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स्वयं को देखने के लिए मन की आँखों को खोलें - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
अखिलेश आर्येन्दु अचानक पीछे से उन्होंने दोनों हाथों से मेरी आँखें बंद की फिर धीरे से कान में कहा-‘‘अब देखो, दुनिया कैसी दिख रही है।’’ मैंने कहा,- ‘‘अँधेरे के अलावा अब कुछ भी नहीं दिख रहा है।’’ ‘‘वाह, अंधेरा दिख रहा है? ‘‘हाँ, अंधेरे को मैं देख और एहसास भी…