किसान आंदोलन :: बंजर हो चुकी राजनैतिक जमीन पर सत्ता की फसल उगाने के लिए अर्थहीन व स्वार्थ की लडाई लड रहे है वांमपंथी व राजनैतिक दल

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भगवत कौशिक – पंजाब से निकलकर दिल्ली की सीमाओं तक पहुंचा किसान आंदोलन अब केवल किसान आंदोलन ना होकर राजनैतिक आंदोलन बन गया है।एक तरफ सरकार ने जहां अंतिम वार्ता के दौरान पेश किए समझोते पर ही दोबारा बातचीत करने का फैसला कर कृषि कानूनों को वापस ना लेने का अपना फैसला जता दिया है,वही दुसरी ओर किसान आंदोलन को चला रहे लोग किसी भी सुरत मे पीछे हटने को तैयार नहीं है।ऐसे मे आंदोलन लंबा खींच रहा है और आम जनता के लिए परेशानी का सबक बन गया है।

किसान आंदोलन की विश्वसनीयता पर सवाल शुरू से ही उठते रहे है कि ये किसान आंदोलन ना होकर राजनैतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए वांमपंथी व विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस पार्टी का सरकार के विरूद्ध एक अघोषित युद्ध है जिसके माध्यम से वांमपंथी व कांग्रेस जैसे दल अपनी बंजर पड चुकी राजनैतिक जमीन पर फिर से सत्ता के बीज अंकुरित कर सके।इसके साथ साथ नागरिकता संशोधन बिल के विरोध मे दिल्ली को बंधक बनाए रखने वाले लोगों को भी किसान आंदोलन के नाम की संजीवनी बूटी हाथ लग गई ।इस अवसर को ये लोग स्वार्थ सिद्धि के रूप मे भूनाना चाहते है ताकी इनकी राजनैतिक फसल पकती रहे।

आंदोलन मे आए दिन नए नए रूप बदलते देखे जा सकते है।कभी राकेश टिकैत आंसू बहाते है तो कभी फसल जलाने का आहवान करते है।अब तो आंदोलन को चलाने के लिए महात्मा गांधी के चरखे को भी मैदान मे उतारकर टिकैत दवारा सूत काता जा रहा है,लेकिन बापू के चरखे पर सूत कातकर कोई गांधी नहीं बन जाता। एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि गांधी का सम्मान और गांधी को याद करना तो कतई नहीं क्योंकि अगर राकेश टिकैत को गांधी जी के कर्म जरा भी याद होते तो लाल किला कांड उनकी दंगा ब्रिगेड ने नहीं किया होता और जब देश को शर्मसार करने वाली दंगा ब्रिगेड को दबोचने पुलिस पहुंचने लगी तो टिकैत के दंगा गैंग ने पुलिस वालों को ही बंधक बनाने की साजिश रची।

टिकैत के साथी गुरूनाम सिंह चढूनी ने किसानों को भड़काते हुए कहा कि जब पुलिस वाले गिरफ्तारी के लिए गांव में घुसे तो उन्हें बंधक बना लें। लेकिन टिकैत के गाजीपुर वाले अड्डे में जिस तरह से चरखा चला और ढपली गैंग की एंट्री हुई उससे 2013 का अन्ना आंदोलन की यादें ताजा हो गईं।रामलीला मैदान में 8 साल पहले भी गांधी दर्शन की खूब डींगे मारी जाती थीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब टिकैत भी उसी आंदोलनजीवी गैंग के इशारे पर फिर 2013 को दोहराना चाहते हैं।

2013 में रामलीला मैदान में भी वामपंथी ढपलीबाज खूब क्रांति के तराने सुनाते थे और अब राकेश टिकैत के गाजीपुर अड्डे पर भी ढपली गैंग किसानों को राग सुना रहा है जिस पर टिकैत झूम रहे हैं। हालांकि इसकी पटकथा दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन टिकैत ने घड़ियाली आंसू बहाए थे और मनीष सिसोदिया उनके आंसू पोंछने पानी के टैंकर लेकर पहुंचे थे।सियासत में सत्ता का संकट झेल रहे तमाम किसान नेता टिकैत के ट्रैक्टर की सवारी करने को आतुर हैं।इनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी से लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तक हैं। इससे एक बात बिल्कुल साफ है कि टिकैत के अड्डे पर लंगर से लेकर डीजल तक का इंतजाम भी सियासी पार्टियों की फंडिंग से हो रहा है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेट टिकैत खुद को किसानों का नेता कहते हैं। उन किसानों के हक की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं। लेकिन किसानों की औसत कमाई कि बात करे तो एक महीने की कमाई सिर्फ 6400 रुपये है वहीं खुद को किसान नेता कहने का दावा करने वाले राकेश टिकैत की कमाई करीब 80 करोड़ है।उनकी संपत्ति 4 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और महाराष्ट्र मे फैली हुई है। एक आंकड़े और अनुमान के मुताबिक राकेश टिकैत की देश के 13 शहरों में संपत्ति है, जिनमें मुजफ्फरनगर, ललितपुर, झांसी, लखीमपुर खीरी, बिजनौर, बदायूं, दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, देहरादून, रूड़की, हरिद्वार और मुंबई शामिल हैं। वही राकेश टिकैत व गुरूनाम सिंह चढुनी चुनाव मैदान मे भी किस्मत आजमा चुके है लेकिन जनता ने इनको नकार दिया।अब ये किसान आंदोलन के नाम पर अपनी राजनैतिक जमीन तलाश कर रहै है और आने वाले समय मे किसी राजनैतिक दल या स्वयं की कोई पार्टी बना कर फिर से चुनाव मैदान मे दिख जाए तो कोई ताजूब नहीं होगा।

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