पवार और कांग्रेस की गले की फांस बनेगा विदर्भ का सूखा

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vidarbhनई दिल्ली। महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के लिए विदर्भ में खासी मशक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इस साल अपेक्षा से कम हुई बारिश से उपजी परिस्थितियों ने मतदाताओं का राकांपा और कांग्रेस से मोहभंग करवा दिया है।

गौरतलब होगा कि वर्तमान में सूबे में राकांपा और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार सत्ता पर काबिज है। दूसरी ओर केंद्र में भी कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन दूसरी बार अस्तित्व में आया है। केंद्रीय कृषि मंत्री का महत्वपूर्ण दायित्व राकांपा सुप्रीमो शरद पंवार के कांधों पर है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार विदर्भ में संतरा पट्टी से लेकर कपास पट्टी तक किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। महराष्ट्र की संस्कारधानी नागपुर के इर्दगिर्द अकोला, रामटेक, वर्धा, यवतमाल, भंडारा, गोंदिया आदि एक दर्जन से अधिक तालुकों में किसानों की आर्थिक स्थिति दयनीय होने से वे आत्महत्या जैसा संगीन कदम उठाने पर मजबूर हैं।

गौरतलब होगा कि पिछले साल क्षेत्र में बारह सौ कपास उत्पादक किसान अर्थिक संकट के दौर से गुजरकर आत्महत्या कर चुके हैं। भले ही केंद्र सरकार कर्ज माफी की योजना पर अपनी पीठ थपथपा रही हो पर जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।

वैसे भी विदर्भ में मेहान परियोजना (मल्टी मोडल इंटरनेशनल हब एंड एयरपोर्ट) लगभग पंद्रह हजार एकड़ जमीन को निगल चुकी है। मेहान वैसे भी महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कंपनी द्वारा पैदा की गई संस्था है। पूंजीपतियों से सांठगांठ के चलते यहां कि किसानों की उपजाउ जमीन जिस पर वे साल भर में तीन फसल लिया करते थे, को भी धनाडय व्यापारियों को सौंपने की खबरें हैं।

समूचे विदर्भ और उससे सटे मध्य प्रदेश के इलाकों में रियल स्टेट के कारोबारियों की नजरें इनायत होने लगी हैं। इस इलाके में किसानों की उपजाउ जमीन खरीदकर किसानों को उनके मूल व्यवसाय से दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। महानगरों के रियल स्टेट व्यवायियों ने यहां की एक एक इंच उपजाउ भूमि को खरीदकर उसे व्यवसायिक उपयोग में लाने की तैयारी की जा रही है।

नागपुर में कार्गो हब और ड्राय पोर्ट प्रस्तावित है, जिससे पूंजिपतियों ने पिछले एक दशक में यहां अपनी आमद दे दी है। जमीनों के बदले मिलने वाले पैसे किसानों द्वारा खर्च किए जा चुके हैं, अब उनके पास खाने के बांदे साफ नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर केंद्र और प्रदेश में कांग्रेसनीत सरकार तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए भी शरद पंवार द्वारा किसानों के लिए कुछ न किया जाना इस बार विधानसभा चुनाव में राकांपा और कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल से कम नहीं होगा।

-लिमटी खरे

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लिमटी खरे
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1 COMMENT

  1. यह नेता एक ऐसी नस्ल होती है कि एक किसान मरे या एक लाख इन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता। चुनाव वोट से जीता जाता है। अपने जीतने के वोट का जुगाड़ तो ये कर ही लेते हैं। ये नहीं जीतेगे तो दूसरा जीतेगा और नेता बनेगा किन्तु नेता नस्ल वैसी ही रहेगी।

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