डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
भी दिया अपनों ने
उम्मीद भी अपनों से
जाएँ कहा बिना उनके
अपने तो अपने होते हैं।
वो दूर चले गए कितने
या हम पास न रह पाए
कहने को तो बहुत है पर
अपने तो अपने होते हैं।
गिला-शिकवा अपनों से
आस लगा के छोड़ देना
आख़िर भुलाएँ तो कैसे
अपने तो अपने होते हैं।