दो-दो फुट दिन में जुड़वा दें, दो फुट की बढ़वा दें रात|
किसी तरह से क्यों न बापू, बड़े-बड़े कर दें दिन रात|
छोटे-छोटे दिन होते हैं, छोटी-छोटी होती रात|
ना हम चंदा से मिल पाते, ना सूरज से होती बात|
नहीं जान पाते हैं अम्मा, क्या होती तारों की जात|
ना ही हमें पता लग पाता, अंबर की कितनी औकात|
मां बोली ईश्वर की रचना, सुंदरतम अदभुत सौगात|
कभी नहीं दे पायेंगे हम, उसकी मौलिकता को मात|
बापू बोले सदा प्रकृति ने, हमको दिया समय पर्याप्त|
हम ही ना सूरज चंदा को, तारों को कर पाते ग्यांत|
एक-एक पल है उपयोगी, एक-एक कण है सौगात|
यदि समय श्रम का नियमन हो, हम सब कुछ कर सकते प्राप्त|