टिड्डियों के हमले में पाकिस्तान का हाथ

——————डॉo सत्यवान सौरभ, 

फसलों को बुरी तरह प्रभावित करने वाली टिड्डियों का पिछले कुछ दिनों से राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र (विदर्भ क्षेत्र) के शहरी क्षेत्रों में देखा जाना चिंता का विषय है। पश्चिमी भारत में टिड्डी दल का हमला एक बहुत ही खराब समय पर आया गंभीर मामला है जब देश पहले ही वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के प्रसार से जूझ रहा है, इससे फसलों को भारी नुकसान पहुंच सकता है। 

‘रेगिस्तानी टिड्डियां पश्चिमी भारत में पहुंच गई हैं। आम तौर पर देश में यह सामान्य घटना है, लेकिन यह हमला बहुत बड़ा है। यह तीन दशक में एक बार होने वाली घटना है और इसके देश में होने का समय बहुत खराब है जब हम पहले ही एक महामारी से जूझ रहे हैं।’  इससे कृषि मंत्रालय और संबंधित राज्यों को निपटना होगा।  टिड्डी हमला पूर्वी भारत में भी फैलने का खतरा है और इससे खाद्य सुरक्षा के लिए संकट बढ़ गया है।

टिड्डियों की प्रजाति हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती है. जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में होता है. मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हुआ और भारत में दिख रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण है.

दरअसल 11 अप्रैल को भारत-पाकिस्तान सीमा के आस-पास के क्षेत्रों में टिड्डियों को पहली बार देखा गया था। मई के शुरूआती दिनों में ही पाकिस्तान से होते हुए टिड्डियों का आगमन राजस्थान की तरफ होने लगा था अफ्रीका के इथियोपिया, युगांडा, केन्या, दक्षिणी सूडान से आगे निकलकर ये टिड्डी यमन और ओमान होते हुए पाकिस्तान और भारत तक पहुंच गए हैं. पाकिस्तान में टिड्डियों के चलते आपातकाल लगाया गया है.  भारत में राजस्थान और गुजरात के किसानों के हालात टिड्डी के चलते बुरे हुए हैं. मानसून से पहले आगमन होने की वज़ह से इनके मार्गों में सूखाग्रस्त क्षेत्र जहाँ भोजन व आश्रय न मिलने के कारण ये टिड्डियाँ हरी वनस्पति की तलाश में राजस्थान की तरफ बढ़ती गई।  संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, टिड्डियाँ भोजन की तलाश हेतु शहरी क्षेत्रों में प्रवेश कर रहीं हैं।

टिड्डी मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं।  टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं। सामान्य तौर पर ये प्रतिदिन 150 किलोमीटर तक उड़ सकती हैं। साथ ही 40-80 मिलियन टिड्डियाँ 1 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में समायोजित हो सकती हैं।

टिड्डियों के पूर्वागमन का प्रमुख कारण मई और अक्तूबर 2018 में आए मेकुनु और लुबान नामक चक्रवाती तूफान हैं, जिनके कारण दक्षिणी अरब प्रायद्वीप के बड़े रेगिस्तानी इलाके झीलों में तब्दील हो गए थे। अतः इस घटना के कारण भारी मात्रा में टिड्डियों का प्रजनन हुआ था। नवंबर 2019 में पूर्वी अफ्रीका में टिड्डियों ने भारी मात्रा में फसलों को नुकसान पहुँचाया था साथ ही पूर्वी अफ्रीका में भारी वर्षा होने कारण इनकी जनसंख्या में वृद्धि हुई तत्पश्चात ये दक्षिणी ईरान और पाकिस्तान की तरफ चलती गई।

वर्तमान में फसल के नुकसान होने की संभावना कम है क्योंकि किसानों ने अपनी रबी की फसल की कटाई पहले ही कर ली है। लेकिन महाराष्ट्र में टिड्डियों की बढ़ती जनसंख्या को लेकर नारंगी उत्पादक काफी चिंतित हैं। टिड्डी चेतावनी संगठन के अनुसार, भारत में बड़ी समस्या तब होगी जब टिड्डियों की प्रजनन संख्या में वृद्धि होगी। दरअसल एक मादा टिड्डी 3 महीने के जीवन चक्र के दौरान 80-90 अंडे देती है। साथ ही इनके प्रजनन में बाधा उत्पन्न न होने की स्थिति में एक समूह प्रति वर्ग किलोमीटर में 40-80 मिलियन टिड्डियों की संख्या हो सकती हैं।

टिड्डियों से बचाव हेतु वृक्षों पर कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है। राजस्थान में 21,675 हेक्टेयर में कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया गया है। भारत द्वारा ब्रिटेन को 60 विशेष कीटनाशक स्प्रेयर (मशीन) का ऑर्डर दिया गया है। ड्रोन से भी कीटनाशक दवाओं का छिडकाव किया जा रहा है। टिड्डियों को रोकने के लिए एक आम तरीका तेज आवाज का इस्तेमाल है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे टिड्डी आगे ना बढ़ें . कई बार तेज आवाज से टिड्डी तेजी से आगे बढ़ते हैं. दूसरा तरीका इन्हें खाने का है. दुनिया के कई इलाकों में इन्हें खाया भी जाता है. लेकिन उससे इनकी संख्या पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.

यूएन ने टिड्डी मारक कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 10 मिलियन डॉलर दिए हैं. लेकिन अभी भी 70 मिलियन डॉलर की जरूरत है. केन्या में पांच हवाई जहाजों को कीटनाशकों का छिड़काव करने के लिए लगाया गया है. ये कीटनाशक इंसानों के लिए खतरा नहीं हैं. इथियोपिया में चार विमान कीटनाशकों का छिड़काव कर रहे हैं. सोमालिया में भी इस तरह के कदम उठाए गए हैं.

वर्ष 1993 में राजस्थान में टिड्डियों ने सबसे ज्यादा फसलों को नुकसान पहुँचाया था। टिड्डे की एक प्रजाति रेगिस्तानी टिड्डा सामान्यत: सुनसान इलाकों में पाया जाता है। जब हरे-भरे घास के मैदानों पर कई सारे रेगिस्तानी टिड्डे इकट्ठे होते हैं तो ये निर्जन स्थानों में रहने वाले सामान्य कीट-पतंगों की तरह व्यवहार नहीं करते बल्कि एक साथ मिलकर भयानक रूप अख्तियार कर लेते हैं। एक दिन में टिड्डों के ये झुंड अपने खाने और प्रजनन के मकसद से इतने बड़े क्षेत्र में लगी फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के मुताबिक एक औसत टिड्डी दल ढाई हजार लोगों का पेट भरने लायक अनाज को चट कर सकता है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय  के वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय  के अधीन आने वाला फरीदाबाद में स्थित टिड्डी चेतावनी संगठन मुख्य रूप से रेगिस्तानी क्षेत्रों राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में टिड्डियों की निगरानी, सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिये ज़िम्मेदार है।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की नई रिपोर्ट बताती है कि मुफीद जलवायु का फायदा उठाकर टिड्डियां अब अपनी सामान्य क्षमता से 400 गुना तक प्रजनन करने लगी हैं. यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि भारत उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक दिख रहा है. टिड्डियों का भारत में प्रवेश हवा के रुख पर भी निर्भर करता है. कहा जा रहा है कि पूर्वी तट पर आये विनाशकारी चक्रवाती तूफान अम्फान के कारण भी टिड्डियों के भारत में प्रवेश के लिये स्थितियां बनीं.

ग्लोबल वॉर्मिंग का असर पिछले कुछ सालों में तेज गर्मी के लम्बे मौसम और फिर असामान्य बारिश और अचानक बाढ़ के रूप दिखा है. यह स्थितियां टिड्डियों के प्रजनन चक्र को बढ़ा रही हैं. पिछले साल पहले तो जुलाई तक बरसात नहीं हुई और उसके बाद मॉनसून का लम्बा सीजन चला जिसकी वजह से टिड्डियों का प्रकोप बना रहा.

अब इस साल जून में बरसात के साथ भारत-पाकिस्तान सीमा पर टिड्डियों के प्रजनन का नया दौर शुरू होगा. उसके बाद के महीनों में होने वाला टिड्डियों का हमला खरीफ की फसल बर्बाद कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो पहले ही कोरोना संकट झेल रहे भारत के लिये यह दोहरी मार होगी क्योंकि इसका असर देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ सकता है

 डॉo सत्यवान सौरभ, 

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