कल मैंने लिखा था कि मियां नवाज़ शरीफ और सेनापति राहील शरीफ पठानकोट से क्या-क्या सबक लें लेकिन उससे भी ज्यादा जरुरी है कि भारत और नरेंद्र मोदी क्या-क्या सबक लें? नरेंद्र मोदी को चाहिए था कि वे मियां नवाज़ को तत्काल फोन करते और उनसे कहते कि पठानकोट के आतंक की वे भर्त्सना करें। दोनों तरफ से भर्त्सना होती तो मोदी की अचानक हुर्इ लाहौर-यात्रा का कुछ असर लोग महसूस करते लेकिन हुआ क्या? इधर हमारे जवान आतंकियों का मुकाबला कर रहे थे और पाकिस्तान के टीवी चैनल कह रहे थे कि पठानकोट में नौटंकी रची जा रही है। फिजूल ही पाकिस्तान का नाम घसीटा जा रहा है। पाकिस्तान का पठानकोट से क्या लेना-देना? उस समय मैं दिन भर हरिद्वार की कर्इ सभाओं में था और कुछ पाकिस्तानी टीवी चैनलों के एंकरों और विशेषज्ञों ने भी मुझे उक्त बात कही। याने वही पुराना ढर्रा अब भी चल रहा है। लाहौर की चमत्कारी-यात्रा का ज़रा-सा असर भी दिखार्इ नहीं पड़ रहा है। यदि मोदी और नवाज़ उस घटना की एक साथ भर्त्सना कर देते तो एक हद तक यह बात पक्की हो जाती कि ये पाकिस्तानी आतंकवादी वहां की सरकार ने नहीं भेजे हैं और न ही उनके सिर पर उसका हाथ है। अब तो इतने प्रमाण जुट गए हैं कि भारत में पाकिस्तान-विरोधी माहौल अचानक फिर उठ खड़ा हुआ है।
पाकिस्तानी आतंकियों ने पठानकोट के हमारे वायुसेना के उस अड्डे पर हमले किए हैं, जिसके तीन हेलिकाप्टर मोदी अफगानिस्तान को देकर आए हैं। कितने आश्चर्य और शर्म की बात है कि हमारी सेना के अड्डे भी सुरक्षित नहीं है और वह भी तब जब कि आतंकी हमले का सुराग हमारी गुप्तचर एजंसियों को पहले से ही लग गया था। शनिवार को 17 घंटे कार्रवार्इ चली, हमारे कर्इ सुयोग्य जवानों ने अपनी जान गंवार्इ, फिर भी दो आतंकी रविवार तक जिंदा रह गए। किसी भी सरकार के लिए यह स्थिति मुंह दिखाने लायक नहीं है। इन्हीं आतंकियों ने शुक्रवार को एक टैक्सी ड्राइवर की हत्या की और हमारे एक पुलिस अफसर की कार का अपहरण किया। 28 दिसंबर को भटिंडा से जो एक पाकिस्तानी जासूस पकड़ा गया था, उसने पठानकोट हमले की बात बता दी थी। इसके बावजूद हमारी सरकारी एजंसियां सोती रहीं। उनमें क्या आपसी तालमेल नहीं है? इन आतंकियों का हमला कुछ स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता था। सरकार को चाहिए कि उन्हें तत्काल कठोरतम सज़ा दे। मोदी जैसे बड़बोले नेताओं को अब प्रचार मंत्री की भूमिका घटाकर प्रधानमंत्री की भूमिका निभानी चाहिए। अपने दोस्त ‘ओबामा’ से सबक लेना चाहिए। पाकिस्तान से बातचीत भंग करने की बजाय मोदी को दोनों शरीफों (नवाज़ और राहील) से पूछना चाहिए कि क्या उनके आतंकियों को खत्म करने के लिए पाकिस्तान को भारत की मदद चाहिए? भारत चाहे तो सीमांत पर स्थित सभी आतंकी शिविरों को एक ही दिन में नेस्तानाबूद कर सकता है, जैसा कि अमेरिका ने उसामा बिन लादेन को किया था
ऐसे तो हमारे जैसे लोग आजकल बड़ी सोच समझ कर टिप्पणी देने को बाध्य हो गए हैं,फिरभी, डाक्टर साहिब,जब आपने ओबामा से भारत की तुलना कि तो मुझे बचपन में पढ़ी हुई शेर और गीदड़ की कहानी याद आ गयी.आपलोगों ने भी वह कहानी अवश्य पढ़ी होगी.