महज घटना नहीं, बच्चों की रेल से मौत….

रामकुमार ‘विद्यार्थी॔’

म.प्र. के दमोहसागर रेल लाइन पर मालगाड़ी के चपेट में आने के कारण 3 बच्चों की वीभत्स मौत हो गई। घटना अनुसार दमोह से सागर की तरफ जा रही रेल जैसे ही मलैया मिल के समीप पहुची तभी कचरा बीन रहे उम्र 14 वर्ष, अमीर 13 वर्ष एवं शाहिद उम्र 12 वर्ष कर मौके पर मृत्यु हो गई। ये सभी बच्चे कचरा बीनने वाले समुदाय से रहे हैं। गौरतलब है कि यह घटना 15 जुलाई को सुबह 6 बजे घटित हुई।
इस घटना के बाद सरकारी अमले ने अपनी कार्यवाई शायद पूरी भी कर ली हो और बच्चों के परिजनों ने इसे ऊपर वाले का करम मानकर अपने आप को सांत्वना दे ली हो, लेकिन बाल अधिकारों को सुनिश्चित करने वालों के लिए यह महज एक घटना नहीं है। रेल्वे प्लेटफार्म से जुड़े बच्चों के बीच काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन लम्बे समय से बच्चों की सुरक्षा का सवाल उठाते रहे हैं बावजूद इसके रेल्वे प्लेटफार्म और ट्रेनों में असुरक्षित बच्चों की बड़ी संख्या बनी हुई है। आज भी प्लास्टिक,पानी की बोतलों इत्यादि को समेटने और उन्हें इकट्ठा करके जीवनयापन करने के कारण ऐसे लोगों की तमाम झुग्गियां रेल लाइनों के किनारे ब़ढती जा रही है। निवसीडबचपन संस्था द्वारा प्रदेश के भोपाल, इटारसी,कटनी जैसे रेल्वे स्टेशनों पर चलाये जा रहे कार्यक्रमों के अनुभव बताते हैं कि रेल्वे प्लेटफार्म पर रोजाना 23 नये बच्चे आ रहे हैं। इन बच्चों का अधिकांश समय ट्रेन में भीख मांगने, अपनी कमीज उताकर डिब्बों में सफाई करने, तथा कचरा बीनने जैसे कामों बीतता है ६-१४ वर्ष के ज्यादतार बच्चों मातापिता का पता न होने तथा कुछ हद तक गरीबी के कारण जानबूझकर उन्हें काम में लगा देने से अमूमन हर बड़ेमझोले रेल्वे स्टेशनों पर असुरक्षित बच्चे २०-२५ की संख्या में देखे जा रहे है। सुबह 5से 6 बजे की यह घटना यह बताने के लिए काफी है कि आज जब शहरी सूरज ९ -१० बजे निकलता है तब कचरे का बोरा लिये नौनिहालो की टोली सुबह 5 बजे से ही बिना कुछ खायेपिये आजीविका की तलाश में निकल पड़ती है। बिलासपुर से जबलपुर के बीच चलने गाड़ियों में कम उम्र के बच्चों को कचरा समटेते, भीख मांगते देखा जा सकता है।इन्हीं गाड़ियों में कुछ बच्चों के मांबाप चादर फैलाकर या दुधमुंहे बच्चों को लेकर भीख मांगते दिखाई पड़ते है।
रेल की भीड़भाड़ और दौड़भाग के बीच ठोकरें खाते रेल पुलिस और सवारियों की दुतकार सहते ये बच्चें रात में किसी प्लेटफार्म पर अपना डेरा जमा लेते हैं। एैसे में इन्हे शारीरिक शोषण का शिकार भी होना पड़ता है। यहां बच्चों में लड़कियों की भी संख्या है जिन्हे कई तरह की हिंसा झेलनी पड़ती है। बाल कल्याण समिति की भोपाल, इटारसी इकाई के समक्ष ऐसे मामले आते रहे हैं। मध्यप्रदेश के समस्त जिलों में बाल कल्याण समितियों के गठन की सूचना है। जे.जे. एक्ट व प्लेटफार्म स्कूल को प्रभावी बनाने की बात भी की जा रही है।बाल अधिकार संरक्षण आयोग अपनी अनुसंशाएं कर रहा है बावजूद इन सबके बच्चों का एक तबका अपनी सुरक्षा और विकास के अधिकारों से वंचित बना हुआ है। भोपाल रेल्वे स्टेशन के समीप संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों को लेकर दिशा सेन्टर बचपन संस्था द्वारा चलाया जा रहा है। यहां रेल्वे प्रशासन को बच्चों के मुद्दों पर संवेदनशील बनाने की कोशिश भी की गई। नतीजन प्लेटफार्म पर भटककर आने वाले कई बच्चों की घर वापसी की गई किन्तु आज भी ढेरों बच्चों के लिए रेल्वे प्लेटफार्म ही उनका आसरा है। सर्वाधिक चिन्ताजनक स्थिति इन्हीं की है कई प्रकार के नशे के आदि ये बच्चों दिनरात असुरक्षा में जीवनयापन करने को विवश है। जीतोड़ मेहनत करने वाले ये बच्चे यूं तो दिनभर में ८० -९० रूपये कमा लेते है लेकिन इनके हिस्से महज १५-२० रूपये ही आता है जो कि फेवीक्विक्स या इरेजेक्स, गुटखा आदि का नशा करने में खर्च होता है या फिर कोई बड़ा बच्चा उनसे खेलखेल में ये पैसे जीत लेता है। भोजन के नाम पर कभीकभार सवारियों द्वारा प्रदत्त पूड़ी आदि तथा प्लेटफार्म पर बिकने वाले समोसे से ही ये अपना पेट भरते हैं। इन सब परिस्थितियों के बीच आमजन और रेल्वे पुलिस, रेल कर्मचारियों की भी यह सोच है कि गरीबी और अलाली के कारण बच्चे इस हालत में हैं। दयाभावना और दानपुण्य से भला करने की हमारी प्रवृत्ति कहीं इन बच्चों के लिए भी दिखाइ्र पड़ती है।
सवाल यह है कि क्या इन बच्चों के लिए सुरक्षा और विकास किसी सरकार उसके अमले के फिक्र में है? इन बच्चों को प्राथमिकता के आधार पर स्वास्थ्य, सही शिक्षा व सुरक्षा मुहैय्या हो और इनके अभिभावकों को ठोस रोजगार मिले तभी बदलाव आ सकता है। बालश्रम व बालअसुरक्षा को लगातार छुपाने की प्रवृत्ति से बाहर निकले और नीतिगत स्तर पर क्रियांवयन सुनिश्चित किए बगैर दमोह जैसी अपनी गल्तियों को हम दुर्घटना ही करार देते रहें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here