भ्रष्टाचार को खुली स्वीकृति

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मोहम्मद इफ्तेखार अहमद,

बर्बादी-ए-चमन के लिए एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा। चारो तरफ पनप रहे भ्रष्टाचार को देखते हुए मौजूदा हालात को बयां करने के लिए शायद ही इससे बेहतर कोई और पंक्ति हो सकती है। क्योंकि, जिन कंधों पर देश की जिम्मेदारी है, वही दीमक की तरह देश को खा रहे हैं। क्या पक्ष, क्या विपक्ष सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे नजर आ रहे हैं। जब विपक्ष का मुखिया ही जमीन घोटाले के आरोपों से घिरे हो तो ऐसे हालात में जनता की आवाज उठाने की उम्मीद भी भला किससे की जा सकती है। भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर हो चुकी है। लेकिन, सत्ता के मतांधों को इसकी जरा भी परवाह नहीं है। सत्ताधीश जनता के दुख दर्द को समझने के बजाए न सिर्फ भ्रष्टाचार को खुलेआम जायज ठहराने में जुटे हैं, बल्कि भ्रष्टाचार की वकालत करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के कथित 71 लाख के गबन के बाद केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने जो कुछ कहा वह केन्द्रय मंत्रियों के दंभ को उजागर करने के लिए काफी है। कभी समाजवाद के कर्णधार रहे बेनी प्रसाद वर्मा को अपने सहयोगी केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के कथित 71 लाख के गबन में कुछ भी गलत नजर नहीं आ रहा है। बेनी बाबू की मानें तो ये रकम इतनी बड़ी नहीं है कि इसकी जांच भी कराई जा सके। हो सकता है कि सत्ता के नशे में अंधे हो चुके बेनीबाबू के लिए इस रकम की कोई कीमत न हो। लेकिन, देश की बड़ी आबादी की पूरी जिंदगी आज भी दो जून की रोटी के बंदोबस्त में ही फना हो जाती है। वित्तीय मामलों की बड़ी कंपनी क्रेडिट सुसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की विश्व संपत्ति रिपोर्ट २०१२ की माने तो देश में आज भी 95 फीसदी लोगों की संपत्ति पांच लाख तीस हजार रुपए से कम है। वहीं, एक लाख डॉलर यानी लगभग 53 लाख से अधिक संपत्ति वालों की संख्या कुल आबादी का केवल शून्य दशमलव तीन (0.3) प्रतिशत है। ऐसे में बेनी प्रसाद वर्मा जैसे जमीनी नेता की इस तरह की बेतुकी बातें न सिर्फ निंदनीय है, बल्कि, भ्रष्टाचार के अमरबेल को सींचने वाली भी हैं। इन आकड़ों को देखने के बाद ये तो साफ हो जाता है कि बेनी प्रसाद वर्मा का यह बयान जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला है। क्योंकि, भ्रष्टाचार की दलदल पर बैठी इस सरकार के कर्ता-धर्ता (योजना आयोग) को गरीबों की झोली में 25 रुपए भी ज्यादा दिखते हैं। तभी तो योजना आयोग ने सुप्रीमकोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर कहा था कि शहरी क्षेत्रों में 965 रुपए प्रति माह और ग्रामीण क्षेत्र में 781 रुपए प्रति माह कमाने वाले व्यक्ति को गरीब नहीं कहा जा सकता। गरीबी रेखा की सीमा को संशोधित कर योजना आयोग ने निष्कर्ष निकाला है कि शहर में 31 रुपए प्रतिदिन और गांवों में 25 रुपए प्रति दिन कमाने वाले व्यक्ति को सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के योग्य नहीं माना जा सकता है। सलमान खुर्शीद गबन के इस मामले में दोषी हैं या नहीं, यह तो जांच के बाद ही साफ हो पाएगा। लेकिन, बेनी बाबू के इस बयान ने ये तो जता दिया है, कि इस सरकार में मंत्रियों और आम जनता को देखने का चश्मा अलग-अलगहै। यानी अगर गरीब 25 रुपए प्रतिदिन कमाता है तो उन्हें सरकारी सहायता नहीं मिल सकती है। और मंत्री 71 लाख गबन कर लें तो उस पर कार्रवाई नहीं हो सकती है? ऐसा नहीं है कि सिर्फ बेनी ने भ्रष्टाचार को इस तरह खुलेआम जायज ठहराने का दुस्साहस किया है.बल्कि, यूपीए-1 और दो के खेवनहार और समाजवाद के पुरोधा मुलायम सिंह यादव तो अपनी पार्टी की सरकार के मंत्रियों को खुलेआम लूट-खसोट की ट्रेनिंग दे रहे हैं। मुलायम की माने तो जनता की सेवा का ढोंग कर सत्ता पाने के बाद काम करने के नाम पर अपनी भी जेब गरम करलें तो उस में कोई बुराई नहीं है। भ्रष्टाचार के मामले में प्रधानमंत्री का रवैया भी ढीला-ढाला रहा है। प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत ईमानदारी पर भले ही किसी को संदेह न हो। लेकिन, भ्रष्टाचार को परवान चढ़ाने में प्रधानमंत्री भी उतने ही जिम्मेदार हैं, जितने की उनके सहयोगी मंत्री। क्योंकि, प्रधानमंत्री हमेशा ही भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उनका बचाव करते नजर आते हैं। पूर्व केन्द्रीय टेलीकॉम मंत्री ए. राजा के यूपीए-१ में संदेह के घेरें में आने के बाद भी यूपीए-2 में दुबारा मंत्री बना दिया गया। जब इसका विरोध हुआ तो पीएम ने इसे गठबंधन की राजनीति की मजबूरी कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पेक्ट्रम रद्द करने पर खुशी जताने के बजाए कहा गया कि कोर्ट के इस कदम से निवेश पर बुरा असर पड़ेगा। कॉमनवेल्थ घोटाले में बिना कोर्ट के आदेश के कलमाड़ी के खिलाफ पीएम ने कोई कार्रवाई नहीं की। कोल घोटाले के उजागर होने पर भी सरकार ने स्पेक्ट्रम घोटाले से कोई सबब नहीं लिया और औने-पौने दामों में दिए गए कोल ब्लॉक्स के आवंटन को रद्द करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इससे निवेशक हतोत्साहित होंगे। यानी निवेश के नाम पर पूंजीपतियों को देश में खुली लूट की छूट होनी चाहिए। ये अलग बात है कि इस बार सरकार को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। मनमोहन सिंह की इन्हीं नाकामियों से त्रस्त लोग अब जब सड़कों पर आ गए हैं। इतना सब होने के बावजूद विपक्षा की वह धार नहीं दिखी जो होनी चाहिए। जब भी विपक्ष (भाजपा) ने स्पेक्ट्रम घोटाले से लेकर कोयला घोटाले तक सरकार को घेरने की कोशिश की तो उनके अपने ही मुख्यमंत्रियों और नेताओं यहां तक कि अध्यक्ष की काली करतूतों के चलते मुंह की खानी पड़ी है। यानी भ्रष्टाचार के इस हमाम में पक्ष-विपक्ष दोनों नंगे है। इन हालात से मायूस जनता अब नए विकल्प की तलाश में है। पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी ने तो यहां तक भविष्यवाणी कर दी है कि अगली सरकार गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी होगी। लेकिन, प्रधानमंत्री अब भी जमीनी हकीकत से कोसों दूर नजर आते हैं। प्रधानमंत्री भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बचाए, लोगों को खुद की ही तरह चुप रहने की नसीहत दे रहे हैं। अब तक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठे प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज दबाने के लिए न सिर्फ सूचना के अधिकार की धार कुंद करने पर आमादा हो गए हैं, बल्कि, इस बुराई के खिलाफ आवाज उठाने पर देश की छवि खराब होने का डर सता रहा है। मनमोहन सिंह का ये डर ऐसा ही है, जैसे कबूतर बिल्ली को देखकर आंखें मूंद लेता है। अगर मनमोहन सिंह वास्तव में देश की छवि को लेकर चिंतित है तो उन्हें इस तरह की गैरजिम्मेदार बयान देने वाले और भ्रष्टाचार में लिप्त मंत्रियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। चूंकि, आंखे बंद करने से कबूतर की जान ही जाती है। ठीक उसी तरह भ्रष्टाचार को सहन करना भी कबूतर के आंखे मूंदने जैसा ही खतरनाक साबित होगा।

1 COMMENT

  1. हम जो शेर सुन् ते आये हैन वह इस प्रकार है
    बर्बाद गुलिस्तान कर् ने को बस एक हि उल्लू काफि है
    हर शाख पे उल्लू बैथा है अन्जामे गुलिस्तन क्या होगा’
    वैसे इफ्तिखार साहेब जो कह रहे हैन थीक कह रहे हैन

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