ओसामा का अंत और हम

11 सितम्बर 2001 को अमरीका में हुए आतंकवादी हमले के बाद अमरीका पूरी तरह से हिल गया था । अमरीका और अमरीकी नागरिक अब आतंकवादियों के निशाने पर थे । अमरीका का आत्मविश्वास डोल रहा था । उसकी बादशाहत को एक खुली और ज़बरदस्त चुनौती मिल चुकी थी । “ब्रांड अमरीका” खतरे में था किन्तु अमरीका ने हार नहीं मानी और विपरीत परिस्तिथियों के बाबजूद उसने येनकेन प्रकरेण अमरीका में हुए आतंकवादी हमले के मुखिया ओसामा बिन लादेन रुपी भस्मासुर को समाप्त करके अमरीका की तरफ आँख उठाने वालों को मुह तोड़ जवाब दिया । दस साल के लम्बे अरसे के बाद भी अमरीका की बदला लेने की इच्छा तनिक भी कम नहीं हुई और वे बिना थके, हर छोटी से छोटी बात पर गौर करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँच गए । क्या हम भारतियों को इस घटना से कुछ सबक नहीं लेना चाहिए ?

अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अमरीका ने सदैव अपने ऊपर भरोसा किया और सफलता हासिल की । क्या हमें भी ऐसा ही नहीं करना चाहिए ? क्या संसद और मुंबई पर हुआ हमला किसी भी प्रकार से अमरीका में हुए आतंकवादी हमले से कम है ? हमारे पास सभी प्रकार के सबूत होने के बाद भी, ख़ास तौर पर कसाब जैसा जिंदा सबूत हमारे पास होने पर भी, हम अपने दुश्मन को सजा देना तो दूर, दुनिया को यही समझाने मै लगे हुए है की गुनाहगार कौन है ? क्या हमे आत्मावलोकन नहीं करना चाहिए की हम चाहते क्या है और कर क्या रहे है ?

जिस प्रकार जघन्य अपराध करने वाले का वध करना अथवा उसे दंड देना किसी भी प्रकार से अनुचित नहीं है। ठीक उसी प्रकार भारत और भारतीयों के खिलाफ किसी भी आक्रमण या अपराध का दोषी भी दया का पात्र नहीं हो सकता चाहे वह कोई व्यक्ति हो या फिर देश ही क्यों न हो। हमे उसे सजा देने का पूरा अधिकार है। केवल मात्र बातों से हम ये सजा नहीं दे सकते। “शठे शाठ्यम समाचरेत” की उक्ति को चरितार्थ करते हुए हमे भी अपने खिलाफ हो रहे षड़यंत्र का मुह तोड़ जवाब देना होगा ताकि भारत और भारतियों के खिलाफ कुछ भी करने से पहले हर किसी को सौ बार सोचना पड़े । मैं यह नहीं कह रहा की हमे पाकिस्तान पर आक्रमण कर देना चाहिए किन्तु दाऊद और आतंक के मुखियाओं को मारने में हमे कोई संकोच भी नहीं होना चाहिए और यह विकल्प हर समय हमारे मष्तिष्क में अवश्य रहना चाहिए। जिस प्रकार बड़ी ही ख़ूबसूरती के साथ पकिस्तान को चकमा देते हुए अमरीका ने ओसामा का वध किया है। क्या भारत भी ऐसा नहीं कर सकता ? अवश्य कर सकता है, किन्तु दृढइच्छा शक्ति की कमी झलक रही है।

क्या अमरीका और दुनिया के अन्य देशों को नहीं पता की पाकिस्तान का चरित्र कैसा है ? यदि हम यह सोचते हैं की अमरीका या अन्य देश हमारे लिए काम करेंगे और हमारे लिए आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे तो हमसे बड़ा बेवक़ूफ़ कोई नहीं है!सभी के अपने अपने हित हैं और उनका पहला उद्देश्य अपने हितों की पूर्ति होता है न की किसी और के लिए अपने हितों को तिलांजलि देना। हमे अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ेगी। उदाहरण स्वरुप जिस प्रकार अमरीका ने पाकिस्तान मै घुसकर ओसामा को समाप्त करके अपना काम निकल लिया, हमारे द्वारा भी ऐसा ही करने पर अमरीका और विश्व के अन्य देशों को हमारे खिलाफ बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं रह जाता और यदि कोई विरोध करता भी है तो हमें अपना पक्ष द्रढ़ता के साथ रखे हुए किसी दवाब में न आते हुए कार्य करना चाहिए और हर परिस्तिथि के लिए मानसिक तौर से तैयार रहना चाहिए।
केवल बातों से या कागज़ी कायवाही से हम अपना उद्देश्य हासिल नहीं कर सकते “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न च मनोरथः न ही सुप्तस्य सिंहस्य प्रविश्यन्ति मुखे मृगः” को ध्यान मै रखते हुए हमे कुछ सख्त और ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। हमे अपने विचारों को अपने कर्मो से सिद्ध करना होगा तभी हम अपने स्वाभिमान को बचा सकते है अन्यथा महाशक्ति बनने का हमारा सपना तो बहुत दूर हमारा जीना दूभर हो जायेगा।

1 COMMENT

  1. डॉक्टर घनश्याम वत्स कहते हैं।
    “यदि हम यह सोचते हैं की अमरीका या अन्य देश हमारे लिए काम करेंगे और हमारे लिए आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ेंगे तो हमसे बड़ा बेवक़ूफ़ कोई नहीं है!……….. हमे अपनी लड़ाई स्वयं ही लड़नी पड़ेगी।”
    नितान्त सही कहा, आपने।
    एक बात जोडना चाहता हूं।
    लडाई छद्म भी हो सकती है। उसे गुप्त भी रखा जा सकता है। चाणक्य को पढ़कर उचित सुधार भी आज का समय ध्यान में रखकर किए जाएं। डॉं वत्स जी धन्यवाद।

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