सिर्फ दो लोग जानते हैं कि कौन होगा अगला राष्ट्रपति

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निरंजन परिहार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह आखरी समय तक सस्पेंस बनाए रखते हैं। यह उनकी राजनीतिक स्टाइल है। इतने बड़े देश भर में कोई नहीं जानता कि अगले राष्ट्रपति के लिए सत्ता पक्ष का उम्मीदवार कौन होगा। लेकिन मोदी और शाह तो सब कुछ जानते ही है।

राजनीति में ऐसा होता है कि कोई व्यक्ति जो काम कर रहा होता है, उसे नहीं पता होता कि उसके वह काम करने का आखिर मतलब क्या है। उसे यह भी नहीं पता होता है कि उससे यह काम क्यूं करवाया जा रहा है, जबकि जो वह कर रहा है, वह होना ही नहीं है। और यह भी वह नहीं जानता कि अंततः होगा क्या। लेकिन फिर भी उसे सौंपा गया काम वह लगातार किए जाता है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह और नगर विकास मंत्री वेंकैया नायड़ू इन दिनों यही कर रहे हैं। वे जानते कि देश का राष्ट्रपति बनाने के लिए विपक्ष के नेताओं से मिलकर सहमति की वे जो कोशिशें कर रहे हैं, उसका परिणाम कुछ भी नहीं निकलना है। क्योंकि उनके पास कोई नाम नहीं है। और यह भी वे तो जानते ही हैं कि इस देश का बच्चा बच्चा जानता है कि दुनिया में सिर्फ दो लोग ही हैं जो जानते हैं कि हमारा अगला राष्ट्रपति कौन होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह। तो देश के इतने बड़े तीन मंत्रियों से फिर इतनी सारी कवायद का आखिर मतलब क्या है ?

हमारे हिंदुस्तान के अगले राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवारी किसको दी जाए, उस व्यक्ति के नाम पर सत्ता पक्ष और विरोधी दलों में चर्चा की शुरुआत कोई डेढ़ – दो महीने पहले से ही गई थी। लेकिन पक्ष हो या विपक्ष, जिन नेताओं के बीच चर्चा चल रही है, उन्हें और सहमति बनाने के लिए डगर डगर फिर रहे देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह और नगर विकास मंत्री वेंकैया नायडू को सच में नहीं पता कि सहमति आखिर किसके नाम पर बनानी है। राजनीति का यह सबसे मनोरंजक परिदृश्य है कि देश के आला मंत्री भी नहीं जानते कि उन्हें किसके नाम पर सहमति बनानी है। लेकिन फिर भी घूम रहे हैं। मिल रहे हैं। वे कांग्रेस के नेताओं और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मिले। लेकिन कांग्रेस की ओर से जब साफ साफ कह दिया गया कि नाम बताओ। जब तक नाम नहीं बताया जाता, सहमति तो क्या सहयोग और विचार विमर्श का भी कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। वे बीजेपी के भीष्म पितामह लालकृष्ण आडवाणी से मिले दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी से मिले। विपक्ष में सीताराम येचुरी, राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता प्रफुल्ल पटेल और बहुजन समाज पार्टी  के सतीश चंद्र मिश्रा से भी बात की। और भी कईयों से मुलाकात करके राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर चर्चा कर रहे हैं। लेकिन किसी को पता ही नहीं है कि इस चर्चा का आखिर मतलब क्या है। और यह तो बिल्कुल नहीं पता कि सहमति आखिर किसके नाम पर बनानी है।

अब तक के उनके काम करने के तरीकों और सफलताओं को देखते हुए हमें यह मानना ही होगा कि हमारे देश की राजनीति में अमित शाह एक धुरंधर राजनेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं। कभी शाह को नरेंद्र मोदी का दूत माना जाता था। लेकिन राजनीति के पंडितों के बीच उन्हें वर्तमान भारत का चाणक्य माना जाने लगा है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पार्टी कोर कमेटी की बैठक तो की, लेकिन इस बैठक में भी मोदी ने राष्ट्रपति चुनाव का नाम तक नहीं लिया। इसके पीछे दिमाग अमित शाह का ही बताया जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों की राय में इस बार का राष्ट्रपति चुनाव भारतीय लोकतंत्र की नई दिशा का पथ प्रदर्शन करेगा। राजनीति के गलियारों में खबर आम है कि जिस तरह से यूपी में मुख्यमंत्री पद के लिए ऐन वक्त पर योगी आदित्यनाथ का नाम आगे पेश करके मोदी और शाह ने सभी को अपने पांडित्य का परिचय दिया था, उसी तर्ज पर इस बार भी सारी अटकलों को दरकिनार करते हुए, मोदी और शाह की जोड़ी ऐन वक्त पर कोई नाम पेश करके सभी को चौका देगी।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए सबका साथ पाने के लिए तीन मंत्रियों की एक कमेटी बनाई, जिसमें राजनाथ सिंह, वेंकैया नायड़ू और वित्त मंत्री अरुण जेटली के नाम थे। इन तीनों नेताओं को सिर्फ काम बताया गया, नाम नहीं बताया गया। कहा गया कि विपक्ष से समर्थन किसी उम्मीदवार के नाम पर नहीं, एनडीए के नाम पर लें। मतलब, दूल्हे का पता नहीं, लेकिन बारात में आ जाने का सभी को निमंत्रण देना था। अरुण जेटली तो खैर बच गए, क्योंकि कोरिया के दौरे पर निकल गए। लेकिन  राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू विपक्ष के नेताओं से संपर्क कर रहे हैं। जेटली के लौटते ही कवायद और तेज होगी, लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपनी राजनीतिक स्टाइल के मुताबिक 22 जून के बाद देश के सामने अचानक अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार का नाम रख सकते हैं। मोदी और शाह अकसर कई मामलों में अंतिम समय तक सस्पेंस बना कर रखते हैं। ऱाष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही हो रहा है, देश के वरिष्ठ मंत्री घर घर जा रहे हैं, जबकि उन्हें नाम तक नहीं पता है। और जिनको सब कुछ पता है, वे सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं।

 

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