pravakta.com
लोक नाट्य कलाकारों का दर्द, बिना पैसे जिंदगी बन गई तमाशा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
शिरीष खरे पुणे, महाराष्ट्र "मैं अपने दोनों पैरों में पांच-पांच किलो के घुंघरू बांधता था और गले में ढोलकी लटकाकर जब मंच पर बजाना शुरू करता था तो शरीर का रोम-रोम खिल उठता था। अब ऐसे पुराने ख्यालों को सोच-सोचकर रात बीत जाती है। कानों में पब्लिक की सीटियां गूंजती हैं।…