पतंगें

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गुन गुन धूप तोड़ लाती हैं,
सूरज से मिलकर आती हैं,
कितनी प्यारी लगें पतंगें,
अंबर में चकरी खाती हैं|

ऊपर को चढ़ती जाती हैं,
फर फर फिर नीचे आती हैं,
सर्र सर्र करतीं करती फिर,
नील गगन से बतयाती हैं|

डोरी के संग इठलाती हैं,
ऊपर जाकर मुस्काती हैं,
जैसे अंगुली करे इशारे,
इधर उधर उड़ती जाती हैं|

कभी काटती कट जाती हैं,
आवारा उड़ती जाती हैं,
बिना सहारे हो जाने पर,
कटी पतंगें कहलाती हैं|

तेज हवा से फट जाती हैं,
बंद हवा में गिर जाती हैं,
उठना गिरना जीवन का क्रम,
बात हमें यह समझाती हैं|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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