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ख़याल - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
विजय निकोर तारों से सुसज्जित रात में आज कोई मधुर छुवन ख़यालों की ख़यालों से बिन छुए मुझे आत्म-विभोर कर दे, मेरे उद्विग्न मन को सहलाती, हिलोरती, कहाँ से कहाँ उड़ा ले जाए, कि जैसे जा कर किसी इनसान की छाती से उसकी अंतिम साँस वापस लौट आए, और मुंदी-मुंदी…