पाकिस्तान एक अलग देश का नाम नहीं – एक मानसिकता !

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बलबीर पुंज का खुला ख़त ओबेसी के नाम

प्रिय ओवैसी साहिब, 6 फरवरी को, लोकसभा में बोलते हुए, आपने मांग की कि जो भी भारतीय मुसलमान को “पाकिस्तानी” कहे उसे सजा दी जानी चाहिए। महोदय, मुझे आपसे पूरी सहानुभूति है। इसमें कोई शक की गुंजाईश नहीं कि किसी भी भारतीय के लिए, उसे “पाकिस्तानी” कहा जाना, किसी गाली से कम नहीं। इसका कारण तलाश करने की भी जरूरत नहीं। क्योंकि पाकिस्तान, 1947 में अपने निर्माण के बाद से ही लगातार भारत के खिलाफ खुला और छद्म युद्ध लड़ता रहा है।

स्वयं को इस्लामी राष्ट्र घोषित करने वाले, हमारे इस पड़ोसी की दुष्टता के कारण आयेदिन निर्दोष लोग मारे जाते हैं । काफिर भारत के खिलाफ जिहाद इसकी अघोषित राष्ट्रीय नीति का एक हिस्सा है।

भारतीयों के लिए, पाकिस्तान आतंकवाद का पर्याय बन गया है और उससे सहानुभूति रखने वाला कोई भी व्यक्ति गद्दार माना जाता है – हर कोई उससे नफरत करता है। इसलिए इस द्रष्टि से आपकी चिंता समझ में आती है।

लेकिन इसके साथ ही समस्या का एक और पहलू भी है, जो समान रूप से महत्वपूर्ण है और जिस पर आपकी चुप्पी बहुत कुछ कहती है। यदि एक भारतीय मुसलमान को “पाकिस्तानी” कहा जाना दंडनीय अपराध होना चाहिए, तो उन भारतीयों के बारे में क्या, जो गर्व से पाकिस्तानी बिल्ला लगाते हैं, पाकिस्तान की जयजयकार करते हुए ‘भारत माता की जय’ का विरोध करते हैं ? क्या ये दोनों मुद्दे एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं हैं?

10 फरवरी को जम्मू-कश्मीर राज्य विधानसभा में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए गए । अकबर लोन ने मीडिया से कहा: “मैं मुस्लिम सबसे पहले हूं । जब भाजपा विधायक जोर जोर से पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, तो उनसे मेरी भावनाओं को चोट लगीं। मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सका और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए। ”

क्या यह सच नहीं है कि घाटी में कुछ कश्मीरियों द्वारा नियमित रूप से पाकिस्तान और आईएस के झंडे फहराए जाते हैं, भारत मुर्दाबाद कहते हुए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे गुंजाये जाते हैं ? उनसे कैसे निपटा जाना चाहिए? क्या आपने कभी इस विषय को संसद में उठाया है?

आपकी पार्टी और परिवार के शुरूआती इतिहास की थोड़ी सी जानकारी इस मुद्दे को समझने में मदद करेगी। महोदय, आप अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) का नेतृत्व करते हैं। इसकी शुरुआत एमआईएम से हुई थी, जिसकी स्थापना 1927 में हैदराबाद के पूर्व रियासत काल में हुई थी, और जो ब्रिटिश उपनिवेशवादी शक्तियों के सहयोग से मुस्लिम लीग के साथ मिलकर काम करती थी।

एमआईएम के लिए काशीम रिज़वी ने घृणास्पद रजाकारों की तूफानी फ़ौज का नेतृत्व किया । जाहिर तौर पर तो निजाम द्वारा अपने राज्य के भारत में विलय का विरोध करने के लिए इस रजाकार सेना का गठन किया गया था किन्तु वास्तव में यह राज्य की हिंदू बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ बड़े पैमाने पर चलाया गया अभियान था।

हैदराबाद की मुक्ति के बाद, एमआईएम को 1948 में प्रतिबंधित कर दिया गया। रिजवी को जेल भेजा गया और बाद में 1957 में इस शर्त पर रिहा किया गया कि वह पाकिस्तान जाएंगे जहां उन्हें शरण मिलेगी। निर्वासित रिजवी ने जाते जाते अपनी बची खुची एमआईएम पार्टी, अब्दुल ओवैसी को सौंप दी। तब से ही यह पार्टी आपके परिवार की बंधक बनी हुई है।

ठीक है, आप कह सकते हैं कि यह इतिहास है, इसका वर्तमान से क्या सम्बन्ध? आपके भाई और पार्टी के वरिष्ठ सहयोगी अकबरुद्दीन ओवैसी द्वारा हिन्दूओं और भारतीय सेना के खिलाफ दिए गए नफरत फैलाने वाले बहुत से सांप्रदायिक भाषण सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। स्वयं आपका भी एक बयान व्यापक रूप से चर्चित हुआ है, जिसमें आप कहते हैं कि, “भले ही मेरे गले पे छुरी रख दो, मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा”। ऐसा प्रतिरोध क्यों?

दुर्भाग्य से, यह विभाजनकारी मानसिकता हैदराबाद या घाटी में बसी आबादी तक सीमित नहीं है। एक 22 वर्षीय लडके चन्दन की 26 जनवरी को उत्तर प्रदेश के कासगंज में हत्या कर दी गई थी। उसका अपराध क्या था? उसने एक मुस्लिम बहुल इलाके में पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाए थे । पाकिस्तान विरोधी नारे, इस हद तक कुछ भारतीयों को क्यों नाराज करते हैं?

पाकिस्तान सिर्फ एक देश का नाम नहीं है, यह एक विचार है, जो इस्लाम पूर्व के भारत को खारिज करता है। अपनी अलग इस्लामी पहचान बनाने और उस पर जोर देने के लिए, यह दिग्भ्रमित पाकिस्तान अपनी ही प्राचीन सामाजिक और सांस्कृतिक जड़ों से युद्ध कर रहा है, जो इस प्राचीन भूमि की बहुलवादी और कालातीत संस्कृति में व्यापक रूप से फैली हुई हैं।

हाल ही में, सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में भारतीय वायु सेना के कप्तान अरुण मारवा को गिरफ्तार किया था। वास्तव में पाकिस्तान का विभाजनकारी विचार भौगोलिक सीमाओं के ऊपर है। यह भारत में भी कई परतों में रहता और उभरता है, जहां से यह पैदा हुआ था।

महोदय, 24 जनवरी 1948 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के वार्षिक दीक्षांत समारोह में पंडित नेहरू द्वारा दिए गए भाषण से कुछ अंश, वर्तमान विवाद के संदर्भ में आज भी प्रासंगिक हैं।

“मुझे भारत पर गर्व है, न केवल उसकी प्राचीन शानदार विरासत की वजह से, बल्कि उसकी उल्लेखनीय क्षमता के कारण भी, कि उसने अपने मन और आत्मा के दरवाजे और खिड़कियां दूर-दूर के क्षेत्रों से आने वाली ताजा और ताकतवर हवाओं के लिए खुली रखीं । भारत की ताकत की दो परतें है: उसकी जन्मजात संस्कृति जो सदियों से पल्लवित पुष्पित हुई है, और अन्य स्रोतों को अपनी ओर आकर्षित कर स्वयं में समाहित कर लेने की अद्भुत क्षमता । ”

“मैंने कहा है कि मुझे हमारी विरासत और हमारे पूर्वजों पर गर्व है, जिन्होंने भारत को अपूर्व बौद्धिक और सांस्कृतिक श्रेष्ठता प्रदान की। आप इस अतीत के विषय में कैसा महसूस करते हैं? क्या आप महसूस करते हैं कि आप भी इसमें साझेदार हैं और इसके वारिस हैं ? और, इसलिए क्या आप भी इस पर उतना ही गर्व करते हैं, जितना मैं करता हूँ? या हम इस विशाल खजाने के ट्रस्टी और उत्तराधिकारी हैं, इसे समझकर इसके अद्भुत रोमांच को महसूस किए बिना, इसे परदेशी महसूस करते हैं? ”

“आप मुस्लिम हैं और मैं हिंदू हूं। हमारी धार्मिक आस्थाएं अलग हो सकती है, या नहीं भी हों; लेकिन इससे वह सांस्कृतिक विरासत दूर नहीं होती जो तुम्हारा और मेरी एक ही है। जब अतीत हमें एक साथ रखता है; तो वर्तमान या भविष्य में अलगाव की भावना क्यों होना चाहिए? ”

ओवैसी साहिब, हम में से हर एक को पंडित नेहरू के सवालों के जवाब देने की जरूरत है, जो उन्होंने सात दशकों पहले उठाये थे । जवाब से ही यह तय होगा कि हममें एक भारतीय मानसिकता है या पाकिस्तानी ।

बलबीर पुंज राज्यसभा के पूर्व सदस्य और सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के व्याख्याकार हैं ! 

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