अवध किशोर
अन्ना हजारे के नेतृत्व में सम्पूर्ण देश जाग उठा है सारा देश एक स्वर में बोल उठा है, ‘भारतमाता की जय’, ‘वन्देमातरम्’ और ‘अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं’ आजादी की दूसरी लड़ाई के रूप में इसे सम्पूर्ण देश मान रहा है। जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति के बाद यह पहला सबसे बड़ा अहिंसक किन्तु प्रभावी और सशक्त जनक्रान्ति है जिसनें अपना दूरगामी प्रभाव छोड़ गया है आज भले सरकार डरी सहमी इस आन्दोलन को तोड़ने की कुत्सित प्रयास करें किन्तु इसके प्रभाव को वह समाप्त नहीं कर सकती। सम्भव है यदि पुनः देश अंगड़ाई ले उठे। यह सरकार अन्ना हजारे के टीम को हतोत्साहित करने में लगी है लेकिन सत्य तो यह है कि सरकार की जड़े हिल चुकी हैं, क्रान्ति की आग अन्दर ही अन्दर सुलग रही है, कभी भी यह चिन्गारी ज्वालामुखी बन फूट सकती है, अभी तो सत्ताधारी भ्रष्टाचार के विरुध्द जनलोकपाल कानून का आश्वासन दे अन्ना के अनशन को तोड़वाकर सबकुछ मैनेज कर लिए हैं, लेकिन उनकी नियत साफ नहीं है वे कब क्या करेगें यह सबकुछ सन्देहास्पद है लोकतंत्र के नाम पर भ्रष्टतंत्र को बढ़ावा देने वालों का दामन पाक साफ हो इस हेतु नैतिक बल और प्रबल इच्छा शक्ति की आवश्यकता है।
अजादी की दूसरी लड़ाई के माने है भय-मुक्त समाज और भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रणाली आज की आवश्यकता है। सुशिक्षा एवं बेरोजगारी मुक्त भारत तथा समतामूलक समाज सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय सरकार। जो जनता के सेवक हैं, वे मालिक बन बैठे हैं, अत्याचार, भ्रष्टाचार को फैला रहे हैं। जनता के हित की योजना सर्व सुलभ हों, सभी को समान अधिकार हो। जिस अजादी को प्राप्त करने के हेतु माँ भारती के सपूतों ने हँसते-हँसते फाँसी के फन्दे को चूम कर गले लगा लिया था, उन सपूतों की सच्ची श्रध्दांजलि तभी होगी जब इस आजादी की कीमत हम समझें तथा अपने कर्तव्य का पालन करें। आज हवा बदल गयी है, हर व्यक्ति अपनी किस्मत सवारने में लगा है, कारण आर्थिक युग का प्रभाव है। बाजारवाद सभी को प्रभावित किया है। राष्ट्रजीवन और समाज जीवन के सभी वर्गों को इस युग के बदलते बाजारवाद ने कुप्रभावित किया है। हर व्यक्ति पैसा कमाने की अंधी दौड़ में शामिल है। और अपना हित एन-केन-प्रकारेण साधने में लगा है, अपने स्वार्थ से ऊपर उठ राष्ट्रहित का उसे विचार करने की फुर्सत ही नहीं है।
आज जो प्रबल जनज्वार उमड़ता दिख रहा है वह भ्रष्टाचार और मंहगाई के विरुध्द जनता का आक्रोश है, देश को चलाने वाले देश के मुखिया बहरे हो चुके हैं, नक्कारखाने में तूती की आवाज की भाँति जनता की आवाज उन्हें सुनाई नहीं देती है। अन्ना ने जे. पी. के बाद क्रान्ति का शंखनाद किया है पूरा देश उनके नेतृत्व में खड़ा हो गया आज सरकार उनके प्रबल जनसमर्थन से घबड़ा कर पूरे आन्दोलन को विखण्डित करने की कुत्सित योजना में लगी है। वह अन्ना टीम के सदस्यों को परेशान करने में लगी है ताकि फिर कोई उसके विरुध्द विगुल फूँक कर यह पुनित कार्य न कर सके। लेकिन सरकार भूल गयी है कि जो लोग भ्रष्टाचार के विरुध्द मरने-मारने पर उतारु हैं वे क्या चुप बैठेंगे? इस स्थिति में सरकार को जनहित और राष्ट्रहित में बुध्दिमानी से काम लेना चाहिए, जनलोकपाल हो या लोकपाल हो या इस दिशा में कोई नई बात हो हर बिन्दू पर खुले दिमाग से उसे विचार-विमर्श कर एक प्रभावी व सशक्त भ्रष्टाचार विरोधक कानून बनाना चाहिए, प्रश्न यह भी उठता है कि क्या जनलोकपाल कानून बनने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? सम्भव है लोगों के समझ में आये कि सजा मिलेगी इसलिये रिश्वत लेना-देना बन्द करें। सच्चाई तो यह है कि जबतक राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण नहीं होगा लोगों की नैतिककता उजागर नहीं होगी। भ्रष्टाचार रूपी महादानव से निजात नहीं मिल सकती। कम परिश्रम कर अधिक धन कमाने की उत्कट अभिलाषा ही यह विषबेल है एक डाल से दूसरे डाल फैलती ही जा रही है । इस तरह से वह समाजजीवन के हर कोने को प्रभावित कर चुकी है बिरले ही कोई बचा है, जो ईमानदार है उनकी संख्या नग्ण्य है, ढुंढे मिल जाय अच्छा है, व्यवस्था में जो कुछ सरकुलेट हो रहा है वह एक कस्टम और सिस्टम का रूप ले चुका है, इससे अधिक डिमाण्ड करने वाला अधिकारी तथा कर्मचारी ही रिश्वतखोर माना जाता है, सामान्य प्रचलन में जो है वह तो उनके रिति-रिवाज का हिस्सा है, उसमें भी सरकार के कई कर्मचारी हैं जो इमानदार हैं, डील शब्द इस भ्रष्टतंत्र में प्रचलन में आता है, इसके बाद तो घोटाले का प्रचलन चल पड़ा, जीप घोटाले से शुरु हो कर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले तक घोटालों की लम्बी श्रृंखला है। देश का कितना काला धन विदेशी बैंकों में है सरकार बोल नहीं रही, न ही इसे उजागर कर रही है यह भी जनता के साथ छल है।
आज देश का युवा वर्ग जाग उठा है तरुणाई के हुंकार से सारा देश गूंज उठा है आज चारों ओर ही ‘वन्देमातरम्’ और ‘भारतमाता की जय’ की प्रतिध्वनि गुंजायमान हो रही है। देश का बच्चा-बच्चा बोल उठा है हमें पूर्ण आजादी चाहिए। शासन जनता के द्वारा जनता के लिए और जनता का है, फिर जनभावनाओं का दमनचक्र कब तक चलेगा? सरकार कब सुधरेगी? सरकार कोई भी हो किसी भी पार्टी की हो उसे जनआकांक्षाओं पर खड़ा ही उतरना चाहिए जनता की अपेक्षा रहती है कि उसकी आवश्यक आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाय। जैसे सड़कें, बिजली, पानी, नाली, बच्चों के पढ़ाई के साथ ही रोटी, कपड़ा और मकान की उसकी जरुरी समस्याओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। आज दृश्य यह है कि गलियां अंधेरी, उबड़-खाबड़ सड़कें और सुखे नल की टोटियाँ साथ ही बजबजाती नालियां देखने को मिलते हैं गांव के बच्चों के पढ़ने के लिए सस्ती शिक्षा हो यह सब ऐसी समस्याएँ हैं जो जनता को आक्रोशित करती है, देश की तरुणाई को माँ भारती पुकार रही है वह कह रही है, उठो-उठो जवानों भ्रष्टाचार रूपी महादानव का नाश कर सुख-समृध्दि और शान्ति का साम्राज्य स्थापित करो नीति और न्याय का राज्य स्थापित करो। देश के जवानों को इन पक्तियों से प्रेरणा लेनी है, आजादी के मतवाले वीर शहीदों के पुण्य बलिदान पर राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है, ‘जला अस्थियाँ बारी-बारी छिटकाई जिनने चिंगारी, चढ़ गए पुण्य वेदी पर जो लिए बिना गरदन के मोल कलम आज उनकी जय बोल।’ देशहित राष्ट्रहित समर्पित होने वाले को यह पंक्तियाँ हमेशा प्रेरणा देती रहेगी। अब सोने का वक्त नहीं, जनक्रान्ति की जय बालें, शंखनाद हो चुका है आगे बढ़ें। ”युग-युग से स्वप्न संजोए जो, उसको पूरे कर दिखलाना। है रामराज्य फिर भारत के उजड़े कानन में विकसाना॥”
* लेखक समाजसेवी तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।