सन जैसे सफेद बाल जर्जर हडिृडयो के सहारे आखिरी सफर की ओर लठिया के सहारे बढ रही जिन्दगी फटे हुए कपडे हाथ में कागजो का थैला। हिलता ढुलता हुआ शरीर और लडखडाती जुबान। सरकारी दफ्तरो में बाबुओ की डाट फटकार आज देश के वृद्धजनों की ये तकदीर बन गई है। सरकारी बाबू आज कल यमराज बने है अपने कलम से वो कब किसे मार दे किसे जिला दे शायद खुद यमराज को भी इस बात का पता न चले। जो कलावती दो साल पहले तक वृद्धावस्था पेंशन के लिये सरकारी कागजो में जिंदा थी और बराबर पेंशन पा रही थी उसे अचानक कब और किसने क्यो मुर्दा घोषित कर दिया इस बात का किसी के पास जवाब नही होता। आखिर ये जिन्दा लोग किस के आदेश पर मार दिये जाते है, इस सब के पीछे कौन है और क्यो है शायद इस की जाच हो या न भी हो क्यो की गरीब लोगो की कौन सुनेगा और ये लोग कितने दिन जीवित रहेगे ये भी कहना मुिशकल है। कलावती सिर्फ अकेली नही जिसे जिन्दा रहते हुए मृत दिखा दिया गया है ऐसे सैकडो वृद्व पुरूश व वृद्व महिलाए और विधवाए है जिन्हे जीते जी मार दिया गया है। अब फिर से सिर्फ तीन सौ रूपये की सरकारी मदद पाने के लिये कब ये लोग जिन्दा होगे कुछ नही कहा जा सकता। क्यो कि इन की जगह दूसरे लोग यकीनन पेंशन पाने लगे होगे।
सब से पहले आईये जानते है कि वृद्धावस्था पेंशन क्या है। वृद्धावस्था पेंशन दरअसल दो हिस्सो में विभाजित है। 60 से 64 वर्ष के वृद्धजनों को राज्य सरकारो को अपनी ओर से अपने अपने राज्य में 300 रूपये पेंशन देनी होती है। 65 से ऊपर के वृद्व को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृदावस्था पेंशन के रूप में 200 रूपये केंद्र सरकार की ओर से और 100 रूपये किसान पेंशन के रूप में राज्य सरकार की ओर से दिये जाते है। पहले आर्थिक सिथति के आधार पर इस का चयन होता था किन्तु 1 अप्रैल 2008 से वृद्धजनों को पेंशन देने का आधार बीपीएल सूची के आधार पर किया जाने लगा। इस के साथ ही विधवा पेंशन योजना महिला कल्याण विभाग की ओर से संचालित की जा रही है। जिस के तहत पति की मृत्यु के बाद 14 लाख 95 हजार 101 महिलाओ को प्रतिमाह 300 रूपये की पेंशन दी जा रही है। इस के लिये ग्रामीण क्षेत्रो में लाभार्थी की आय लगभग 19884 रूपये सालाना से अधिक नही होनी चाहिये। शहरी क्षेत्रो में यह सीमा 25546 रूपये है। इस में एक कानून और है कि लाभार्थी को उस के आश्रितो द्वारा किसी प्रकार का कोई लाभ जैसे उस का भरण पोषण न किया जा रहा हो। दरअसल वृद्धावस्था पेंशन योजना में जिंदा को मुर्दा और मुर्दा को जिन्दा दिखाने का जबरदस्त खेल काफी सालो से चल रहा है किसी भी पेंशनर को जिंदा से मुर्दा बना कर दूसरे के लिये जगह बना दी जाती है। लम्बी लम्बी फैहरिस्तो में अगर जगह न बन पा रही हो तो ग्राम प्रधान, बीडीओ, ग्राम पंचायत सदस्य, नगर पालिका सदस्य, ब्लाक प्रमुख आदि न जाने कितने लोग अपने अपने चहितो पात्र व अपात्रो को पेंशन जारी करावा देते है। समाज कल्याण विभाग के बाबू इन कामो में महारत हासिल रखते है अत: वो यमराज से भी जल्दी मुठठी गरम होने पर या सरकार में हिस्सेदार कोई नेता अगर फेॊन कर दे तो ये लोग आदमी को मार व जिंदा कर देते है वही अगर इन की मुठठी और ज्यादा गरम कर दी जाये तो किसी के हकीकत में मरने पर भी उस की पेंशन बन्द नही होगी।
आखिर हमारी और हमारे देश की ये कैसी परम्परा है कि जिन लोगो का हमे मान सम्मान करना चाहिये जिन लोगो को हमे भगवान की तरह पूजना चाहिये आज वो हमारे बुजुर्ग अपनी जीविका चलाने के लिये सरकारी अनुदान पाने के लिये दो वक्त की रोटी के लिये अपनी कमजोर बीमार काया को ढो रहे है और कुछ जमीर के गिरे हुए लोग उन्हे डाट रहे है दुत्कार रहे है। आखिर क्यो क्या इन लोगो की सूरत में उन्हे अपने मां बाप अपना आने वाला बुढापा नजर नहीं आता। आता होगा पर इन लोगो को अपने कल की कोर्इ चिंता नही। गरीब लोगो का खून चूस चूस कर ऐसे तमाम भ्रष्ट लोगो ने अकूत सम्पत्ती और रूपया पैसा बैकों में जमा कर रखा है। इस में इन लोगो का इतना दोष नही जितना हमारा है। आखिर ये कौन लोग है जो अपना पेट पालने के लिये आज दर दर भटक है यकीनन मेरे और आप के माता पिता। जिन लोगो ने हमे पाल पोस कर बडा किया पढाया लिखाया जमीन जायदाद दी समाज में मान सम्मान अपना नाम दिया आज वही लोग गली गली मोहल्ले मोहल्ले भीख मांग रहे है दुत्कारे जा रहे है। हमारे जमीर कहा गये। हम रोज भगवान को भोग लगाते है। बीस बीस तीस तीस देगे अतार कर अल्लाह के नाम की बडी बडी नियाज करते है क्यो ?क्या सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिये के हम बहुत बडे दानी है भगवान के भक्त है अल्लाह वाले है। अल्लाह भगवान ऐसी किसी भी चीज किसी भी कार्य से खुश नही होता। सच्चे मन से मां बाप की सेवा करने से भगवान खुश होता है। आज समाज जिस पषिचमी सभ्यता की ओर बढ रहा है उस से रिष्तो की अहमियत के साथ साथ हम अपनी अपनी मजहबी किताबो और उन में लिखी बातो को भी भूलने लगे है। आज जब में बूढे लोगो को बदहाल देखता हू तो कांप जाता हू और उन में उन की पीढा में खुद को महसूस करता हू। हम लोगो ने धर्म और मजहब के नाम पर बडी बडी दुकाने तो खोल रखी है सडक किनारे बडे बडे सरकारी और गैर सरकारी तंजीमो के विज्ञापनो होर्डिस गरीब लोगो को सुनहरे सपनो की दुनिया तो दिखाते है। जब ये विज्ञापन या होर्डिस नये नये लगते है तो गरीब की आंखे इसे ऐसे देखती जिसे भूखे को चंद रोटी की तरह नजर आता पर वक्त के साथ साथ वो सब समझ जाता है कि ये सब वोट पाने के लिये सियासी लोगो का नाटक भर है गरीब के नसीब में सिर्फ लाचारी और बेबसी ही है उस का कोर्इ पुरसाने हाल नही न सरकार और न उस के अपने। ये सब प्यासे थे उस के खून के दौलत के। सरकार दिल्ली की हो या लखनऊ की इन की पार्टियो के नाम भले ही अलग हो पर इन सब का मकसद एक ही है गरीब के वोट से सत्ता पाना और राज करना।
बात केवल वृद्धावस्था या विधवा पेंशन की नही है बात गरीबो की सरकार द्वारा आर्थिक मदद की भी नही है। बात है सरकार की नीतियो, सरकार और सरकारी दफतरो में बैठे भ्रष्ट लोगो की। क्यो कि सरकार की ओर से रोज देश की संसद और विधान सभाओ में गरीबो के लिये तमाम योजनाए बनती और निकलती है किन्तु इन भ्रष्ट लोगो वजह से ये योजनाए पात्र लोगो तक नही पहुच पा रही है। क्यो कि सरकार ने जिन लोगो को इस के कि्रयान्वयन की जिम्मेदारी दे रखी है वो लोग अपने अपने दायित्वो के प्रति सजग नही है। इस का सब से बडा प्रमाण वृद्धावस्था पेंशन एंव विधवा पेंशन की योजना के कि्रयान्वयन में बडी तादात में सामने आ रही अनियमितताय है। ये कितनी विचित्र बात है कि एक ओर तो हमारी सरकार इस तरह की तमाम योजनाओ का दायरा बढाने की बाते कर रही है दूसरी और ऐसी तमाम योजनाओ में पनप रहे भ्रष्टाचार के प्रति सरकार जरा भी गंभीर नही है। हमारी सरकार को ऐसी तमाम योजनाओ को सफल बनाने के लिये विषेष रूप से गरीब लोगो के लिये चलाई जाने वाली योजनाओ को कामयाब करने के लिये इन के कि्रयान्वयन की खामियो को दूर काने के साथ साथ इन में गडबडी करने वाले सरकारी और सियासी लोगो को दंडित भी करना होगा तभी ये योजनाए अपने और सरकार के उद्देष्य तक पहुच सकती है। वरना ये सरकारी बाबू वृद्धजनों की पेंशन से कब तक दीवाली मनाते रहेगे कहा नही जा सकता।