जैनधर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ

—विनय कुमार विनायक
जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जन्मे थे
आठ सौ सतहत्तर ईसा पूर्व में
नागवंशी काशीराज अश्वसेन और वामादेवी के पुत्र रूप में
तीस वर्ष की उम्र में त्यागकर जन्मभूमि पार्श्वनाथ पहुंचे

मगध महाजनपद, झारखंड क्षेत्र गिरीडीह के सम्मेद शिखर
जहां पार्श्वनाथ ने चौरासी दिनों तक घोर तपस्या कर
चौरासी लाख योनि से मुक्ति हेतु कैवल्य ज्ञान को पाया,
सत्तर वर्षों तक अपने निर्ग्रन्थ धर्म का करके प्रचार
शतजीवी पार्श्वनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण पाया!

तब से उनकी स्मृति में वह पवित्र पर्वत स्थली
कहलाने लगी पारसनाथ की पहाड़ी
कभी पारसनाथ पर्वत था बिहार का हिमालय
पन्द्रह नवंबर हजार दो ईस्वी से झारखंड बनने पर
पारसनाथ हो गया झारखंड का पर्यटन स्थल!

चौबीस में से बीस तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि
पार्श्वनाथ का ये मधुबन कहलाती मंदिरों की नगरी
पार्श्वनाथ ने दिया जैन धर्म का ‘चातुर्थी संदेश’
पालन करने को कहा सत्य, अहिंसा,अपरिग्रह और अस्तेय!

सभी तीर्थंकरों के अनुयाई जैन
पारसनाथ समर्थक निर्ग्रन्थी जैन कहलाते
अंतिम जैन तीर्थंकर भगवान महावीर थे निर्ग्रन्थी!
अन्य तीर्थंकरों से हटकर
पार्श्वनाथ की मूर्ति के सिर पर
नाग क्षत्र बना होता,पार्श्वनाथ थे नागवंशी,
क्षत्रिय राजकुमार नाग उपासना करते उनकी!
—विनय कुमार विनायक

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