मृणाल पांडे ने अपनी नकारात्‍मकता को अब चरम पर ले जाते हुए प्रधानमंत्री को उनके जन्‍मदिन पर ही कटु ट्वीट करके यह बता दिया है कि कभी किसी संस्‍थान के उच्‍च पद पर बैठ जाने से जरूरी नहीं कि वह व्‍यक्‍ति बुद्धिमान भी हो जाए।
मैंने पहले भी मृणाल पांडे की नकारात्‍मकता पर लिखा है और आज फिर उन्‍होंने मुझे ही नहीं, पूरे पत्रकार जगत को मौका दे दिया कि अब इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए कि ”किसी संवैधानिक पद पर बैठे व्‍यक्‍ति को किस हद तक गरियाया जा सकता है”।

दरअसल, कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन 17 सिंतबर पर वरिष्ठ पत्रकार, प्रसार भारती की पूर्व चेयरपर्सन और साहित्यकार मृणाल पांडे ने भी एक ट्वीट किया जिसमें मृणाल पांडे ने लिखा- #JumlaJayanti पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन.’ साथ में ये चित्र भी पोस्‍ट किया।
पीएम मोदी पर मृणाल पांडे का ये ट्वीट तब आया है, जब नरेन्द्र मोदी अपना 67वां जन्मदिन मना रहे हैं। मृणाल पांडे के ट्वीट पर लोगों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और उनके इस ट्वीट को प्रधानमंत्री और स्‍वयं मृणाल पांडे की अपनी गरिमा के खिलाफ बताया। हद तो तब हो गई कि मृणाल पांडे ने कई लोगों जवाब देते हुए कहा कि वो अपने विचार पर कायम हैं।
इस ट्वीट ने पत्रकार जगत को भी भौचक्के में डाल दिया। तमाम पत्रकारों को समझ नहीं आ रहा कि इस पर रिएक्‍ट कैसे करें।
उनके इस ट्वीट की रवीश कुमार, अजीत अंजुम सहित तमाम पत्रकारों ने भी निंदा की और कहा है कि वो इतनी बड़ी हस्ती हैं तो उन्हें सोशल मीडिया पर मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए। किसी के भी जन्मदिन के मौके पर पहले बधाई देने की उदारता होनी चाहिए, फिर किसी और मौक़े पर मज़ाक का अधिकार तो है ही। मृणाल रुक सकती थीं। कहीं तो मानदंड बचा रहना चाहिए. थोड़ा रुक जाने में कोई बुराई नहीं है. एक दिन नहीं बोलेंगे, उसी वक्त नहीं टोकेंगे तो नुक़सान नहीं हो जाएगा.”

पत्रकार अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मृणाल जी, आपने ये क्या कर दिया ? पीएम मोदी का जन्मदिन था. देश -दुनिया में उनके समर्थक/चाहने वाले/नेता/कार्यकर्ता/जनता/मंत्री/सासंद/विधायक जश्न मना रहे थे. उन्हें अपने-अपने ढंग से शुभकामनाएँ दे रहे थे. ये उन सबका हक़ है जो पीएम मोदी को मानते-चाहते हैं. ट्विटर पर जन्मदिन की बधाई मैंने भी दी. ममता बनर्जी और राहुल गांधी से लेकर तमाम विरोधी नेताओं ने भी दी. आप न देना चाहतीं तो न देतीं, ये आपका हक़ है. भारत का संविधान आपको पीएम का जन्मदिन मनाने या शुभकामनाएँ देने के लिए बाध्य नहीं करता. आप जश्न के ऐसे माहौल से नाख़ुश हों, ये भी आपका हक़ है लेकिन पीएम या उनके जन्मदिन पर जश्न मनाने वाले उनके समर्थकों के लिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करें, ये क़तई ठीक नहीं.”
आश्‍चर्य होता है कि अपनी उम्र के उत्‍तरार्द्ध में आकर ”भाषा के बूते” ही साहित्‍य में अमिट छाप छोड़ने वाली कथाकार शिवानी की पुत्री मृणाल ही उस ”भाषा की मर्यादा” को तार-तार कर रही हैं। मृणाल पांडे उनकी जैविक पुत्री अवश्‍य हैं परंतु बौद्धिक पुत्री नहीं हो सकतीं। हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारी भाषा शैली और व्यवहार से हमारे चरित्र का बोध होता है इसलिए दैनिक जीवन में अपनी भाषा के उपयोग को लेकर हमें सजग रहना चाहिए, फिर सोशल मीडिया के किसी प्‍लेटफॉर्म पर तो और भी सतर्कता बरतनी चाहिए, परंतु मृणाल ऐसा न कर सकीं। इसे यथार्थवाद या मज़ाक भी तो नहीं कहा जा सकता।
प्रधानमंत्री के पद पर बैठे एक व्यक्ति के लिए खुद को हिन्दुस्तान की प्रथम महिला संपादक होने का तमगा देने वाली महोदया की ऐसी भाषा और अभिव्यक्ति पर सिर्फ अफ़सोस के और कुछ नहीं किया जा सकता। परंतु वरिष्‍ठ पत्रकारों द्वारा इसको ”अनुचित” कहना, अच्‍छा लगा वरना इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया (चूंकि प्रिंट मीडिया की प्रतिक्रिया त्‍वरित नहीं होती ) अपनी बिरादरी के माननीयों के शब्‍दों को दाएं-बाएं करने में माहिर है। जहां तक मुझे लग रहा है कि गौरीलंकेश की हत्‍या के बाद ये सुखद परिवर्तन आया है। अब ये परिवर्तन स्‍थायी है या नहीं, कहा नहीं जा सकता।
आमतौर पर कहा जाता है कि अब कोई 60 की उम्र होने पर ही नहीं सठियाता, वह अपनी सोच से सठियाता है। जिन्‍होंने मृणाल पांडे के साथ काम किया है, वे अच्‍छी तरह जानते हैं कि भारी भरकम शब्‍दों को उन्‍होंने किस तरह ढोया है, अब वो थक चुकी हैं और थकान में नकारात्‍मकता आ ही जाती है, ट्विटर पर ये अपनी मानसिक थकान उतार रही हैं। इस एक ट्वीट ने मृणाल पांडे को कहां से कहां पहुंचा दिया, सारी कलई उतर गई है उनकी।
मृणाल पांडे की सोच पर इब्न-ए-इंशा का ये शेर बिल्‍कुल मुफीद बैठता है-
”शायर भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे…जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं।”
-अलकनंदा सिंह

5 COMMENTS

  1. मृणाल पांडे, एक अज्ञात नाम अकस्मात् यहाँ लेख पढ़ते उस नाम के व्यक्ति-विशेष को वैसे ही हाड़-मांस के अन्य व्यक्तियों के साथ खड़े पाता हूँ जिन्हें मैं जन्म-जन्मान्तर से फिरंगियों और तथाकथित स्वतंत्रता पश्चात कांग्रेसियों का साथ देते देखते पढ़ते आया हूँ| अब तक मृणाल पांडे को मालूम हो चूका है कि उसका कुकर्म तरकश से निकला वह तीर है जो उसकी अंतर-आत्मा को कोसता रहेगा| कल चढ़ते सूरज को जब देखेगी तो आँखें सूरज की किरणों से चौंधियाने से नहीं बल्कि शर्म से झुकी रह जाएंगी|

  2. कुछ लोगों का दिमाग अपनी योग्यता से अधिक ऊंचाई पर पहुँचने के बाद ख़राब हो जाता है! वो किसी के भी बारे में कुछ भी लिखना या बोलना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगते हैं! आश्चर्य होता है कि क्या वास्तव में मृणाल पांडेय गौरी पंत (शिवानी) की ही बेटी हैं?

  3. ‘एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिला रहे हैं’ वाला ट्वीट करने वाले निखिल दधीचि द्वारा कर्नाटका की वरिष्ठ पत्रकार ‘गौरी लंकेश’ की हत्या तुरंत बाद दिया जाता है और उसको फॉलो हमारे प्रधानमंत्री जी कर रहे हैं जबकि इतनी आलोचना होने के बाद उनको दधिची को अनफालो कर देना चाहिए था/ जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया कभी कभी किसी विषय पर बोलना ही नहीं, चुप्पी भी बहुत कुछ हमारे चर्रित्र और मानसिकता के बारे में बयां कर जाता है / आप सही आलोचक तभी हो सकती हैं जब आप की कलम किसी विषय के दोनों पहलुओं को समाहित करती हो/ आप को याद होगा नरेन्द्र मोदी जी ने हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में कि बाथरूम में रेनकोट पहनकर नहाने की कला तो कोई डॉक्टर साहब से सीखे/ ऐसे शब्द जब खुद एक सम्वैधानिक पद पर बैठा इन्सान किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में कह रहा हो जो केम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ा हो तथा देश के विभिन्न वित्तीय संस्थानों सचिव् तथा सलाहकार रहे हों और 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे हों/
    क्या देश में इन लोगों के चाहने वाले नहीं हैं / जिस सोशल मीडिया का सहारा लेकर मोदी जी इन ऊँचाइयों को छुएं है अब वही सोशल मीडिया उनसे सवाल पूछ रही है / जब सोशल मीडिया पर अन्य नेताओं का मजाक उड़ाया जाता है तब भी आपको अपने लेख में शामिल करना चाहिए/
    हम सबको पता है कि बीते तीन-चार सालों के दौरान करीब-करीब हर पार्टी के नेताओं ने एक-दूसरे पर हमले करते वक्त न्यूनतम मर्यादा के भी चीथड़े उड़ाए हैं. सोशल मीडिया में तो सरकार के हर अच्छे-बुरे कामों या बयानों को सही ठहराने के लिए ऐसे हजारों साइबर सिपाही/ ट्रोल/भक्त/समर्थक सक्रिय हैं.
    मृणाल जी तो बहुत पढ़ी-लिखी विदुषी महिला हैं. हम जब बोलने-पढ़ने-लिखने लायक भी नहीं थे, तब वो बड़े प्रतिष्ठान की संपादक थीं.

  4. छिनाल पाण्डेय . बुरका दत्त से बेहतर नहीं, भिन्न नहीं .

  5. उच्च भाषा व लेखन की धनी रही स्वर्गीय शिवानी की पुण्यात्मा भी आज अपनी बिटिया के द्वारा किये गए इस ट्वीट पर शर्मिंदगी महसूस कर रही होगी , मन कि आप के वैचारिक मतभेद हो सकते हैं , आपके राजनैतिक द्वेष भी हो सकते हैं लेकिन ऐसे अवसर पर अपने मन के विचारों को अभिव्यक्त करने में एक संयम की जरुरत तो होती ही है , इस ट्वीट के माध्यम से उन्होंने अपने मानसिक दिवालियेपन को तो जाहिर किया ही है , इस बात पर भी शंका खड़ी क्र दी है कि हिंदुस्तान जैसे समाचार पत्र का संपादन का भार उन्होंने क्या वास्तव में वहन किया है ?
    वैचारिक शालीनता विशेषकर एक पत्रकार का एक अपना व्यक्तित्व झलकाता है और यही बात इन पर भी लागू होती है , और पाठक खुद ही अब इसका विश्लेषण कर लेंगे

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