प्रकृति की मौलिकता

poetry दो-दो फुट दिन में जुड़वा दें, दो फुट की बढ़वा दें रात|

किसी तरह से क्यों न बापू, बड़े-बड़े कर दें दिन रात|

छोटे-छोटे दिन होते हैं, छोटी-छोटी होती रात|

ना हम चंदा से मिल पाते, ना सूरज से होती बात|

नहीं जान पाते हैं अम्मा, क्या होती तारों की जात|

ना ही हमें पता लग पाता, अंबर की कितनी औकात|

मां बोली ईश्वर की रचना, सुंदरतम अदभुत सौगात|

कभी नहीं दे पायेंगे हम, उसकी मौलिकता को मात|

बापू बोले सदा प्रकृति ने, हमको दिया समय पर्याप्त|

हम ही ना सूरज चंदा को, तारों को कर पाते ग्यांत|

एक-एक पल है उपयोगी, एक-एक कण है सौगात|

यदि समय श्रम का नियमन हो, हम सब कुछ कर सकते प्राप्त|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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