पाकिस्तान में आतंकवादी, राजनेता, सेना और सरकारी खुफिया एजेंसी आईएसआई में किसी को अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं है और इससे बेखबर पत्रकारों की वहां हो रही हत्या के कारण पड़ोसी मुल्क की इन दिनों पूरी दुनिया में कड़ी निंदा हो रही है। आलोचना सहन करना सिर्फ लोकतंत्र का चरित्र होता है। सहनशीलता लोकतांत्रिक संस्कारों से परिष्कृत होती है। इन मूल्यों का निर्वहन किसी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र के उन्नयन की कसौटी बनता है। उग्रता यदि सकारात्मक नहीं है, तो वह विनाश का कारण बनती है। इसी तरह से आक्रामकता भी तब ही अच्छी है, जब वह जुझारु किस्म की हो और उसके परिवेश में नैतिकता हो। लोकतंत्र के किसी विचारक की इस ज्ञान कसौटी पर पाकिस्तान कितना खरा बैठता है यह विचार करना मकसद नहीं है, लेकिन यह तय है कि पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी आलोचना की किसी को इजाजत नहीं देते।
पाकिस्तान के लोकप्रिय पत्रकार हामिद मीर को पिछले 19 अप्रैल को कराची हवाई अड्डे पर अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी थी। मोटरसाइकिल सवार बदमाशों ने उन पर नजदीक से छह गोलियां दागी थी। इससे करीब एक माह पहले लाहौर में एक अन्य चर्चित पत्रकार रजा रुमी को गोली मारी गई। इन घटनाओं ने पाकिस्तान में पत्रकारों की सुरक्षा पर बहस छेड़ दी और यह कहा जाने लगा कि पत्रकारों को आईएसआई के इशारों पर निशाना बनाया जा रहा है। मीर के परिजनों ने आरोप लगाया कि उन पर हमला सरकारी एजेंसी के इशारे पर कराया गया है। मीर के भाई आमिर मीर सीधे पाकिस्तान के प्रमुख न्यूज चैनल जियो टीवी के कार्यालय में गए और आरोप लगाया कि उसके भाई पर हमला आईएसआई के इशारे पर हुआ है और उसमें सेना ने भी भूमिका निभाई है। जियो न्यूज ने मीर के भाई के इस बयान का प्रसारण किया, तो आईएसआई और सेना, दोनों जियो टीवी के पीछे पड़ गए। सेना ने तो इस चैनल को बंद यानी निलंबित करने की मांग कर दी।
जियो चैनल का प्रबंधन बाद में स्वभाविक रूप से सरकार के दबाव में आया और चैनल ने स्वयं को मीर के बयान से अलग कर दिया। चैनल ने बयान जारी करके कहा कि उसने सिर्फ मीर का बयान प्रसारित किया है। मीर के भाई ने बयान चैनल में प्रसारित कराया, जिसमें उन्होंने लिखा था सरकारी और गैर सरकारी लोग मुझे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। हाल के दिनों में स्थिति ज्यादा नाजुक हो रही थी, इसलिए यह बात में अपने कुछ मित्रों तक पहुंचा रहा हूं और उन्हें बता रहा हूं कि मेरी हत्या करने की साजिश की जा रही है। अमेरिका पर हमले के बाद अल कायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन का साक्षात्कार लेने वाले पहले पत्रकार के रूप में चर्चित रहे हामिद मीर के भाई ने आरोप लगाया कि आईएसआई और सेना, बलूचिस्तान पर उनकी रिपोर्टिंग तथा खुफिया एजेंसी की उनकी आलोचना किसी को रास नहीं आ रही थी, इसलिए सरकार ही उनकी दुश्मन बन गई थी। इसलिए उन पर हमला कराया गया। जियो चैनल की इस कवरेज की एक प्रतिद्वंद्वी चैनल और एक रक्षा विश्लेषक ने भी आलोचना की थी।
पाकिस्तान में स्वतंत्र पत्रकारिता का कोई मतलब नहीं है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि जो पत्रकार पाकिस्तान में सुरक्षा की कमियों, सेना और तालिबान के बीच संबंध, आईएसआई की गतिविधियों, आतंकवादियों के खून खराबे और राजनेताओं के खिलाफ आवाज उठाएगा, उनको तंग करने का रास्ता निकाला जाता है। उन्हें हर तरह से निशाना बनाया जाता है। एजेंसी का कहना है कि इन तरीकों में ऐसा करने वाले पत्रकार को फोन पर धमकी देने से शुरू होता है और उसका अपहरण करने अथवा उसकी हत्या करने पर ही समाप्त होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों के लिए काम करने वाली संस्था ‘कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट’ (सीपीजे) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान दुनिया में पत्रकारों के लिए खतरनाक शीर्ष चार दशों में शामिल है। इस देश के पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक जगह तालिबान का प्रभाव वाला बलूचिस्तान क्षेत्र बन गया है। पाकिस्तान में 2008 से लोकतांत्रिक सरकारें काम रही है और तब से 34 पत्रकार पाकिस्तान में काम करते हुए मारे जा चुके हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में एमनेस्टी इंटरनेशनल के सहायक निदेशक डेविड ग्रिफिथ कहते है कि पाकिस्तान में सेना और आईएसआई के साथ राजनीतिक धड़े, तालिबान, कबिलाई हथियारबंद समूह सभी पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं। इन प्रभावशाली संगठनों को अपनी आलोचना पसंद नहीं है।
पिछले वर्ष पांच जून को नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमत्री बने और तब से वहां पांच पत्रकार मारे जा चुके हैं। यह हालत पत्रकारों की सुरक्षा का भरोसा देने वाली सरकार के कार्यकाल का है। एमनेस्टी की जांच में कहा गया है कि 2002 से पाकिस्तान में 74 पत्रकारों की हत्या हुई है और सिर्फ 36 मामलों में पुलिस ने जांच शुरू की है। जांच एजेंसियों ने सिर्फ एकाध घटनाओं के दोषियों को ही सजा सुनाई है। पाकिस्तान की मीडिया इंडस्ट्री के लिए यह गंभीर संकट का समय है। पाकिस्तान के पत्रकारों को जब यह लगा कि उनके मुल्क में भी लोकतंत्र आग गया है, तो उन्होंने सरकारी घोटालों का खुलासा करना शुरू कर दिया। इसके कारण कई पत्रकार देखते-देखते सेलिब्रिटी बन गए। मगर इस स्थिति ने उन्हें दुश्मनों के निशाने पर भी ला दिया। बड़े मीडिया घरानों के बीच की कटु प्रतिस्पर्धा के कारण पाकिस्तान की मीडिया-इंडस्ट्री अपनी सुरक्षा के लिए सरकार पर उचित दबाव नहीं बना सकी। सरकार पत्रकारों के खिलाफ हिंसा को बर्दाश्त करने के आरोपों से इनकार करती है, लेकिन आलम यह है कि 34 हत्याओं में से एक मामले में आरोप तय हो सका है। एमनेस्टी ने अपनी रिपोर्ट में कई पत्रकारों को यह कहते हुए दिखाया है कि पाकिस्तानी सुरक्षा प्रणाली के भीतर मानवाधिकारों के हनन और भारी भ्रष्टाचार के खुलासे के कारण आईएसआई ने उन पर हमला करने को उकसाया। ऐसे ही एक पत्रकार उमर चीमा के शब्दों में, ‘पाकिस्तान एक ऐसा देश बन गया है, जहां भ्रष्ट लोगों को व्यवस्था का संरक्षण हासिल है, और हत्यारों को सजा माफी।’