पानी पर विकलांगों का भी अधिकार है

मोहम्मद अनीस उर रहमान खान

 

“घर में पानी की पाइप लगी है, लेकिन पानी नहीं आता, परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए दूर चश्मे से पानी लाता हूँ, अम्मी बीमार रहती हैं, छोटी बहन के पैर सूख गए हैं वे सी-टी-ई-वी बीमारी का शिकार है, उसका तो चलना मुश्किल है तो पानी कैसे ला सकती है? पापा भी अधिक बोझ नहीं उठा सकते, इसलिए 80 प्रतिशत विकलांगता के बावजूद मैं खुद ही पानी लाता हूँ “।

ये वाक्य है सुहैल अहमद का जिसे डॉक्टरों द्वारा 80 प्रतिशत विकलांगता का प्रमाण पत्र मिल चुका है। बावजूद इसके सुहैल की तारीफ करनी होगी कि उसने विकलांग होने के बाद भी लाचारी को नही चुना बल्कि अपने उज्वल भविष्य के लिए शिक्षा को अपनी शक्ति बनाया। और आज वह सीमावर्ती जिले पुंछ के डिग्री कॉलेज में बी-ए का छात्र है। जबकि उसकी बहन भी विकलांगता के बावजूद पुंछ गर्ल्स उच्च माध्यमिक विद्धालय शीशमहल में ग्यारहवीं की छात्रा है।  बुजुर्ग पिता,विकलांग बहन और कमज़ोर माँ के सामने सुनने की शक्ति से वंचित सुहैल अहमद को अपनी विकलांगता कम महसूस होती है, यही वजह है कि वह शिक्षा और अन्य कार्यों के अलावा घरेलू कामों में भी व्यस्त रहता है। पुंछ से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर बसे खनेतर गांव का यह निवासी हर कम के लिए खुद को तैयार रखता है। वैश्विक स्तर पर विकलांगता  चिंता का विषय है,  क्योंकि दुनिया की कुल आबादी का 15 प्रतिशत विकलांगता का शिकार है।

इस संबध में जम्मू विश्वविद्यालय से एम-ए की पढ़ाई कर रहे युवा सामाजिक कार्यकर्ता बशारत हुसैन शाह कहते हैं “जिला पुंछ में बड़ी संख्या में विकलांग हैं। मैं कई विकलांगों को जानता हूँ, जिन के घरों में पीने के पानी की समस्या होने के कारण दूर से पानी लाना पड़ता है। और कई ऐसे भी हैं जो पानी का गिलास तक नही पकड़ पाते। ये हर काम के लिए घरवालों पर निर्भर हैं। जबकि घरवालों की अनुपस्तिथि में सूखे होठों से अपनी विकलांगता को कोसते हैं। इस पहाड़ी इलाके में पानी की भारी कमी है, विशेषकर बरसात के मौसम में चश्मे से पानी लाने में बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। पानी के लिए उन्हे कितनी परेशानी होती है इसकी कल्पना भी नही की जा सकती “।

नेशनल पीस एंड डेवलपमेंट वाइस के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता निज़ाम दीन मीर के अनुसार ” पुंछ की सभी सीमाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जहां ना पानी है ना सड़क! पानी के लिए जनता प्राकृतिक झरने पर निर्भर हैं,। इन क्षेत्रों में सरकार के सारे दावे खोखले मालूम होते है। चूंकि यह पहाड़ी और बर्फीला क्षेत्र है इसलिए यहां विकलांगों को प्रतिदिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है।”

निज़ाम दीन मीर समय-समय पर विकलांगों के लिए किसी न किसी संगठन से जुड़ कर कुछ बेहतर करने  में लगे रहते हैं,उन्हीं अनुभवों की रोशनी में एक उदाहरण के साथ अपनी बात रखते हुए कहते हैं कि “मदाना, दीगवार के निवासी खादिम हुसैन एक ऐसे विकलांग थे जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पानी के चश्मे तक गए, जहां उनका पैर जमी हुई बर्फ पर पड़ा वो फिसल कर नीचे गिरे और उनकी मौत हो गई। इसी प्रकार विकलांग बुजुर्ग नूर हसन शाह की मौत भी पानी लाने के दौरान ही हुई। तीसरा उदाहरण गांव किरनी की सफीना नाज़ का है जो एक गर्भवती महिला थी, कुछ दिन पहले उनकी मौत भी इसी कारण हुई। यही हाल यहां के स्कूली बच्चों का भी है, पानी की परेशानी से केवल शैक्षणिक नुकसान ही नहीं हो रहा है बल्कि शारीर के अंगो को खोकर लोग विकलांग होने पर मजबूर हैं। और कभी कभी लोगो की जान चली जाती है। हालांकि इस ओर सरकार को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। ”

मंडी ब्लॉक के विकलांग सामाजिक कार्यकर्ता मौलवी फरीद के अनुसार “पीर पंजाल अवामी डेवलपमेंट फ्रंट के एक प्रतिनिधिमंडल ने मेरे नेतृत्व में जिला विकास आयुक्त पुंछ से मुलाकात कर अड़ाई की जनता को होने वाली परेशानियों से अवगत कराते हुए बताया कि उक्त गांव में आज से 30 साल पहले पानी की पाइप लाईन बिछाई गई थी जो अब बेकार हो चुकी है बावजूद इसके संबंधित विभाग की ओर से उनकी मरम्मत नहीं की जा रही है, जिसके कारण जनता कई किलोमीटर पैदल चलकर पीने का पानी लाते हैं, जबकि पानी इकट्ठा करने के लिए बनाई गई टैंकों की भी मरम्मत और सफाई नहीं हो रही है। कई वाटर टैंक में तो चूहे और बिल्लियां मरी पड़ी हैं। परंतु जिला विकास आयुक्त ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि उनकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा मगर कब ये कहना मुश्किल है।

मेंढर ब्लॉक के वकार अहमद शाह के अनुसार “हमारे क्षेत्र में अधिकतर परिवार संयुक्त रूप से रहते हैं, इसलिए हम लोग आपस में एक दूसरे की मदद करने में विश्वास रखते है अगर हमारे समाज में कोई विकलांग है तो परिवार के अन्य लोग उसे हर तरह मदद करते हैं, यदि जरूरत पड़ती है तो उनके लिए पानी भी मुहैया कराते हैं। ‘

दैनिक हिंद समाचार और पंजाब केसरी टीवी के पत्रकार नाजिम अली मन्हास कहते हैं “मेंढर के भारत पाक सीमा क्षेत्र के लोग पानी की बूंद बूंद के लिए तरस रहे हैं, बालाकोट, भरुवट, सनदोट और आस पास क्षेत्र के लोगों में कुछ समय पहले हुई गोली बारी से पानी की अधिकांश पाइप टूट गई थी जिसको संबंधित विभाग ठीक करने में नाकाम है। 21 वीं सदी में भी लोग कई किलोमीटर की दूरी से पानी सिर पर उठाकर लाते हैं। जबकि दूसरी ओर सरकार विधानसभा में वाटर सप्लाई योजना को लेकर ग़लत बयान दे रही है। अधिकांश जलापूर्ति योजनाओं पर विभाग ने काम अधूरा छोड़ दिया है जिससे जनता को परेशानियों हो रही है। पी एच ई के मंत्री ने विधानसभा में बताया कि मेंढर में केवल 30 से 40 हैंडपंप ख़राब हैं,जबकि भाटीदार, कालाबन, सलवा, धारगलोन हरनी और मनकोट आदि में लगभग 40 प्रतिशत हैंडपंप ऐसे मिले जिनकी राशि तो सरकारी खज़ाना से निकाल ली गई है लेकिन उनमें पानी की बूंद तक नही आती और आम लोगों को परेशानी होती है। लोग पानी खरीदते हैं या फिर कई किलोमीटर दूर से अपने सिर पर लाद कर लाते हैं “।

राज्य सभा में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि “देश की लगभग 66 हजार बस्तियों में पेयजल खराब है, इसलिए आरसेनिक और फ्लोराइड युक्त पीने के पानी को साफ करने के लिए 25 हजार करोड़ रुपए की योजना चलाई जा रही है जिसके तहत अब तक नौ हजार से अधिक जल शोधन संयंत्र लगाए गए हैं। 2022 तक 93 प्रतिशत लोगों तक पाइप से पानी पहुंचाने का आयोजन किया जा रहा है और 80 प्रतिशत घरों में पानी का कनेक्शन उपलब्ध कराया जाना है। इस काम के लिए नीति आयोग ने 800 करोड़ रुपये दिए हैं। वो आगे कहते हैं कि खराब पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए पानी की गुणवत्ता मिशन शुरू किया गया है। जिसके तहत 25 हजार करोड़ रुपये राज्यों को दिए जाएंगे, योजना के तहत 760 करोड़ रुपये राज्यों को दिए जा चुके हैं, जबकि अब तक 9113 हजार जल शोधन संयंत्र भी लगाए गए हैं, एक लाख स्कूलों में भी पीने के पानी को साफ किया जा रहा है। उनके अनुसार पीने के पानी की समस्या राज्यों का विषय है और केंद्र ग्रामीण पेयजल योजना और अन्य कार्यक्रमों के द्वारा राज्य सरकारों को तकनीकी और वित्तीय सहायता देता है।

मगर जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार तो आगामी एक अप्रैल 2017 से बैंड, बाजा और बारात पर प्रतिबंध लगाकर खुद अपनी पीठ थपथपाने में व्यस्त है, उसके पास इतना समय कहां कि सीमावर्ती जिला और अन्य पहाड़ी जिलों में मौजूद विकलांगों की उस बड़ी बारात का दर्शन करे, जो आए दिन बढ़ रही है। विकलांगों की इस बारात में हर उम्र के मेहमान शामिल होकर हसरत भरी निगाहों से अपने नेताओं की ओर देख रहे हैं जो अपने अधिकारियों को राज्य में होने वाली शादियों के बारातियों की गिनती करने का आदेश दे रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here