कुलदीप विद्यार्थी
आज सुबह
होस्टल की खिड़की से देखा
कलम बीनते हुई दो लड़कियाँ
मैले वस्त्र,
दोनों के सिर पर दो चोटियां
नाक छिदा हुआ
मटमैला सवाल चेहरा
जान पड़ता था कि
मुँह तक नहीं धुला हैं
तुलसी को जल चढ़ाते हुए
निगाह उन पर टिकी
अमूमन इस ओर
नहीं आता कोई
अच्चम्बे से उनको इशारा किया
ऐ… छी छी…..
वो घबराई
मैं उलट कर फिर
नहलाने लगा गणपति
अगरबत्ती लगाते वक्त
फिर देखा दोनों को
झाड़ियों में हाथ डाल
पुरानी कलम बीनते हुए
मैं मुड़कर अपनी
अपनी अलमारी की ओर बढ़ा
उड़ीसा से मंगवाए
एल्कोस सिफ्को के पेन,
दो पेन निकाल
फिर बढ़ा खिड़की की ओर
मैंने फिर उन्हें आवाज लगाई
वो आश्चर्यजनक रूप से
देखने लगी
मैंने खिड़की से हाथ निकाल बाहर
पैन लहराए,
सहमति हुई एक लड़की
खिडकी के पास आई
पेन लिया और फिर
बीनने लगी कलम
झाड़ियों में!
ये नज़ारा देश के
एक विश्वविद्यालय का है
जहां शिक्षा के लिए
बड़ी-बड़ी इमारतें है
लेकिन वहीं
आज भी झाड़ियों में
कलम बीनती है लड़कियाँ…।