पारलौकिक व इहलौकिक शक्ति अष्ट सिद्धियाँ

अशोक प्रवृद्ध

अतिप्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में तप व साधना के माध्यम से प्राप्त होने वाली परलौकिक व आत्मिक शक्तियों को सिद्धि कहा व माना जाता रहा है। सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना। कठिन मार्ग से गुजर कर सिद्धियों को प्राप्त कर लेने वाला व्यक्ति जीवन की पूर्णता को पा लेता है। असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को सिद्धि कहा गया है। चमत्कारिक साधनों द्वारा अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे – दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना इत्यादि सिद्धि हैं। मान्यता है कि नियमित और अनुशासनबद्ध रहकर सिद्धियों को प्राप्त किया जाए तो अनेक प्रकार की परा और अपरा सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती है। पौराणिक ग्रन्थों में दो प्रकार की सिद्धियों का उल्लेख है- परा और अपरा। ये सिद्धियाँ इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं। सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियां कहलाती है। ज्ञान- विज्ञान के भंडार भारतीय पुरातन ग्रन्थों में अनेकानेक सिद्धियों का विशद वर्णन अंकित हैं, जिनमें से आठ प्रकार की सिद्धियाँ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। सर्वप्रचलित इन आठ सिद्धियों को ही भारतीय संस्कृति में अष्टसिद्धि के नाम से अभिहित किया गया है। इन अष्टसिद्धियों के भारतीय संस्कृति में अत्यंत महिमा प्राप्त व सर्वप्रचलित होने का ही प्रमाण है कि इसके सम्बन्ध में संस्कृत में एक श्लोक लोकख्यात हो सुभाषितानी का रूप ले चुका है-

अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।

प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः।।

अर्थात – अणिमा , महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व ये सिद्धियाँ,अष्टसिद्धि कहलाती हैं।


पौराणिक ग्रन्थों में इन अष्टसिद्धियों का विशद वर्णन अंकित करते हुए कहा गया है कि अपने शरीर को एक अणु के समान छोटा कर लेने की क्षमता अणिमा, शरीर का आकार अत्यन्त बड़ा करने की क्षमता महिमा, शरीर को अत्यन्त भारी बना देने की क्षमता गरिमा, शरीर को भार रहित करने की क्षमता लघिमा, बिना रोक- टोक के किसी भी स्थान को जाने की क्षमता प्राप्ति, अपनी प्रत्येक इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता प्राकाम्य, प्रत्येक वस्तु और प्राणी पर पूर्ण अधिकार की क्षमता ईशित्व, और प्रत्येक प्राणी को वश में करने की क्षमता वशित्व कहलाती हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अपने तप व साधना से जिन शक्तियों को प्राप्त कर मनुष्य किसी भी रूप व शरीर में वास करने में सक्षम हो सकने की शक्ति प्राप्त कर लेता है, वैसी सिद्धियाँ ही अष्टसिद्धियाँ हैं। ऐसी शक्ति प्राप्त व्यक्ति सूक्ष्मता की सीमा पार कर सूक्ष्म से सूक्ष्म तथा इच्छानुसार विशालकाय शरीर का हो सकता है। सिद्धि और अष्ट सिद्धि के सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन करते हुए मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण आदि पुरातन ग्रन्थों में कहा गया है कि अष्ट सिद्धियों में सबसे प्रथम सिद्धि अणिमा का अर्थ है- अपने शरीर को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति प्राप्त कर लेना।जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दूसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। ऐसा साधक इच्छानुसार एक अणु के बराबर का सूक्ष्म शरीर धारण करने में सक्षम होता हैं। अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि महिमा है। महिमा सिद्धि प्राप्त मनुष्य इच्छानुसार अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं। गरिमा सिद्धि को प्राप्त साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं। लघिमा शक्ति प्राप्त साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार न के बराबर हो जाता हैं। प्राप्ति शक्ति प्राप्त साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सम्मुख अदृश्य होकर इच्छित स्थान पर जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं। प्राकाम्य (पराक्रम्य) शक्ति प्राप्त साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं। ईशत्व यह भगवान की उपाधि हैं, ईशत्व सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह संसार पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता है। वशित्व सिद्धि शक्ति प्राप्त प्राप्त साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।

उल्लेखनीय है कि पौराणिक ग्रन्थों में माता दुर्गा अष्ट सिद्धियों और नव निधियों की प्रदाता कही गई हैं। श्रीराम भक्त महावीर हनुमान को भी आठ प्रकार की सिद्धि और नौ प्रकार की निधियों को प्रदान करने वाला माना गया है। रामायण में घोर साधना अथवा तपस्या से प्राप्त होने वाली अलौकिक शक्तियों की सिद्धि से हनुमान अत्यंत शक्तिशाली और महत्वपूर्ण अष्ट सिद्धियों से अजेय सिद्ध हुए हैं। हनुमान ने अपनी ज्ञान, बुद्धि और विद्या के बल पर अष्ट सिद्धियों व नौ निधियों को प्राप्त कर अत्यंत शक्तिशाली होकर अजेय व देवत्व स्थिति को प्राप्त कर लिया था, इसीलिए अष्ट सिद्धियों के सम्बन्ध में हनुमान चालीसा में उल्लिखित- “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन्ह जानकी माता” इस पंक्ति के आधार पर लोक में यह आस्था बलवती हो चली है कि माता सीता की कृपा से पवनपुत्र हनुमान, अपने भक्तों को अष्ट सिद्धि और नव निधि प्रदान करते हैं। सत्य हृदय, शुद्ध मन और श्रद्धा के साथ आराधना करने वाले व्यक्ति को हनुमान अलौकिक सिद्धियाँ प्रदान करके कृतार्थ करते हैं। वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित विभिन्न प्रसंगों से भी हनुमान की अष्ट सिद्धियों व नौ निधियों से प्राप्त शक्तियों से अलौकिक कार्य कर सकने की ही पुष्टि होती है। अणु के समान सूक्ष्म रूप धारण की जा सकने वाली अणिमा शक्ति का प्रयोग कर हनुमान ने लंकिनी नामक राक्षसी से बचकर लंका में प्रवेश किया था। अतिसूक्ष्म रूप धारण कर सुरसा के मुख में जाकर बाहर आने, अहिरावण की यज्ञशाला में प्रवेश करने के लिए हनुमान ने इस शक्ति का उपयोग किया था। इस सिद्धि के बल पर कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकने वाले हनुमान ने रामायण में कई स्थान पर अणिमा के बल पर अलग-अलग आकार धारण किये। विशाल रूप धारण कर सकने वाले महिमा सिद्धि की अपनी शक्ति के बल पर हनुमान ने सुरसा के समक्ष अपना आकार एक योजन बड़ा कर लिया था। माता सीता को अपनी शक्ति का परिचय देने के लिए, लंका युद्ध में कुम्भकर्ण से युद्ध करने के लिए हनुमान ने अपना आकार उसी के समान विशाल कर लिया था। लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी को पहचान न पाने पर हुनमान ने इसी सिद्धि के बल पर विशाल रूप धर कर पूरे पर्वत शिखर को उखाड़ लिया था। इसी सिद्धि से हनुमान ने बचपन में सूर्य को निगल लिया था। महाभारत काल  में भी भीम और अर्जुन का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान ने अपना विराट स्वरुप इसी शक्ति के बल पर धारण किया था। अपना भार बहुत बढ़ा सकने योग्य गरिमा सिद्धि सिद्धि के बल पर हनुमान ने अपनी पूंछ का भार इतना बढ़ा लिया था कि भीम जैसे महाशक्तिशाली योद्धा भी उसे हिला नहीं सके। लंका युद्ध में भी ऐसे कई प्रसंग हैं जब कई राक्षस मिल कर भी हनुमान को डिगा नहीं सके।

अपने शरीर का भार अत्यंत हल्का कर सकने की शक्ति लघिमा सिद्धि के बल पर हनुमान रोयें अर्थात रूई के फाहे के समान हलके हो जाते थे और पवन वेग से उड़ सकते थे। माता सीता को ढूँढने के लिए जब हनुमान अशोक वाटिका पहुँचे तो जिस वृक्ष के नीचे माता सीता थी उसी वृक्ष के एक पत्ते पर हनुमान इस सिद्धि के बल पर बैठ गए। मान्यता है कि हनुमान की इसी सिद्धि के कारण उनके द्वारा श्रीराम लिखने पर पत्थर इतने हलके हो गए कि समुद्र पर तैरने लगे और फिर उसी सेतु से वानर सेना ने समुद्र को पार किया। किसी भी वस्तु को शीघ्र प्राप्त कर सकने और पशु- पक्षियों की बात समझ सकने की शक्ति प्राप्ति सिद्धि प्राप्त हनुमान की प्राप्ति शक्ति के बारे में विस्तृत वर्णन करते हुए कहा गया है कि इसी सिद्धि के बल पर हनुमान ने माता सीता की खोज की थी। उस समय उन्होंने माता सीता की थाह लेने के लिए कई पशु-पक्षियों से बात भी की थी। प्राक्राम्य (पराक्रम्य) सिद्धि प्राप्त होने के कारण ही हनुमान चिरंजीवी अर्थात अजर- अमर माने गये हैं और सप्त अथवा अष्ट चिरंजीवियों में शामिल किये गये हैं। उनके विषय में मान्यता है कि वे आज भी जीवित हैं। प्राकाम्य सिद्धि की सहायता से मनुष्य की कोई भी इच्छित वस्तु चिरकाल तक स्थायी रहती है। इस सिद्धि के बल पर वे स्वर्ग से पाताल तक कहीं भी जा सकते हैं और थल, नभ एवं जल में इच्छानुसार जीवित रह सकते हैं। भगवान श्रीराम की भक्ति भी हनुमान को चिरकाल तक इसी सिद्धि के बल पर प्राप्त है। इसी प्रकार अद्वितीय नेतृत्व क्षमता प्राप्त कर देवतातुल्य हो जाने अर्थात देवत्व पद प्राप्त हो जाने की शक्ति ईशित्व सिद्धि प्राप्त होने कारण ही महाबली हनुमान को आज भी एक देवता की भांति पूजा जाता है और इसी सिद्धि के कारण उन्हें अनेक दैवीय शक्तियाँ प्राप्त हैं। हनुमान की नेतृत्व क्षमता के बारे में अनेक प्रसंग रामायण में अंकित हैं। इसी नेतृत्व क्षमता के बल पर हनुमान ने सुग्रीव की रक्षा की, श्रीराम से उनकी मित्रता करवाई और लंका युद्ध में पूरी वानरसेना का मार्गदर्शन किया। अपनी इन्द्रियों को अपने वश में करने के साथ ही किसी भी मनुष्य को अपने वश में करने की वशित्व सिद्धि के कारण जितेन्द्रिय कहे जाने वाले पवनपुत्र हनुमान ब्रह्मचारी होकर अपने मन की सभी इच्छाओं को अपने वश में रखते हैं। इसी सिद्धि के कारण हनुमान किसी को भी अपने वश में कर सकते थे और उनसे अपनी बात मनवा सकते थे। रामायण में उल्लिखित हनुमान से सम्बन्धित इन प्रसंगों के आधार पर उन्हें अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के भण्डार और उनका प्रदाता मानना हनुमान भक्तों के लिए उचित ही जान पड़ता है ।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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