नेताओं की तरफ झांक कर भी नहीं देखते!

politicsडा. वेद प्रताप वैदिक

सारी पार्टियों के नेता पांच राज्यों के चुनाव-परिणामों पर नज़र लगाए हुए हैं लेकिन इधर एक सर्वेक्षण के परिणाम अखबारों में आज छपे हैं। सभी नेताओं के लिए ये बुरी खबर लाए हैं। ये सर्वेक्षण अलग-अलग शहरों के लगभग 10 लाख लोगों के बीच से किए गए हैं। लगभग साढ़े छह हजार नौजवानों से बातचीत के आधार पर नतीजे निकाले गए हैं। इनकी उम्र 7 से 14 साल है। ये शहरी बच्चे हैं। ये गांव के नहीं हैं। जाहिर है कि ये संपन्न परिवारों के होंगे और ऊंची जातियों के भी! क्या कहते हैं, ये नौजवान? इनसे पूछा गया था कि तुम अपने जीवन में क्या बनना चाहते हो?

इनमें से 31 प्रतिशत नौजवानों ने कहा कि वे सानिया मिर्जा बनना चाहते हैं, 21 प्रतिशत ने कहा सचिन तेंदुलकर, 20 प्रतिशत ने कहा सलमान खान और 11 प्रतिशत ने कहा केटरीना कैफ। सिर्फ 1 प्रतिशत नौजवानों ने कहा कि वे नेता बनना चाहते हैं। नेताओं को तो नेता ही कोसते रहते हैं, पत्रकार भी उन पर आग बरसाते रहते हैं और आम जनता अपने स्वार्थ के मुताबिक उनके प्रति मान या अपमान प्रकट करती रहती है लेकिन बताइए 7 साल से 14 साल के नौजवानों का इन नेताओं ने क्या बिगाड़ा है कि उनमें से 99 प्रतिशत नेताओं की तरफ वे झांक कर भी नहीं देखना चाहते?

यह गंभीर मामला है। देश के लोकतंत्र को सबल बनाने की चिंता, जिनको है, उन्हें सोचना होगा कि हमारे नेताओं की छवि इतनी खराब क्यों हैं? अब से 60-70 साल पहले जब यही सवाल पूछा जाता था तो बच्चे जवाब देते थे कि हम भगतसिंह बनेंगे, हम गांधी बनेंगे, हम सुभाष बनेंगे, हम नेहरु बनेंगे, हम सावरकर बनेंगे, हम तिलक बनेंगे, हम आंबेडकर बनेंगे। लेकिन क्या वजह है कि आज वे दुनिया के हर धंधे में जाना चाहते हैं लेकिन राजनीति में नहीं जाना चाहते?

इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही मालूम पड़ती है कि 14 साल तक की उम्र के बच्चों की समझ ही कितनी होती है? यह उम्र खेलने-खाने की होती है। बच्चों के दिमाग पर टीवी और सिनेमा का गहरा प्रभाव होता है। खिलाड़ी और अभिनेता उन पर छाए रहते हैं। खिलाड़ी और अभिनेता हमारे नेताओं की तरह तू-तू–मैं-मैं भी नहीं करते। नेता लोग जो कुछ भला करते हैं, वह खबर नहीं बनती और जो कुछ बुरा करते हैं, वह उस दिन की सबसे बड़ी खबर बन जाती है।

भारत के आम नागरिकों के जीवन में राजनीति और नेतागण बाहरी चीज़ हैं। अंदरुनी नहीं। वे हाशिए पर होते हैं। मुख्य पृष्ठ पर नहीं। देश में नेता हैं ही कहां? सच्चे नेता हों तो वे नैतिकता के मूर्तिमंत स्वरुप हो। उनका आचरण अनुकरणीय हो। वे लोगों के दिल में हों, दिमाग में हों, जुबान पर हों लेकिन वे रहते हैं, अखबारों में और टीवी के पर्दों पर। किशोर और नौजवानों के लिए तो वे वहां भी नहीं होते। उनके लिए इनकी खबरों को पढ़ना और देखना बेहद उबाऊ काम है। नेताओं के लिए क्या यह अच्छी ख़बर है?

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