दुनिया के सत्तावन इस्लामी देशों के संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (ओआईसी) ने जम्मू कश्मीर के लिए अपना विशेष दूत नियुक्त कर दिया है। मुस्लिम संगठन द्वारा उठाया गया यह कदम बताता है कि इस्लामिक देश धर्म के आधार पर एक दूसरे की मदद करने के लिए कितने आकुल और व्याकुल रहते हैं। यह कदम सीधे-सीधे पाकिस्तान द्वारा जम्मू-कश्मीर मसले का अंतर्राष्ट्रीय करने की कोशिश ही है।
जब पाक को लगा कि बार-बार विभिन्न मंचों पर कश्मीर मसले पर भारत की बुराई करने के बावजूद भी कोई अंतर्राष्ट्रीय दबाव भारत पर नहीं बन पा रहा है। कश्मीर में अपने पक्ष में जनमत कराने से लेकर अभी तक वह सभी चाले ना कामयाब हुई हैं जिसमें कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तथा पाक सेना ने संयुक्त रूप से जम्मू-कश्मीर में अलगावाद तथा भारत विरोधी माहौल तैयार करने के लिए आतंकवादी रूपी भस्मासुर को पाला, उसे हर संभव मदद दी! जो अभी भी जारी है। निश्चित ही अपनी नाकामयाबी से झल्लाकर उसने मुस्लिम देशों से गुहार लगाई! जिसका परिणाम इन इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी द्वारा उठाया गया यह कदम है।
ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में कश्मीर पर संपर्क समूह की अपनी बैठक के बाद किए गए ऐलान का जिममें कहा गया है कि जम्मू-काश्मीर के लिए सऊदी अरब के नागरिक अब्दुल्ला बिन अब्दुल रहमान अल ब्रक को विशेष दूत नियुक्त किया गया है। इस नियुक्ति से जम्मू-कश्मीर के हुर्रियत नेताओं में बडा जोश आ गया है। हुर्रियत प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक इस्लामी देशों के संगठन आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (ओ.आई.सी.) के इस फैसले से फूले नहीं समा रहे। कौन नहीं जानता कि हुर्रियत कश्मीर में उन अलगाववादी मुसलमानों का संगठन है जो जम्मू-कश्मीर मसले पर पाकिस्तान की वकालत करता है और संपूर्ण कश्मीर को पाक में मिलाने का हिमायती हैं।
इस विशेष दूत की नियुक्ति के पीछे का सच यह भी है कि जिस सऊदी अरब के नागरिक अब्दुल्ला बिन अब्दुल रहमान अल बक्र की नियुक्ति हुई है यह शख्स वही है जिसने अनेक बार कश्मीर में कथित तौर पर होने वाले मानवाधिकार हनन के मुद्दे को उठाने के लिए मुस्लिम नेताओं के साथ पूर्व में अनेक बैठकें की है।
न केवल भारत की आवाम जानती है बल्कि दुनिया आज इस बात को मानती है कि मानव अधिकार के नाम पर आतंकवादियों को प्रश्रय और संरक्षण प्रदान करने का कार्य जम्मू-कश्मीर में हुर्रियत और इससे जुडे अलगाववादी संगठन करते रहे हैं।
इन मुस्लिम देशों की एकता का पता पाकिस्तान के पक्ष में इस बात से भी लगता है कि ओआईसी में कश्मीर पर संपर्क समूह को पाकिस्तान के अलावा तुर्की, साऊदी अरब और नाइजीरिया के विदेश मंत्रियों ने सम्बोधित किया। इतना ही नहीं मीरवाइज, पाक अधिकृत कश्मीर के प्रधानमंत्री सरदार याकूब और वांशिंगटन स्थित अलगाववादी संगठन कश्मीर अमेरिका काउंसलिंग के प्रमुख गुलाम नबी फेई ने भी बैठक में भारत विरोधी बाते कहीं। उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत के लिए संयुक्त राष्ट्र और इसके महासचिव बान की मून पर अब दबाव बनाना भी शुरू कर दिया है।
वस्तुत: यही वह बात है जो भारत को परेशान कर सकती है। जिसकी अतिशीघ्र काट निकालना आज भारत की विदेश नीति की पहली आवश्यकता है। यह बात भी सोलह आने सच है कि आज पाक के पास अपनी आवाम को खिलाने के लिए पर्याप्त अनाज नहीं है। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था का यह हाल है कि अमेरिका विश्व बैंक तथा अन्य इस्लामिक देश यदि आज पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना बंद कर दें तो पाक में जगह-जगह हिंसा व्याप्त हो जाए। गृह युध्दा जैसे हालत पैदा होने में तनिक भी देर न लगे, लेकिन अपनी जनता को उलझाए रखने के लिए पाकिस्तान ने इस्लामिक देशों की मदद से यह चाल चली है।
किन्तु इतना निश्चित है कि पाकिस्तान अपने मंसूबों को पूरा करने में यदि इस संगठन के भरोसे भारत को परेशान करने की कोशिश करेगा तो इसलिए भी सफल नहीं होगा, क्योंकि यह संगठन चारों तरफ से मुस्लिम देशों से घिरे इजराइल का आज तक कुछ नहीं बिगाड पाया है। हाँ इतना जरूर है कि इस कारण से भारत को बेफिक्र नहीं हो जाना चाहिए, क्योंकि चाणक्य नीति कहती है कि दुश्मन कितना भी निर्बल क्यों न हो उसे कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए। वस्तुत: कश्मीरियों को भी चाहिए कि वह हुर्रियत की बातों में न आएँ, स्वयं को इस संगठन से जितना दूर रखे उतना ही अच्छा है।
भारत में अल्पसंख्यकों के नाम पर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक केंट्रीज (ओआईसी) जिस तरह मुसलमानों की पैरवी कर रही है उससे तो यही लग रहा है कि जो दावे संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारियों ने भारत-पाक रिश्तों को मधुर बनाने के लिए इस दूत की नियुक्ति के पीछे दिए हैं वह खोखले ही साबित होंगे। इसके पीछे का तर्क यह है कि जम्मू-कश्मीर में स्थित हुर्रियत जैसे संगठन इसकी आड में अलगाववाद को ओर हवा देकर अपनी राजनैतिक रोटियाँ ही सेकेंगे।
आज जरूरत इस बात की है कि भारत भी संयुक्त राष्ट्र संघ पर यह दबाव बनाए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है वहाँ के नागरिक भारत के नागरिक हैं उन्हें किसी संगठन के जरिए आपस में तोडने का कोई प्रयास किया जाएगा तो उसे भारत सरकार सफल नहीं होने देगी। भारत के आंतरिक मामलों में किसी इस्लामिक संगठन को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यह अल्पसंख्यकों के नाम पर जो मुस्लिम राजनीति करने के प्रयास किए जा रहे हैं उसे भारत की सरजमी पर अमलीजामा पहनाने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती है।
वस्तुत: केंद्र सरकार को चाहिए कि वह शीघ्र इस मुद्दे पर संयुक्त राष्टन् संघ में अपना दृढ मत प्रस्तुत करे और पाकिस्तान को कूटनीतिक स्तर पर कडा जबाव देते हुए बता दे कि उसके द्वारा भारत को कमजोर करने के लिए यदि कोई भी चाल चली जायेगी तो वह सरकार और जाग्रत भारतीय जनता के होते हुए कभी सफल नहीं हो सकती।
-मयंक चतुर्वेदी
बढिया विश्लेषण |
इस केंद्र सरकार से ये आशा करना की वो मुस्लिमों से सम्बंधित किसी मसले पर सही और उचित फैसला करेगी निरर्थक है |
बहुसंख्यक भारतीय जनता और नेता को कश्मीर की कोई चिंता नहीं है | वैसे भी बच्चा खुचा कश्मीर भारत के हाथ से निकल भी गया तो क्या, २-४ दिनों तक हल्ला करेंगे और फिर हम फैशन शो आदि मैं मशगुल हो जायेंगे …