इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है कि भारतीय पुरातत्व सर्वे (एएसआई) द्वारा संरक्षित देश के 35 राष्ट्रीय स्मारक, जिनमें गुंबद, मंदिर और समाधियां शामिल हैं, लापता हैं। हालांकि यह बात और किसी ने नहीं, स्वयं केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने स्वीकारी है। विडंबना यह है कि अधिकांश लापता स्मारक दिल्ली के हैं, जहां कि एएसआई का मुख्यालय स्थित है।भारत के अति प्राचीन सभ्यता होने के बावजूद यहां राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की संख्या पहले ही काफी कम है (3,675) और अब इसमें से कुछ का गायब हो जाना स्वीकार्य नहीं है। इन स्मारकों के लापता होने की वजह शहरीकरण, व्यावसायीकरण और विकास परियोजनाओं का क्रियान्वयन है।
अपर्याप्त निगरानी और संरक्षण इसकी अन्य वजहें हैं। वर्ष १९८४ में आरएन मिर्धा कमेटी ने स्मारकों की सुरक्षा के लिए नौ हजार कर्मचारियों को नियुक्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन 2008 तक एएसआई केवल चार हजार कर्मचारियों को ही नियुक्त कर पाया था। स्मारकों के संरक्षण के लिए वित्तीय प्रावधान तो बढ़ाने ही चाहिए, लेकिन यही पर्याप्त नहीं होगा।
एएसआई के पास तकनीकी विशेषज्ञों की भी भारी कमी है जिससे भी स्मारकों के संरक्षण के प्रयासों को धक्का लगा है। अब वक्त आ गया है कि स्मारकों के संरक्षण के प्रयासों को स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़ा जाए, ताकि उस क्षेत्र को हेरिटेज जोन के रूप में विकसित किया जा सके।
अपर्याप्त निगरानी और संरक्षण इसकी अन्य वजहें हैं। वर्ष १९८४ में आरएन मिर्धा कमेटी ने स्मारकों की सुरक्षा के लिए नौ हजार कर्मचारियों को नियुक्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन 2008 तक एएसआई केवल चार हजार कर्मचारियों को ही नियुक्त कर पाया था। स्मारकों के संरक्षण के लिए वित्तीय प्रावधान तो बढ़ाने ही चाहिए, लेकिन यही पर्याप्त नहीं होगा।
एएसआई के पास तकनीकी विशेषज्ञों की भी भारी कमी है जिससे भी स्मारकों के संरक्षण के प्रयासों को धक्का लगा है। अब वक्त आ गया है कि स्मारकों के संरक्षण के प्रयासों को स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों के साथ जोड़ा जाए, ताकि उस क्षेत्र को हेरिटेज जोन के रूप में विकसित किया जा सके।