पतन की कगार पर पाकिस्तान

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तनवीर जाफ़री

pakistan    कहने को तो पाकिस्तान 1947 में भारत से विभाजित होकर दो धर्म,दो राष्ट्र के सिद्धांत पर  अस्तित्व में आया था। परंतु इसे भारत में 1947 से पूर्व रहने वाले बहुसंख्य मुसलमानों की दूरअंदेशी ही कहा जाएगा कि उन्होंने धर्म आधारित राष्ट्र विभाजन को अपना समर्थन नहीं दिया। इसके बावजूद पश्चिमी भारत के हरियाणा व पंजाब राज्यों के अधिकांश मुसलमान तथा दिल्ली व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ मुसलमान विभाजन के पश्चात पाकिस्तान चले गए। जबकि हरियाणा व पंजाब में भी मलेरकोटला,मेवात,कादियान जैसे कई क्षेत्र  ऐसे भी थे जहां के मुसलमानों ने पाकिस्तान जाना उचित नहीं समझा। इसी प्रकार बंगाल व बिहार के भी कुछ मुस्लिम परिवार तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (बंगला देश) जाने के पक्ष में रहे। जबकि लगभग समूचे दक्षिण व मध्य भारत व पूर्वोत्तर के अधिकांश मुसलमानों ने भारत को ही अपना देश समझा और वे पाकिस्तान नहीं गए। संभवत: यह दूरदर्शी मुसलमान कथित धर्म आधारित नवराष्ट्र के भविष्य से भलीभांति परिचित थे। ज़रा कल्पना कीजिए कि मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत वर्ष का विभाजन करवा कर जिस पाक अथवा पवित्र आस्तां यानी घर(पाकिस्तान)का सपना देखा था आज वही पाकिस्तान धर्म के बजाए अधर्म का सबसे बड़ा पर्याय बन चुका है। पाकिस्तान आज केवल भारत के लिए ही एक समस्या नहीं बना हुआ है बल्कि इसका नाम दुनिया के 10 सबसे खतरनाक देशों की सूची में आठवें स्थान पर शामिल किया गया है।         पाकिस्तान हालांकि आज आतंकवाद को पनाह देने,आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्र चलाने,तालिबानी विचारधारा को संरक्षण देने,कट्टरपंथी विचारधारा वाले संगठनों की परवरिश करने,आए दिन मानव बम द्वारा सामूहिक हत्याएं किए जाने,जातीय संघर्ष तथा अल्पसंख्यकों के विरुद्ध होने वाले अत्याचार,ईशनिंदा के बहाने बेगुनाह लोगों को सज़ा देने तथा मानवाधिकार के हनन जैसे मामलों में भले ही बदनाम हो रहा हो। परंतु दरअसल इसके माथे पर कलंक का टीका उसी समय से लगना शुरु हो चुका था जबकि पाकिस्तान की सत्ता को लेकर देश की लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था तथा सेना के बीच उठापटक शुरु हो गई थी। आज तो हालत यह है कि दुनिया इसी बात को लेकर भ्रमित रहती है कि आिखर पाकिस्तान की सबसे ज़िम्मेदार संस्था है कौन? वहां की संसद,सेना,न्यायपालिका,आईएसआई या फिर कट्टरपंथी ताकतें? कभी पाकिस्तान में राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक़ द्वारा ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो जैसे पाकिस्तान के लोकप्रिय प्रधानमंत्री को फांसी पर लटकाया जाता है तो कभी स्वयं ज़िया-उल-हक़ का विमान उनके उच्चाधिकारियों के सैन्य बल के साथ क्रैश होता दिखाई देता है। कभी प्रधानमंत्री रहे नवाज़ शरीफ को देश निकाला का समाचार सुनाई दिया तो कभी एक और प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो दिन के उजाले में कट्टरपंथियों द्वारा मानव बम के हमले का शिकार हुईं। कभी बेनज़ीर का भाई मुर्तज़ा भुट्टो मारा गया तो कभी जनरल परवेज़ मुशर्रफ हवालात में कैद नज़र आए। और कभी संविधान भंग होते देखा गया और मुख्य न्यायधीश इफ़्तिख़ार चौधरी अपदस्थ होते दिखाई दिए। गोया अपने अस्तित्व से लेकर अब तक पाकिस्तान ऐसे कई खतरनाक राजनैतिक उतार-चढ़ाव देखता रहा है जो भले ही पाकिस्तान के राजनेताओं,शासकों व प्रशासकों को ज़रूरी अथवा उचित क्यों न लगते हों परंतु दरअसल ऐसी स्थितियां पाकिस्तान को दुनिया की नज़रों से नीचे गिराती रही हैं।         इस समय पाकिस्तान को अस्थिर करने का ज़िम्मा जमाअत-उ-द्दावा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद ने संभाला हुआ है। पिछले दिनों उसका एक साक्षात्कार सुनने का मौक़ा  मिला। वह पाकिस्तान के धर्म आधारित विभाजन पर संतुष्ट नज़र आ रहा था। उसके अनुसार जिन्ना का सपना पाकिस्तान को दुनिया के सबसे बड़े व सशक्त मुस्लिम राष्ट्र के रूप में देखना था। वह पाकिस्तान को विश्व का इकलौता सबसे बड़ा परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाना चाहते थे। परंतु हाफ़िज़ सईद ने अपने साक्षात्कार में पाकिस्तान की कमज़ोरी तथा जिन्ना की मनोकामना पूरी न होने का ठीकरा पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के सिर पर फोड़ा। सईद ने कहा कि 1971 में बंगला देश को अस्तित्व में लाकर भारत ने पाकिस्तान को कमज़ोर कर दिया। मैं यहां हािफज़ सईद से तथा भारत पर बंगला देश के बंटवारे की जि़म्मेदारी मढऩे वालों से यह पूछना चाहता हूं कि धर्म आधारित विभाजन के द्विराष्ट्रीय सिद्धांत को क्या तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान नहीं समझते थे? पाकिस्तान को विश्व का सबसे शक्तिशाली मुस्लिम देश बनाने की जिन्ना की भावना को क्या पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान समझ या महसूस नहीं कर सकते थे? क्या वर्तमान बंगला देश में कोई संगठन अथवा राजनैतिक दल ऐसा है जो पाकिस्तान से अलग होकर पछता रहा हो? यदि पूर्वी पाकिस्तान का अधिकांश समाज पश्चिमी पाकिस्तान से अलग होने का इच्छुक न होता और वह धर्म की डोर से बंधा होता तो क्या इंदिरा गांधी पूर्वी पाकिस्तान को पश्चिमी पाकिस्तान से अलग करवा सकती थीं। पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगों के साथ जिस प्रकार का दुवर््यवहार,अत्याचार,सौतेलापन व उनकी उपेक्षा का वातावरण 1947 से लेकर 1971 तक बनाए रखा गया इसके लिए भी क्या इंदिरा गांधी अथवा भारत सरकार ज़िम्मेदार थी?         इन सब वास्तविकताओं से क्या हािफज़ सईद तो क्या नवाज़ शरीफ़,ज़रदारी,परवेज़ मुशर्रफ़,बिलावल भुट्टो सभी अपनी आंखें मूंदे रहते हैं। इस विषय पर वे कोई चर्चा नहीं करना चाहते सिवाए एक ‘विधवा विलाप’ के कि हाय इंदिरा गांधी ने हमारे देश के दो टुकड़े करवा दिए। इन तथाकथित पाक सरबराहों से मैं 1971 के बाद के पाकिस्तान के विषय में ही अब यह पूछना चाहता हूं कि धर्म आधारित इस राष्ट्र में बंगला देश के अलग होने के बाद धर्म के नामपर एकता का कौन सा मापदंड आपके देश में अिख्तयार किया जा रहा है? जिस इस्लाम में एक अल्लाह,एक कुरान,एक रसूल व एक लाख 24 हज़ार पैगंबरों की सर्वमान्य स्वीकार्यता हो उसी इस्लाम में कितने जातीय संघर्ष,कितनी विचारधाराएं पाकिस्तान में देखी जा रही हैं? आख़िर क्या वजह है कि दुनिया को मानवता का संदेश देने वाला इस्लाम धर्म पाकिस्तान के ऐसे ही लोगों की गैर इस्लामी व गैर ज़िम्मेदाराना हरकतों की वजह से आज इस स्थिति में पहुंच गया है कि वाशिंगटन स्थित ख़ुफ़िया एजेंसियों के थिंक टैंक इंटेल सेंटर ने कंटरी थ्रेट इंडेक्स अर्थात किसी देश से ख़तरे का सूचकांक निर्धारित करने वाली सूची में दुनिया के आठवां सबसे ख़तरनाक देश बताया है? इस सूची में विश्व के दूसरे सबसे ख़तरनाक देशों में इराक,नाईजीरिया,सोमालिया,यमन,सीरिया,लीबिया,मिस्र तथा कीनिया जैसे देश शामिल हैं। यदि हािफज़ सईद व जनरल मुशर्रफ जैसे लोग ईमानदारी से देखें तो पाकिस्तान को इस फ़ेहरिस्त में शामिल कराने में वे भारत या इंदिरा गांधी का कोई हाथ नहीं पाएंगे। बल्कि इसके लिए यह लोग खुद ही जि़म्मेदार नज़र आएंगे।          जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने पिछले दिनों एक टेलीविज़न साक्षात्कार में यह स्वीकार किया था कि पाकिस्तान ने कारगिल में भारतीय सीमा का जो अतिक्रमण किया था वह पाकिस्तान के नज़रिए से बिल्कुल सही थी। मुशर्रफ़ के अनुसार भारत ने पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों मे दख़लअंदाज़ी की जिसका दंड भारत को कारगिल घुसपैठ के द्वारा दिया गया। उनके अनुसार पाकिस्तान ने ऐसा कर कोई गलती नहीं की। परवेज़ मुशर्रफ ही नहीं बल्कि लगभग सभी पाक सैन्य शासक बंगला देश के बंटवारे को पाक सैन्य अपमान के रूप में देखते हें। वास्तव में पाकिस्तान की सेना के पास लंबे समय से दो ही काम हैं। या तो वह अपने ही पाले-पोसे आतंकियों से टकराने का काम करती रहती है या फिर उसका अस्तित्व भारतीय सीमा में अतिक्रमण तथा घुसपैठ करने व कराने के लिए कायम है। इसके अतिरिक्त पाक सेना की उसकी किसी भी सीमा पर कोई अन्य कार्य व ज़रूरत नहीं  है। लिहाज़ा प्रत्येक पाक जनरल पाकिस्तान की अवाम में बंगला देश के बंटवारे का दर्द अब तक सांझा करता रहता है ताकि वहां की सेना इसी बहाने अपना काम चलाती रहे। और भारत से पाकिस्तान के विभाजन का बदला लेने के नाम पर दोनों देशों के मध्य नफ़रत पैदा करती रहे।          इसी प्रकार हाफ़िज़ सईद अफ़ग़निस्तान की पूर्व तालिबान हुकूमत का बहुत बड़ा समर्थक व प्रशंसक सुनाई देता है। उसे इस बात का भी गर्व है कि तालिबानों की हुकूमत अफगानिस्तान में बनने के बाद  पाकिस्तान वहां की तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाला पहला व इकलौता देश था। गोया हाफ़िज़ सईद को मुल्ला उमर व ओसामा बिन लाडेन जैसे लोगों की कट्टरपंथी विचारधारा तथा उनके द्वारा फैलाए गए आतंकवाद का राज ही पसंद है। उसे पाकिस्तान में तालिबान अथवा उसके स्थानीय सहयोगी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा बेनज़ीर भुट्टो सहित पाकिस्तान में अब तक मारे जा चुके हज़ारों लोगों के क़त्लेआम अथवा इनके द्वारा फैलाए जा रहे जातीय संघर्ष का कोई अफ़सोस नहीं है। और अब यही जमात-उद-दावा प्रमुख हाफ़िज़ सईद भारत को कश्मीरियों की हमदर्दी के नाम पर तथा भारतीय मुसलमानों के नाम पर जेहाद छेडऩे की चेतावनी दे चुका है। भारत भले ही सांप्रदायिकता व जातिवाद जैसे भीतरी संघर्षों से स्वयं भी क्यों न रूबरू हो परंतु इस देश का बहुसंख्य समाज आज भी सद्भाव,शांति तथा सांप्रदायिक सौहार्द्र का पक्षधर है और हमेशा रहेगा। भारत की यह ताक़त इसे दुनिया के शक्तिशाली देशों की ओर ले जा रही है जबकि पाकिस्तान का नाम किस सूची में है इसका ज़िक्र  किया जा चुका है। पाकिस्तान के जि़म्मेदारों को चाहिए कि वे भारत में कश्मीर या कश्मीरवासियों की चिंता करने तथा यहां के मुसलमानों के नाम पर अपनी राजनीति करने के बजाए पतन की कगार पर बैठे पाकिस्तान को संभालने व उसे स्थिर करने में अपनी उर्जा ख़र्च करें तो बेहतर होगा ?

 

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  1. पाकिस्तान के अंदर आज तक कोई दूरदर्शी नेता नहीं हुये पाकिस्तान के जनक जिन्ना साहब खुद कोई vision नहीं रखते थे। उनका तो एक ही मकसद था की मुसलामानों का एक अपना अलग देश हो लेकिन उस देश के संसाधनों का उपयोग कैसे हो क्या कानून व्यवस्था हो उस बारे में उनके कोई विचार नहीं थे। भारत की नक़ल करना और भारत को बदनाम करना ही उनका ध्येय था। पाकिस्तान की प्रारंभिक अर्थ व्यवस्था भारत के दिए हुवे धन से तथा बाद अमेरिका द्वारा दिए गए ऋणों से हुई। बांग्लादेश जो उसका ही एक भाग था जो आज कहाँ से कहाँ पहुँच गया।ये पाकिस्तानी हुक्मरानो और हाफ़िज़ सय्यद को नहीं दीखता क्या? क्या जेहाद अपने देश के नागरिकों का पेट भर देगा। जेहाद करने वाले को खुदा जन्नत बख्शेगा कहकर जो जन्नत अपनी मातृभूमि होती है उसको जहन्नुम नहीं कर रहे है? अफ़ग़ानिस्तान इन्ही तथाकथित जेहादियों की सनक का शिकार है। इस्लाम जो एक शांतिप्रिय मज़हब है उसको एक विनाशक और तबाही का मज़हब नहीं बना दिया उसी के धर्मावलंबियो ने? क्या इस्लाम के सच्चे अनुयायियों को ये नहीं दीखता? क्यों विकास के विरोधी बन गए ये?

  2. तनबीर जाफरी सही लिखते है की पाकिस्तान को कश्मीर और भारतीय मुसलमानों की चिंता छोड़ कर अपने देश की समस्या दूर करने का ध्यान देना चाहिए और लोकतंत्र को मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए । अगर ऐसा न हो पाया तो पाकिस्तान अपने अस्तित्वा नहीं बचा पायेगा और सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान की गरीब जनता का होगा। भारत को पाकिस्तान मैं शांति स्थापित करने के लिए बड़े भाई का कर्त्तव्य निभा होगा । क्यू की पड़ोस मे आग लगने से हमारा घर भी जल सकता है।।। e

  3. पाकिस्तान पूर्वाग्रहों की जूठन से लबालब भरा भाँडा है, तनवीर जी।
    उस भाँडेमें आप के, शुद्ध विचारों का जल डालने के लिए जगह ही बची नहीं है।
    आप कितना भी शुद्ध जल डालें, जल उभर कर बाहर गिरेगा।जल जूठा हो जाएगा। भाँडा स्वच्छ बिलकुल नहीं होगा। मार खानेपर भी पाकिस्तान को, समझ नहीं आएगी। सारा दोष भारत को ही देगा। लिख के रखिए।

    फिर भी,कोशिश करना अवश्य आप लेखकों का काम है।
    कम से कम भारत का बहुसंख्य मुसलमान, और पढा लिखा पाकिस्तानी मुसलमान भी अच्छी सोच रखते हैं।
    पढे लिखे कुछ पाकिस्तानी भी जिनसे खुलकर बात होती है, वे समझते है। पर उनके लिए मुँह खोलना बाघ के मुँह में हाथ डालना ही है।
    पाकिस्तान बडी ठोकर खाएगा–तब शायद समझ पाए।

    हमें गर्व हैं, कि आप और आप जैसे अन्य लेखक भी प्रवक्ता में लिखते हैं।

    जिन मुसलमानों ने भारत में ही बसना पसंद किया, उनकी तुलना पाकिस्तान में बसनेवाले हिंदुओं से कीजिए।
    न्याय और अन्याय की छवि उभर आयेगी।
    —-लेखक की सत्यप्रियता को नमन।

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