तभी सबसे आगे होंगे हिदुस्तानी

ओंकारेश्वर पांडेय

दुनिया के बाजारों में भारतीय श्रम शक्ति पर पाबंदियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों ने वीजा जारी करने वाले उन आव्रजन नियमों को सख्त कर दिया है, जिनका इस्तेमाल कंपनियां अपने कर्मचारियों का तबादला ब्रिटेन करने के लिए करती हैं. अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और उसके बाद न्यूजीलैंड की सरकारों ने भी वीजा से जुड़े नियम सख्त कर दिए हैं. निश्चय ही इस सुविधा का सबसे ज्यादा लाभ भी भारतीय कंपनियां ही उठाती रही हैं.
हलांकि पिछले दिनों जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम की समीक्षा करने के कार्यकारी आदेश पर दस्तखत किये, तो इससे भारतीय आईटी कंपनियों में कोई खास अफरातफरी नहीं मची. उसका एक कारण ये भी है कि फिलहाल नियम जस के तस हैं. लेकिन यह भी सच है ही कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मेक इन इंडिया अभियान की तरह ट्रंप की बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकननीति का भविष्य में भारतीयों के लिए अमेरिका में शिक्षा और रोजगार के अवसर काफी कम कर सकती है. यह नीति भारतीय आईटी कंपनियों को भविष्य के लिए सतर्क करने का साफ संदेश देती है. क्योंकि हर साल भारत के युवा अमेरिका का एच-1बी वीजा लेने के लिए इसीलिए कतार में लगे रहते हैं.
दरअसल अमेरिका और अन्य देशों की सरकारें अब अपने देश को यह भरोसा दिलाना चाहती हैं कि वे अपने देश के नागरिकों के भविष्य खासकर रोजगार की चिंता ज्यादा करती हैं और उनके हितों को केंद्र में रखकर नीतियां बना रही हैं. इस पॉपुलिस्ट नीति की वजहें इन देशों में दो भावनाएं फैलना हैं. एक तो यह कि उनके देशों में आव्रजन बहुत बढ़ गया है, उसे रोकना चाहिए. दूसरा यह कि उनको लगता है कि भारतीयों समेत अन्य देशों के आव्रजक कम दक्ष होने के बावजूद उनके रोजगार पर काबिज हो रहे हैं, क्योंकि वे कम वेतन पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं. यही वजह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने आदेश में संघीय एजेंसियों से वे उपाय सुझाने को कहा है, जिनसे सुनिश्चित हो सके कि एच-1बी वीजा उन्हीं लोगों को मिले जो सबसे ज्यादा दक्ष यानी स्किल्ड हों और जिनका वेतन भी सबसे ज्यादा हो. वैसे भी अमेरिका, ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया जैसे यूरोपीय देशों की कंपनियां अच्छा वेतन देती ही हैं. और इससे उनकी श्रमशक्ति की गुणवत्ता का भी अंदाजा लगता है. राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश से जारी नए प्रस्तावों में कहा गया है कि एच-1बी वीजा उसे ही दिया जाए जिसे कम से कम एक लाख 30 हजार डॉलर का वेतन मिलता हो. जाहिर है, इतने वेतन के लिए दक्षता भी उतनी ही चाहिए. पर भारतीय ये भी कर सकते हैं. और करके दिखाएंगे.
निश्चित रूप से भारतीय कंपनियों को इस नये चुनौती भरे माहौल में टिके रहने के लिए अपनी दक्षता बढ़ानी होगी और साथ ही नए रास्ते भी तलाशने होंगे. उन्हें अब अपना ध्यान सस्ते मानव संसाधनों की बजाय गुणवत्ता और ज्यादा ऊंची उत्पादकता पर लगाना होगा.निश्चित रूप से भारतीय कंपनियां इस नयी चुनौती से निपटने के लिए उस नयी राह पर बढ़ेंगी ही, जिसे वे पहले ही कुछ हद तक अपना चुकी हैं.
दरअसल दुनिया भर की तमाम बड़ी कंपनियों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और ऑटोमेशन बढ़ा है. इसे फलस्वरूप अनेक तरह के कामकाज वैसे ही काफी कम हो गए हैं और आगे भी वैसे कामकाज पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है, जो एच-1बी वीजा का फायदा उठाने वाले भारतीय आईटी पेशेवर करते रहे हैं. इसलिए इस नयी चुनौती का सामना करने के लिए भारतीय कंपनियों को भी अब बिग डेटा एनैलिटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे नए और संभावनाओं से भरे क्षेत्रों में दाखिल होना होगा और परामर्श यानी कंसल्टिंग से जुड़ी क्षमताएं बढ़ानी होंगी. आईबीएम और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों की कार्यशैली में आए बदलाव के चलते अब ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस जैसी तकनीक की सुविधा जब चाहे तब हासिल की जा सकती है. भारतीय कंपनियों को इससे मदद मिलेगी. तभी वे अपने विदेशी प्रतिस्पर्धियों के आगे टिकी रह पाएंगी.
तो सवाल यह है कि अब भारतीय कंपनियां और युवा इस नयी परिस्थिति में क्या करें. बेहतर ये है कि भारतीय युवा और कंपनियां इसे एक नयी चुनौती की तरह स्वीकार करें और अपनी क्षमता व दक्षता बढ़ाने के उपाय करें. दुनिया के देशों में भारतीय आईटी कंपनियों की धूम पहले से है. इस तरीके से भी सोचना चाहिए कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मेक इन इंडिया की बात कर सकते हैं, तो राष्ट्रपति ट्रंप भी बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन नीति का अनुसरण करके अपने देश को कुछ तसल्ली दे रहे हैं, तो इसमें कोई बुराई नहीं. लेकिन भारतीयों को अभिशाप में वरदान की कहावत चरितार्थ करते हुए अपनी धाक बरकरार रखने के लिए अब बिग डेटा एनैलिटिक्स और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे नये नये क्षेत्रों पर अपना ज्ञान व दक्षता बढ़ाते हुए इसका मुकाबला करना चाहिए, तभी वे गर्व से कह पाएंगे – सबसे आगे होंगे हिदुस्तानी

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